क्या लता मंगेशकर से मिली संगीत की पहली बड़ी सौगात ने प्यारेलाल की किस्मत बदल दी?

सारांश
Key Takeaways
- प्यारेलाल का वायलिन संगीत में अद्वितीय योगदान है।
- लता मंगेशकर के साथ उनकी परफॉर्मेंस ने उनके करियर की दिशा बदल दी।
- लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी ने 35 वर्षों तक बॉलीवुड में राज किया।
- उन्होंने 500 से ज्यादा फिल्मों के लिए संगीत दिया।
- प्यारेलाल ने अपने साथी के सम्मान को हमेशा प्राथमिकता दी।
मुंबई, 2 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय फिल्म संगीत के इतिहास में कई ऐसे नाम हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं और धुनों से लोगों के दिलों पर गहरा प्रभाव डाला है। इनमें लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। यह जोड़ी बॉलीवुड के सुनहरे काल की पहचान थी, जिन्होंने न केवल फ़िल्मों को संगीत से सजाया बल्कि उनमें नया जीवन भी भरा। प्यारेलाल का संगीत सफर अत्यंत दिलचस्प है, जिसमें एक महत्वपूर्ण मोड़ था जब उन्होंने पहली बार लता मंगेशकर के दिल को अपनी वायलिन से जीत लिया।
प्यारेलाल का जन्म 3 सितंबर 1940 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ था। उनका पूरा नाम प्यारेलाल रामप्रसाद शर्मा है। उनके पिता एक ट्रम्पेट बजाने वाले संगीतकार थे, जिन्होंने यह चाहा कि प्यारेलाल भी संगीत की दुनिया में कदम रखें। उन्होंने अपने गुरु एंथनी गोंजाल्विस से प्यारेलाल को वायलिन सिखाने की प्रार्थना की, जो गोवा के प्रसिद्ध संगीतकार थे। प्यारेलाल ने केवल आठ साल की उम्र से रोजाना आठ से बारह घंटे तक वायलिन का अभ्यास किया।
हालांकि पढ़ाई में उनका सफर थोड़ा कठिन रहा। प्यारेलाल ने स्कूल में केवल सातवीं कक्षा तक पढ़ाई की, लेकिन फीस न चुकाने के कारण उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा, जिसके बाद उन्होंने वायलिन की तकनीक सीखने पर ध्यान केंद्रित किया। बाद में उन्होंने मुंबई में 'रंजीत स्टूडियो' के ऑर्केस्ट्रा में नौकरी की। यहां उनकी मेहनत रंग लाई और धीरे-धीरे वह बॉलीवुड संगीत का एक प्रमुख हिस्सा बन गए।
एक विशेष अवसर पर, उनके पिता उन्हें लता मंगेशकर के घर ले गए। तब लता बॉलीवुड की सबसे बड़ी गायिका थीं। प्यारेलाल ने वहां वायलिन बजाना शुरू किया और लता उनकी परफॉर्मेंस से इतनी खुश हुईं कि उन्होंने उन्हें 500 रुपए का इनाम दिया, जो उस समय बहुत बड़ी रकम थी। इस सम्मान ने प्यारेलाल के आत्मविश्वास को और बढ़ाया और उनकी संगीत के प्रति रुचि और भी प्रगाढ़ हो गई।
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी बॉलीवुड में बहुत प्रसिद्ध हो गई। प्यारेलाल की लक्ष्मीकांत से मुलाकात केवल 10 साल की उम्र में हुई थी। उस समय लता मंगेशकर के परिवार द्वारा चलाए जा रहे बच्चों के अकादमी, सुरील कला केंद्र में बच्चे संगीत सीखने आया करते थे। यहां पर दोनों अच्छे दोस्त बन गए। प्यारेलाल ने लक्ष्मीकांत के साथ मिलकर 1963 में आई फिल्म 'पारसमणि' के लिए संगीत दिया, जो लोगों के दिलों में बस गया। लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी जैसे महान गायकों ने भी उनके साथ काम किया और कई हिट गाने दिए।
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी ने लगभग 35 वर्षों तक बॉलीवुड में संगीत की दुनिया पर राज किया। उन्होंने 'अमर अकबर एंथनी', 'खलनायक', 'तेजाब', 'मिस्टर इंडिया', 'सौदागर', 'कुली', 'कर्ज', 'सत्यम शिवम सुंदरम', 'दोस्ती', और 'सरगम' जैसी 500 से अधिक फ़िल्मों के लिए संगीत दिया और करीब 3000 से ज्यादा गाने बनाए। इस जोड़ी को सात बार फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
लक्ष्मीकांत की मृत्यु के बाद, प्यारेलाल ने संगीत की दुनिया से लगभग दूरी बना ली, लेकिन उन्होंने हमेशा 'लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल' के नाम को बनाए रखने पर जोर दिया। उन्होंने कई अवसरों पर कहा कि वे किसी भी काम को अपने साथी के सम्मान के बिना नहीं करना चाहते। 2013 में उन्होंने 'आवाज दिल से' नामक एक एल्बम भी बनाया, जिसमें उन्होंने अपने दिल की आवाज को संगीत के माध्यम से व्यक्त किया।