क्या अमजद खान सिर्फ गब्बर ही नहीं थे? जानें उनके बहुआयामी करियर के बारे में
सारांश
Key Takeaways
- अमजद खान का गब्बर सिंह का किरदार भारतीय सिनेमा का एक आइकन बन गया।
- उन्होंने कॉमेडी और पॉजिटिव रोल में भी अपनी प्रतिभा साबित की।
- उनकी यात्रा संघर्ष और मेहनत की एक मिसाल है।
- अमजद खान को कई पुरस्कारों से नवाजा गया।
- उनकी अदाकारी आज भी लोगों को प्रेरित करती है।
मुंबई, 11 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। जब भी अमजद खान का नाम लिया जाता है, तो लोगों की आँखों के सामने गब्बर सिंह का खौफनाक चेहरा तैर जाता है। फिल्म 'शोले' में उनका यह चरित्र इतना प्रभावशाली था कि उन्होंने जल्दी ही हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े खलनायक के रूप में अपनी पहचान बना ली। लेकिन, अमजद केवल एक विलेन नहीं थे। उन्होंने कॉमेडी और सकारात्मक भूमिकाएं भी निभाईं, यह साबित करते हुए कि उनका प्रतिभा केवल डर दिखाने तक सीमित नहीं थी।
अमजद खान का जन्म 12 नवंबर 1940 को ब्रिटिश भारत के पेशावर (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनका परिवार फिल्म उद्योग से जुड़ा हुआ था, उनके पिता जयंत एक प्रसिद्ध अभिनेता थे। बचपन से ही अमजद को एक्टिंग का शौक था और उन्होंने इसे आगे बढ़ाने का निर्णय लिया। उन्होंने 11 साल की उम्र में फिल्म 'नाजनीन' में बाल कलाकार के रूप में अभिनय किया। इसके बाद, 17 साल की उम्र में फिल्म 'अब दिल्ली दूर नहीं' में नजर आए। ये शुरुआती फिल्में उनके करियर की नींव बनीं।
1975 में प्रदर्शित फिल्म 'शोले' ने उनके जीवन को बदल दिया। गब्बर सिंह के चरित्र ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया। इस भूमिका ने उनकी आवाज़, हावभाव और अंदाज को लोगों की जुबान पर चढ़ा दिया। गब्बर सिंह की यह भूमिका उन्हें बॉलीवुड का सबसे यादगार विलेन बना गई, लेकिन इसके साथ ही उनका करियर बहुआयामी हो गया। गब्बर के बाद, उन्होंने कई अन्य फिल्मों में भी खलनायक की भूमिकाएं निभाईं, जैसे 'मुकद्दर का सिकंदर', 'सत्ते पे सत्ता', और 'शतरंज के खिलाड़ी'।
हालांकि, अमजद खान केवल विलेन किरदारों में ही नहीं सीमित रहे। उन्होंने अपने करियर में कॉमेडी और सकारात्मक भूमिकाएं भी कीं। फिल्म 'कुर्बानी' में उनका किरदार दर्शकों को हंसाने और मनोरंजन करने वाला था। इसी प्रकार, 'लव स्टोरी' और 'उत्सव' जैसी फिल्मों में उन्होंने सकारात्मक भूमिकाएं निभाकर दर्शकों का दिल जीत लिया।
अमजद खान ने अपने विभिन्न किरदारों से साबित किया कि वे किसी भी भूमिका में खुद को ढालने में सक्षम थे। 'शोले' के बाद, उन्होंने फिर से 'याराना' फिल्म में अमिताभ बच्चन के साथ स्क्रीन साझा किया। इस फिल्म में अमजद ने अमिताभ के दोस्त की एक अद्भुत भूमिका निभाई, जिसे आज भी याद किया जाता है। इस फिल्म के गाने 'छूकर मेरे मन को', 'भोले ओ भोले', 'तेरे जैसा यार कहां' और 'बिशन चाचा' आज भी लोगों की जुबान पर हैं।
अमजद खान को फिल्मों में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार भी प्राप्त हुए। उनकी अदाकारी और स्क्रीन प्रेजेंस ने उन्हें भारतीय सिनेमा में अमिट छाप दी। उन्होंने न केवल बॉलीवुड को कई हिट फिल्में दीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बने।
हालांकि, उनकी जिंदगी में कई कठिनाइयाँ भी आईं। 1986 में गोवा जाते समय उनका भयानक कार एक्सीडेंट हुआ, जिसमें उनकी कई पसलियां टूट गईं और उन्हें लंबे समय तक रिकवरी करनी पड़ी। इसके कारण उनका वजन बढ़ने लगा और उन्हें लंबे समय तक व्हील चेयर पर रहना पड़ा। फिर भी, उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अभिनय की दुनिया में अपने योगदान को जारी रखा।
अमजद खान ने 27 जुलाई 1992 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी याद आज भी हिंदी सिनेमा में गब्बर सिंह के रूप में जीवित है।