क्या निशिकांत कामत ने कम उम्र में मुकाम हासिल कर दुनिया को रोमांचक ‘दृश्यम’ दिखाया?

सारांश
Key Takeaways
- निशिकांत कामत ने कम समय में सिनेमा को नया आयाम दिया।
- उनकी फिल्में दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ती थीं।
- वे साधारण कहानियों को असाधारण तरीके से प्रस्तुत करते थे।
- उनके निर्देशन में बनी फिल्मों ने सामाजिक मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित किया।
- उनका योगदान भारतीय सिनेमा के लिए अमूल्य है।
मुंबई, 16 जून (राष्ट्र प्रेस)। 50 वर्ष16 वर्ष का फिल्मी सफर और 5 हिंदी फिल्मों का निर्देशन। दिवंगत निर्माता-निर्देशक निशिकांत कामत की कहानी यहीं पर समाप्त नहीं होती। उनके निर्देशन में बनी सभी फिल्में ब्लॉकबस्टर और दर्शकों की पसंदीदा लिस्ट में शामिल रहीं।
निशिकांत कामत, जिनका नाम सुनते ही ‘दृश्यम’ का वह सस्पेंस भरा दृश्य सामने आ जाता है, जिसने दर्शकों को स्क्रीन से बांधे रखा। फिल्मी जीवन में उन्होंने ऐसी फिल्में बनाई, जो आज भी सिनेमा प्रेमियों के दिलों में जीवित हैं।
1970 में मुंबई के दादर में जन्मे निशिकांत बचपन से ही फिल्मों के शौकीन थे। उनका रुझान रामनारायण कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही थिएटर की ओर बढ़ा। 11वीं कक्षा में थिएटर से जुड़ने के बाद उनके सपनों को उड़ान मिली। यही जुनून उन्हें साधारण लड़के से असाधारण फिल्म निर्माता में बदल गया।
2005 में मराठी सिनेमा में उनकी पहली फिल्म ‘डोंबिवली फास्ट’ ने धूम मचा दी। यह फिल्म उस वर्ष की सबसे सफल मराठी फिल्मों में शामिल रही और निशिकांत का नाम एक उभरते सितारे के रूप में चमकने लगा।
2008 में निशिकांत ने बॉलीवुड में कदम रखा। उनकी पहली हिंदी फिल्म ‘मुंबई मेरी जान’ साल 2006 के मुंबई धमाकों पर आधारित थी। इसने उनकी संवेदनशील कहानी कहने की कला को उजागर किया।
इसके बाद ‘फोर्स’, मराठी फिल्म ‘लाय भारी’, ‘रॉकी हैंडसम’ और ‘मदारी’ जैसी फिल्मों ने उनकी बहुमुखी प्रतिभा को साबित किया। लेकिन, 2015 में रिलीज हुई ‘दृश्यम’ ने उन्हें असली पहचान दी।
अजय देवगन, तब्बू और श्रिया सरन स्टारर इस फिल्म ने सस्पेंस और थ्रिलर के नए मानदंड स्थापित किए। दर्शक सांसें थामे यह सोचते रहे कि ‘आगे क्या होगा?’
निशिकांत की विशेषता थी कि वे साधारण कहानियों को असाधारण तरीके से पर्दे पर प्रस्तुत करते थे।
निशिकांत केवल निर्देशक नहीं, बल्कि एक कुशल अभिनेता भी थे। उन्होंने ‘भावेश जोशी सुपरहीरो’, ‘404: एरर नॉट फाउंड’, ‘रॉकी हैंडसम’, ‘डैडी’ और ‘जूली 2’ जैसी फिल्मों में अपने अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया। उनकी हर भूमिका में एक गहराई थी, जो उनके किरदारों को यादगार बनाती थी।
उनके करियर की सबसे खास बात यह थी कि उन्होंने केवल 5 हिंदी फिल्मों का निर्देशन किया, लेकिन हर फिल्म दर्शकों के दिलों में बस गई। ‘फोर्स’ में जॉन अब्राहम का दमदार एक्शन, ‘मदारी’ में इरफान खान की भावनात्मक गहराई और ‘दृश्यम’ का सस्पेंस, हर फिल्म में निशिकांत का जादू देखने को मिला। उनकी फिल्में न केवल मनोरंजन करती थीं, बल्कि सामाजिक मुद्दों पर सोचने के लिए भी प्रेरित करती थीं।
‘मुंबई मेरी जान’ में आतंकवाद के दर्द को उन्होंने इतनी संवेदनशीलता से दिखाया कि दर्शक भावुक हो उठे। वहीं, ‘मदारी’ में सिस्टम की खामियों को उजागर कर उन्होंने समाज को आईना दिखाया।
निशिकांत की कहानियों में एक खास बात थी कि वे अपने किरदारों को जीवंत कर देते थे। ‘दृश्यम’ का विजय सालगांवकर हो या ‘मदारी’ का राघव, हर किरदार दर्शकों के साथ एक गहरा रिश्ता जोड़ लेता था। उनकी फिल्में केवल पर्दे की कहानियां नहीं थीं, बल्कि जिंदगी के उन पलों को दर्शाती थीं, जो हर इंसान को कहीं न कहीं छूते हैं।
17 अगस्त 2020निशिकांत कामत लीवर की बीमारी के कारण इस दुनिया से अलविदा हो गए। उनकी कमी सिनेमा जगत के लिए एक बड़ा नुकसान थी। लेकिन, उनकी फिल्में आज भी हमें उनके जुनून, उनकी कहानियों और उनकी कला से रूबरू कराती हैं। ‘दृश्यम’ का वह सस्पेंस, ‘मदारी’ की वह भावना और ‘फोर्स’ का एक्शन, सभी निशिकांत की अमर रचनाएं हैं। वे एक ऐसे निर्देशक थे, जिन्होंने कम समय में सिनेमा को एक नया आयाम दिया।