कैलाश खेर ने आखिर क्यों कहा, 'हमें पश्चिमी देशों से सीखने की जरूरत है'?

सारांश
Key Takeaways
- संगीत में बदलाव - बॉलीवुड से परे संगीत की नई धाराएं।
- लोक कला की पहचान - गांव से राष्ट्रीय मंच तक का सफर।
- पश्चिमी देशों से सीखें - संगीत संस्कृति में अंतरदृष्टि।
- कला और शिक्षा - कला के माध्यम से जीवन जीने की कला।
- छुपे हुए हीरे - प्रतिभाओं को पहचानने और तराशने की प्रक्रिया।
मुंबई, 17 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। प्रसिद्ध गायक कैलाश खेर ने संगीत में आए परिवर्तनों, लोक कलाकारों की बढ़ती पहचान और भारतीय संस्कृति पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि हमें पश्चिमी देशों से सीखने की आवश्यकता है।
जब राष्ट्र प्रेस ने उनसे पिछले दस वर्षों के दौरान बॉलीवुड संगीत में हुए प्रमुख परिवर्तनों के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि वे संगीत को केवल बॉलीवुड तक सीमित नहीं मानते, बल्कि संगीत जगत को एक समग्र दृष्टि से देखते हैं।
कैलाश खेर ने यह भी कहा कि आज का संगीत केवल फिल्मों तक सीमित नहीं रह गया है। स्वतंत्र संगीत और गैर-फिल्म गानों की लोकप्रियता में काफी वृद्धि हुई है। वर्तमान में कई ऐसे मंच हैं जहां नए और अनूठे गायक अपनी कला का प्रदर्शन कर सकते हैं।
उन्होंने लोक कलाकारों, मंगणियारों और घुमंतू जनजातियों की बढ़ती लोकप्रियता को उजागर करते हुए कहा कि जो कलाकार पहले केवल गांवों या स्थानीय स्तर पर गाते थे, अब उन्हें बड़े मंचों पर पहचान मिलने लगी है।
कैलाश खेर ने कहा, "मैं सिर्फ बॉलीवुड संगीत की बात नहीं कर रहा। मैं पूरे संगीत की बात कर रहा हूं। बहुत से ऐसे गाने और कलाकार हैं जो फिल्मों से अलग हैं और उनका संगीत काफी सफल हो रहा है। लोक संगीत के कलाकार, मंगणियार, और घुमंतू जनजाति के लोग, जो पहले केवल अपने गांव या समुदाय में गाते थे, अब उन्हें भी बड़े मंच मिल रहे हैं और लोग उन्हें पहचानने लगे हैं। यह जागरूकता धीरे-धीरे बढ़ रही है।"
संगीतकार ने कहा, "आज हम केवल कला की बात कर रहे हैं। कला के माध्यम से शिक्षा और संस्कृति को समझने में मदद मिलती है। हमें सच्चा जीवन जीने की कला सीखनी चाहिए। अगर हम भारत की जीवनशैली और पश्चिमी देशों की जीवनशैली पर गौर करें, तो हमें स्पष्ट अंतर दिखाई देगा।"
पद्म श्री कैलाश खेर ने अपनी अकादमी 'कैलाश खेर एकेडमी फॉर लर्निंग आर्ट' (केकेएएलए) के बारे में बताया, "यह हमारी एक छोटी कोशिश है जो संस्कृति की समझ और सच्चे जीवन की कला को बढ़ावा देती है। इसका मुख्य उद्देश्य है कि हम कला के माध्यम से जीवन जीना सीखें। भारत के अधिकांश संगीत विद्यालय केवल गाने और राग सिखाते हैं, लेकिन वे हमारे व्यक्तित्व, हमारी सुनने की क्षमता, हमारे गीतों के अर्थ समझने और हमारी संस्कृति के बारे में नहीं बताते।"
कैलाश खेर ने कहा, ''भारत में जब कोई संगीतकार प्रदर्शन करता है, तो आमतौर पर कलाकार या बड़े लोग वहां नहीं आते। लेकिन पश्चिमी देशों में आप देखेंगे कि कई प्रसिद्ध सेलिब्रिटी और उनके परिवार टिकट खरीदकर स्टेडियम भर देते हैं। हमें भी अपनी संस्कृति में ऐसा परिवर्तन लाना होगा। हमारी अकादमी केवल गाना सिखाने या संगीत सीखने का स्थान नहीं है। यह खुद को पहचानने का एक छोटा माध्यम है। कभी-कभी कोई संगीत सीखने आता है, लेकिन हम देखते हैं कि उसमें कैमरे की अच्छी समझ है, शायद वह एक अच्छा कैमरा ऑपरेटर बन सकता है। हमारे शिक्षक, मेंटर और लाइफ कोच उनकी मदद करते हैं। हम ऐसे छुपे हुए हीरों को तराशते हैं।''