क्या पंडित किशन महाराज ने तबले के जुनून में परिवार की शादी की दावत छोड़ दी?

सारांश
Key Takeaways
- पंडित किशन महाराज का तबला वादन अद्वितीय था।
- उन्होंने परिवार के दबाव में शादी की दावत छोड़ी।
- उनका समर्पण संगीत के प्रति प्रेरणादायक है।
- उन्हें पद्मश्री और पद्म विभूषण जैसे पुरस्कार मिले।
- उनकी उपलब्धियाँ भारतीय संगीत में अमिट छाप छोड़ती हैं।
मुंबई, 2 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। पंडित किशन महाराज बनारस घराने के एक प्रसिद्ध तबला वादक थे। उनकी तबला वादन शैली, जिसमें बायें हाथ के उपयोग पर जोर दिया गया है, 'गंभीर' शैली कहलाती है। किशन महाराज को भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनके अद्वितीय योगदान के लिए पद्मश्री (1973) और पद्म विभूषण (2002) जैसे सम्मानित पुरस्कार प्राप्त हुए थे। उनका जन्म 3 सितंबर 1923 को बनारस के कबीर चौरा में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता हरि महाराज और माता अंजोरा देवी थीं।
उन्हें उनके पिता के बड़े भाई कंठे महाराज ने गोद लिया, जिनकी कोई संतान नहीं थी। किशन महाराज ने अपने पिता से ही संगीत की शिक्षा प्राप्त की। जब वे छह वर्ष के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद, उन्होंने कंठे महाराज से संगीत की शिक्षा ली। तबला वादन में उनका कोई समान नहीं था। वे अपनी बेहतरीन लयकारी, जटिल तालों की पकड़ और अद्भुत रचनात्मकता के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने विश्वभर में भारतीय शास्त्रीय संगीत की पहचान को बढ़ावा दिया और आज भी तबला प्रेमियों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं।
तबला वादन के प्रति उनका प्रेम इतना गहरा था कि एक बार उन्होंने परिवार की शादी की दावत को भी छोड़ दिया।
यह घटना किशन महाराज के युवावस्था की है, जब वे एक होनहार तबला वादक बन चुके थे। उनके घर में उनके भाई की शादी थी। घर में उत्सव का माहौल था, लेकिन किशन महाराज को एक संगीत कार्यक्रम में तबला वादन के लिए आमंत्रित किया गया था। उनके परिवार ने उनसे शादी में रुकने की प्रार्थना की।
हालांकि, किशन महाराज ने परिवार के दबाव में शादी में रुकने का निर्णय लिया, लेकिन कुछ ही समय बाद, वे अपने कमरे में चले गए। उन्होंने अपने तबले के साथ एकांत में रियाज़ करना प्रारंभ कर दिया। वह कई घंटों तक तबला बजाते रहे, इस कदर कि उन्हें बाहर के शोर-गुल और दावत के लिए बुलाने वालों की आवाज़ भी सुनाई नहीं दी।
जब उनके परिवार के सदस्य उन्हें ढूंढते हुए आए, तो उन्होंने उन्हें कमरे में तबला बजाते हुए देखकर चकित रह गए। जब उनकी माँ ने पूछा कि वे दावत में क्यों नहीं आ रहे हैं, तो किशन महाराज ने कहा, "माँ, यह तबला मेरे जीवन का हिस्सा है। संगीत मेरा धर्म है। जब तक मैं अपने तबले के साथ हूं, मुझे किसी और दावत की आवश्यकता नहीं है।"
यह घटना उनकी कला के प्रति अटूट समर्पण को दर्शाती है। इस किस्से का उल्लेख उन पर लिखी गई पुस्तक 'द डिक्शनरी ऑफ हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक' में मिलता है।
इसके साथ ही, एक और किस्सा भी है जब उन्होंने अपने वचन के कारण अमेरिका में एक कार्यक्रम में भाग लेने से मना कर दिया था। दरअसल, उस समय वे प्रसिद्ध सितार वादक पंडित रविशंकर के साथ अक्सर संगत किया करते थे। एक बार पंडित रविशंकर ने उन्हें अमेरिका में एक बड़े संगीत समारोह में तबला संगत के लिए बुलाया, लेकिन वे उसी समय किसी अन्य कार्यक्रम में शामिल होने वाले थे।
तब उन्होंने बिना किसी संकोच के अपने वचन को निभाने के लिए विदेश वाले कार्यक्रम को ना कह दिया और इसके लिए पंडित रविशंकर से विनम्रता से माफी भी मांगी।