क्या 'फादर्स डे' पर मनोज मुंतशिर ने पिता के त्याग और प्रेम को कविता में व्यक्त किया?

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क्या 'फादर्स डे' पर मनोज मुंतशिर ने पिता के त्याग और प्रेम को कविता में व्यक्त किया?

सारांश

मनोज मुंतशिर ने फादर्स डे पर अपने पिता के प्रति अपनी भावनाओं को एक कविता के माध्यम से व्यक्त किया है। इस कविता में वह पिता के त्याग, प्रेम और मार्गदर्शन की गहराई को उजागर करते हैं। जानिए इस हृदयस्पर्शी कविता में उनके द्वारा साझा किए गए भावनात्मक पल।

Key Takeaways

  • पिता का त्याग और प्रेम
  • पिता-पुत्र का रिश्ता
  • भावनात्मक लम्हे
  • सफलता और पिता की भूमिका
  • समाज में पिता का महत्व

मुंबई, १५ जून (राष्ट्र प्रेस)। प्रसिद्ध गीतकार, लेखक और शायर मनोज मुंतशिर ने फादर्स डे के मौके पर सोशल मीडिया पर एक वीडियो साझा किया, जिसमें वह अपने पिता को समर्पित एक हृदयस्पर्शी कविता प्रस्तुत करते दिखाई दिए।

इस कविता में उन्होंने पिता-पुत्र के संबंध की गहराई और पिता के त्याग, प्रेम और मार्गदर्शन को भावनात्मक शब्दों में व्यक्त किया।

मनोज ने वीडियो को इंस्टाग्राम पर साझा करते हुए कैप्शन में लिखा, "मेरे पापा।"

वीडियो में वह कविता सुनाते हुए कहते हैं, "बचपन में बाजार में जिस खिलौने पर हाथ रख दो, पता था कि यह गिफ्ट रैप होकर घर चला आएगा। हमने कभी अपने पिता से उनकी सैलरी नहीं पूछी, सिर्फ अपनी फरमाइशें बताते थे और हमारा काम हो जाता था। किताबों में पढ़ा था, जितनी चादर उतने पैर फैलाओ, अपनी हदों से बाहर मत जाओ, लेकिन मेरे पापा, मेरी खुशी के लिए दुनिया की हर चीज ले आते, मैं चांद मांग लेता तो आसमान से चांद खींच ले आते, कभी पीएफ से लोन लिए, कभी फिक्स डिपॉजिट तोड़ दिए, जब-जब मेरी चादर छोटी पड़ी, पापा ने उसमें अपनी फटी हुई कमीज के धागे जोड़ दिए।"

मुंतशिर ने आगे बताया कि वह आज के समय में सफल हो चुके हैं, लेकिन पिता की अमीरी के आगे वह कुछ भी नहीं। उन्होंने कहा, “मैं बड़ा हुआ, अपने पैरों पर खड़ा हुआ, बहुत पैसे कमाए, लेकिन वह परफ्यूम नहीं खरीद पाया जो मेरे पापा अपने पसीने से महकाते थे, वह जूते नहीं पहन पाया जो पापा अपने पैरों के छाले के बदले मेरे लिए लाते थे। वैसे समोसे फिर नहीं चखे जो दफ्तर से घर आते हुए वह लाया करते थे, वैसा सिनेमा फिर नहीं देखा जिसके टिकट उस रविवार को ओवरटाइम करके कमाए करते थे।”

गीतकार ने बताया कि उनके पिता ढेरों खुशियों को कम सैलरी में भी मैनेज कर लेते थे। उन्होंने आगे लिखा, “कम सैलरी में भी ये सब कर अच्छा वक्त आया, किस्मत ने मेरे पैरों तले कालीन बिछा दी, पर वैसी अमीरी फिर नहीं देखी जो पापा ने दो हजार की सैलरी में दिखाई।

Point of View

यह कहना उचित होगा कि मनोज मुंतशिर की कविता न केवल व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करती है, बल्कि यह समाज में पिता के महत्व को भी उजागर करती है। यह कविता उन सभी बच्चों को प्रेरित करती है कि वे अपने पिता के sacrifices को समझें और उनकी कद्र करें।
NationPress
19/06/2025

Frequently Asked Questions

मनोज मुंतशिर की कविता में क्या प्रमुख बातें हैं?
कविता में पिता के त्याग, प्रेम और मार्गदर्शन की बात की गई है, जो पिता-पुत्र के रिश्ते की गहराई को दर्शाती है।
फादर्स डे पर मनोज ने क्या खास किया?
उन्होंने अपने पिता को समर्पित एक हृदयस्पर्शी कविता साझा की जो सामाजिक मीडिया पर वायरल हो रही है।