क्या खलनायक बन गए दर्शकों के प्रिय? शक्ति कपूर और गोविंद नामदेव की अदाकारी का संगम

सारांश
Key Takeaways
- शक्ति कपूर और गोविंद नामदेव ने खलनायकी और कॉमेडी में महारत हासिल की है।
- इनकी अदाकारी ने हिंदी सिनेमा में एक नई पहचान बनाई है।
- शक्ति कपूर का असली नाम सुनील सिकंदरलाल कपूर है।
- गोविंद नामदेव ने थिएटर से अपने करियर की शुरुआत की।
- दोनों कलाकारों की जोड़ी दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय है।
नई दिल्ली, 2 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। खलनायक की भूमिका निभाना हो या कॉमेडी के माध्यम से दर्शकों के दिलों में जगह बनाना, हिंदी सिनेमा में ऐसा एक साथ बहुत ही कम देखने को मिलता है। भारतीय सिनेमा के महान कलाकार शक्ति कपूर और गोविंद नामदेव इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। इन दोनों की शख्सियतें, जो अलग-अलग पृष्ठभूमियों से आई हैं, इस अनोखी कला को प्रदर्शित करती हैं।
शक्ति कपूर ने अपनी अनोखी शैली, चाहे वह 'क्राइम मास्टर गोगो' की मजेदार हरकतें हों या एक खलनायक के रूप में उनकी डरावनी हंसी, हमेशा दर्शकों को आकर्षित किया है। वहीं, गोविंद नामदेव ने अभिनय में अपनी गहरी समझ और प्रभावशाली आवाज के माध्यम से नकारात्मक किरदारों में जान डालने का कार्य किया। इन दोनों ने दमदार अभिनय और शानदार प्रतिभा के बल पर फिल्म इंडस्ट्री में एक विशेष स्थान प्राप्त किया।
3 सितंबर 1952 को दिल्ली में एक पंजाबी परिवार में जन्मे शक्ति कपूर का असली नाम सुनील सिकंदरलाल कपूर है। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की और पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) से अभिनय की बारीकियों में निपुणता हासिल की। दिल्ली से मुंबई आने के बाद उनकी बॉलीवुड में एंट्री आसान नहीं थी। उन्होंने 1975 में रंजीत खनल के साथ अपने करियर की शुरुआत की।
कई छोटी भूमिकाओं और संघर्ष के बाद, हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता सुनील दत्त ने उनकी प्रतिभा को पहचाना, जो उस समय अपने बेटे संजय दत्त की डेब्यू फिल्म 'रॉकी' (1981) बना रहे थे। इस फिल्म में उन्हें एक खलनायक की भूमिका का प्रस्ताव दिया गया। कहा जाता है कि सुनील दत्त ने महसूस किया कि 'सुनील कपूर' नाम में वह शक्ति और प्रभाव नहीं था, जो एक खलनायक के लिए आवश्यक था। इसलिए, उन्होंने उन्हें अपना स्क्रीन नाम बदलने का सुझाव दिया। इस तरह 'शक्ति कपूर' नाम का जन्म हुआ, जो बाद में बॉलीवुड में खलनायकी और हास्य भूमिकाओं का प्रतीक बन गया। 'रॉकी' में निभाई गई भूमिका ने उन्हें एक बड़ा ब्रेक दिया, जिसने उनके करियर को नई दिशा दी।
1980 से 1990 का दशक शक्ति कपूर के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। 'रॉकी' की सफलता के बाद, उन्होंने खलनायक और हास्य किरदारों में एक मजबूत पहचान बनाई। इस दौरान, उन्होंने असरानी और कादर खान के साथ मिलकर 100 से अधिक फिल्मों में यादगार भूमिकाएं निभाईं। उन्होंने 'कुर्बानी', 'अंदाज अपना अपना', 'राजा बाबू', 'हीरो नंबर 1', 'अंखियों से गोली मारे', और 'साजन चले ससुराल' जैसी फिल्मों में काम किया।
उनकी कॉमेडी टाइमिंग और अनोखी डायलॉग डिलीवरी ने उन्हें दर्शकों का प्रिय बना दिया। विशेष रूप से, डेविड धवन की फिल्मों में उनकी जोड़ी गोविंदा और कादर खान के साथ बहुत पसंद की गई। 'राजा बाबू' (1994) में उनके नंदू के किरदार ने उन्हें 'फिल्मफेयर अवार्ड फॉर बेस्ट कमीडियन' दिलाया। इस किरदार का डायलॉग 'नंदू सबका बंधु', 'समझता नहीं है यार' आज भी लोगों की जुबान पर है। फिल्म 'अंदाज अपना अपना' (1994) में 'क्राइम मास्टर गोगो' का किरदार बॉलीवुड के सबसे प्रसिद्ध हास्य किरदारों में से एक है। इसके अलावा, फिल्म 'तोहफा' (1984) का 'आओ लोलिता' डायलॉग ने उन्हें मिमिक्री कलाकारों के लिए प्रेरणा बना दिया। वहीं, 'चालबाज' (1989) में 'मैं नन्हा सा छोटा सा बच्चा हूं' डायलॉग के साथ बटुकनाथ का किरदार बेहद लोकप्रिय हुआ।
शक्ति कपूर की यह क्षमता थी कि वे खलनायक और कॉमेडियन दोनों भूमिकाओं में सहजता से ढल जाते थे। उन्होंने 700 से अधिक फिल्मों में काम किया।
फिल्म 'जिंदगी' के अलावा, शक्ति कपूर ने शिवांगी कोल्हापुरी (अभिनेत्री पद्मिनी कोल्हापुरी की बड़ी बहन) से विवाह किया और उनके दो बच्चे सिद्धांत कपूर और श्रद्धा कपूर हैं। शक्ति 2011 में रियलिटी शो 'बिग बॉस' में भी दिखाई दिए, जहां उन्होंने शराब की लत के बारे में खुलासा किया।
वहीं, हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता गोविंद नामदेव का जन्म 3 सितंबर 1954 को मध्य प्रदेश के सागर में हुआ था। एक मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले गोविंद ने बचपन में ही बड़ा आदमी बनने का सपना देखा था। इसी सपने को साकार करने के लिए उन्होंने दिल्ली का रुख किया और अपने करियर की शुरुआत थिएटर से की, जहां उन्होंने कई वर्षों तक विभिन्न नाटकों में अभिनय किया। इसके बाद उनका बॉलीवुड सफर शुरू हुआ और 1992 में आई डेविड धवन की फिल्म 'शोला और शबनम' में उन्होंने गोविंदा और कादर खान के साथ काम किया। इस फिल्म ने उन्हें पहचान दिलाई और इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे 'सत्या', 'सरफरोश', 'बैंडिट क्वीन', 'विरासत', 'प्रेम ग्रंथ' और 'ओह माय गॉड' जैसी फिल्मों में अपने नकारात्मक किरदारों के लिए सराहना प्राप्त की। उन्होंने अपने फिल्मी करियर में लगभग 115 फिल्मों में अभिनय किया।
कहा जाता है कि गोविंद नामदेव ने जानबूझकर ऐसे किरदारों का चयन किया और सकारात्मक भूमिकाओं को ठुकराया। उनकी दमदार आवाज और अभिनय ने उन्हें खलनायक की भूमिकाओं में विशेष पहचान दिलाई। 1996 की फिल्म 'प्रेम ग्रंथ' में माधुरी दीक्षित के साथ उनके रेप सीन को लेकर वे काफी नर्वस थे, लेकिन माधुरी के सहयोग ने इसे सहज बना दिया।
उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि निगेटिव किरदार निभाने से वे वास्तविक जीवन में अपनी पत्नी और बच्चों के और करीब आए।
गोविंद नामदेव ने अपनी मेहनत, थिएटर की गहरी समझ और दमदार अभिनय के बल पर हिंदी सिनेमा में एक खास स्थान बनाया। उनकी खलनायकी ने दर्शकों को डराया, प्रभावित किया और उनके किरदारों को अमर बना दिया।