क्या जैकी श्रॉफ ने मन्ना डे और जीवन को याद किया, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अमिट छाप छोड़ी?
सारांश
Key Takeaways
- जैकी श्रॉफ ने मन्ना डे और जीवन को याद किया।
- मन्ना डे की पुण्यतिथि २४ अक्टूबर है।
- जीवन का असली नाम ओंकार नाथ धर है।
- जीवन ने ४९ बार नारद मुनि का किरदार निभाया।
- मन्ना डे का निधन २०१३ में हुआ।
मुंबई, २४ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। अभिनेता जैकी श्रॉफ ने शुक्रवार को हिंदी सिनेमा में अपनी कला और अभिनय से दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ने वाले दो दिग्गजों को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इनमें से एक हैं 'सुरों के जादूगर' मन्ना डे और दूसरे हैं 'विलेन के बादशाह' ओंकार नाथ धर, जिन्हें हम जीवन के नाम से जानते हैं। २४ अक्टूबर को मन्ना डे की पुण्यतिथि और ओंकार नाथ धर का जन्मदिन है।
जैकी श्रॉफ ने इंस्टाग्राम स्टोरी पर दोनों महानुभावों को याद किया। अभिनेता ने लिखा, "मन्ना डे जी हमेशा हमारे दिलों में हैं।"
मन्ना डे हिंदी सिनेमा के उन गायकों में से एक हैं, जिन्होंने अपनी शैली और मधुर आवाज से संगीत की दुनिया में अपनी धाक जमाई। कोलकाता में जन्मे मन्ना डे ने अपने करियर की शुरुआत फिल्म 'तमन्ना' से की थी। ५० से ७० के दशक के बीच, वे मोहम्मद रफी, किशोर कुमार और मुकेश जैसे गायकों के साथ हिंदी सिनेमा के संगीत को नई ऊंचाइयों पर ले गए।
उन्होंने हिंदी, बंगाली, गुजराती, मराठी, मलयालम और कन्नड़ जैसे कई भाषाओं में गाने गाए हैं। 'लागा चुनरी में दाग,' 'एक चतुर नार,' 'ऐ मेरी जोहरा जबीं,' 'यारी है ईमान मेरा,' 'झनक झनक तोरी बाजे पायलिया' और 'बाबू समझो इशारे' जैसे गाने आज भी याद किए जाते हैं। उनका निधन २४ अक्टूबर २०१३ को हुआ, लेकिन उनकी आवाज आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में गूंजती है।
वहीं, जैकी श्रॉफ ने ओंकार नाथ धर की जन्मतिथि पर उनकी तस्वीर साझा करते हुए लिखा, "ओंकार नाथ धर (जीवन)".
२४ अक्टूबर १९१५ को श्रीनगर में जन्मे जीवन ने अपने अभिनय से दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई। हिंदी सिनेमा में उन्होंने ४९ बार नारद मुनि की भूमिका निभाई है। भले ही उन्होंने ज्यादातर धार्मिक फिल्मों में नारद मुनि का किरदार निभाया हो, लेकिन उन्हें खलनायक के रूप में ही ज्यादा पहचाना जाता है।
उनकी कुछ प्रमुख फिल्मों में 'नागिन', 'मदर इंडिया', 'मुगल-ए-आजम', 'अमर अकबर एंथनी' और 'लावारिस' शामिल हैं। उनकी अनोखी शैली, बोलने का अंदाज और स्क्रीन पर मौजूदगी ने उन्हें दर्शकों का प्रिय बना दिया। उनका निधन १० जून १९८७ को हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी हिंदी सिनेमा में जीवित है।