क्या नीरज पांडे ग्रे किरदारों के दम पर दर्शकों के दिमाग पर छाप छोड़ते हैं?
सारांश
Key Takeaways
- नीरज पांडे की फिल्में साइलेंट सस्पेंस और थ्रिलर पर केंद्रित हैं।
- उनकी पहचान ग्रे किरदारों और जटिल कहानियों के लिए है।
- उन्होंने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी अपनी शैली को बनाए रखा है।
- उनकी फिल्में न केवल मनोरंजन करती हैं, बल्कि गहरे सवाल उठाती हैं।
- नीरज पांडे को कई पुरस्कार मिले हैं, जिसमें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार शामिल है।
मुंबई, 16 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। जब भी हम हिंदी सिनेमा की उन फिल्मों की चर्चा करते हैं, जो बिना किसी शोर के दर्शकों के मन में सवाल छोड़ जाती हैं, तो निर्देशक नीरज पांडे का नाम सबसे पहले आता है। उनकी फिल्मों में न तो भव्य एक्शन दृश्य होते हैं और न ही जबरदस्ती की संवाद, फिर भी दर्शक फिल्म देखने के बाद लंबे समय तक सोचते रहते हैं। उनके प्रोजेक्ट्स की पहचान साइलेंट सस्पेंस, थ्रिलर और ग्रे किरदार बन चुकी है।
नीरज पांडे का जन्म 17 दिसंबर 1973 को पश्चिम बंगाल के हावड़ा में हुआ। उनके पिता बिहार के आरा जिले से थे और हावड़ा में एक जर्मन कंपनी में काम कर रहे थे। नीरज की प्रारंभिक शिक्षा हावड़ा में हुई, लेकिन वे पढ़ाई में उतने अच्छे नहीं थे और एक समय नौवीं कक्षा में फेल भी हो गए थे। फिर भी, बचपन से उन्हें कहानियों, कविताओं और शायरी में गहरी रुचि थी। वे आगे चलकर दिल्लीदिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
पढ़ाई के बाद, नीरज पांडे ने टीवी इंडस्ट्री से अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने दिल्ली की एक प्रोडक्शन कंपनी में काम किया, जहां उन्होंने कैमरा, स्क्रिप्ट और प्रोडक्शन की बारीकियों को सीखा। वर्ष 2002 में, वे मुंबई आए और डॉक्यूमेंट्री, विज्ञापन और शॉर्ट फिल्में बनाने लगे। इसी दौरान, उन्होंने अपने दोस्त शीतल भाटिया के साथ मिलकर एक प्रोडक्शन हाउस की स्थापना की, जो बाद में फ्राइडे फिल्मवर्क्स बन गया।
उनकी पहली फिल्म 'ए वेडनेसडे' (2008) ने उन्हें रातों-रात पहचान दिलाई। यह फिल्म आतंकवाद जैसे संवेदनशील विषय पर आधारित थी, लेकिन इसमें कोई नारेबाजी नहीं थी। फिल्म ने एक आम आदमी, पुलिस अधिकारी और सिस्टम के बीच की जटिलताओं को सरलता से प्रस्तुत किया। नसीरुद्दीन शाह और अनुपम खेर जैसे कलाकारों के किरदार पूरी तरह से ग्रे थे, यानी न तो पूरी तरह सही और न ही पूरी तरह गलत। यही नीरज पांडे की कहानी कहने की शैली की शुरुआत थी।
इसके बाद आई 'स्पेशल 26'। इस फिल्म में नकली सीबीआई अधिकारी बनकर अपराध करने वाले लोग थे। यहाँ भी सस्पेंस और ग्रे पात्रों ने कहानी की पहचान बनाई। 'बेबी' में नीरज पांडे ने खुफिया एजेंसियों की दुनिया को दर्शाया।
वर्ष 2016 में आई 'एम. एस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी' उनके करियर की सबसे बड़ी व्यावसायिक सफलता बन गई। यह फिल्म बाकी फिल्मों से भिन्न थी, लेकिन यहाँ भी संघर्ष, धैर्य और आंतरिक मजबूती की कहानी थी। इसके बाद, 'अय्यारी' जैसी फिल्म आई, जो बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रही, लेकिन इसमें भी सिस्टम, सेना और नैतिक दुविधा जैसे विषय शामिल थे।
नीरज पांडे ने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी अपनी विशेष शैली बनाए रखी है। 'स्पेशल ऑप्स' और 'खाकी: द बिहार चैप्टर' जैसी वेब सीरीज में देशभक्ति, राजनीति, अपराध और सस्पेंस का संतुलन स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उनके पात्र अक्सर ऐसे होते हैं जो हालात से लड़ते हैं।
नीरज पांडे ने कई पुरस्कार जीते हैं। 'ए वेडनेसडे' के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला है। इसके अलावा, उनकी फिल्मों और सीरीज को कई फिल्मफेयर और ओटीटी पुरस्कारों में सराहना मिली है।