क्या महाभारत के महायोद्धा 'मूंछ' नहीं हटाने के कारण डायरेक्टर ने डांटा?
सारांश
Key Takeaways
- पंकज धीर ने कठिनाइयों का सामना करते हुए कर्ण का किरदार निभाया।
- उच्चारण सुधारने के लिए उन्होंने हिंदी पुस्तकें पढ़ीं।
- उनका किरदार दर्शकों के दिलों में हमेशा जीवित रहेगा।
- संघर्ष और दृढ़ता सफलता की कुंजी है।
- कर्ण की भूमिका ने उन्हें अपार लोकप्रियता दिलाई।
दिल्ली, 8 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। बीआर चोपड़ा के टेलीविजन शो 'महाभारत' में कर्ण की भूमिका निभाने वाले अभिनेता पंकज धीर भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके द्वारा निभाए गए किरदार की छवि दर्शकों और प्रशंसकों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेगी। हाल ही में 9 नवंबर को उनकी जयंती मनाई जाएगी। उनके अमर पात्र कर्ण से जुड़े कई दिलचस्प किस्से हैं।
महाभारत का सूर्य पुत्र कर्ण, वह महान योद्धा हैं जिनकी दानवीरता और वीरता की गाथाएं आज भी सुनी जाती हैं।
क्या आप जानते हैं कि इस कर्ण को जीवंत करने वाले अभिनेता पंकज धीर को अपने किरदार के बारे में शुरुआत में कोई जानकारी नहीं थी? उन्हें संस्कृत शब्दों का सही उच्चारण नहीं आता था, जिससे वह सेट पर डायलॉग बोलने में गलती कर जाते थे।
एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि दो किताबों ने उन्हें कर्ण के किरदार में ढलने में बहुत मदद की।
पंकज धीर का जन्म 9 नवंबर 1956 को पंजाब में हुआ। 1980 के दशक में मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री में छोटे-मोटे रोल्स से करियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता को बीआर चोपड़ा के धारावाहिक 'महाभारत' के लिए ऑडिशन में पहले अर्जुन का रोल ऑफर हुआ था। उनकी कद-काठी और चेहरे की तेजस्विता ने निर्माताओं को आकर्षित किया। तीन-चार महीने तक वे मुंबई की सड़कों पर 'अर्जुन' बनकर घूमते रहे, लेकिन एक शर्त ने सब कुछ बदल दिया। निर्देशक ने उनसे मूंछें हटाने को कहा। पंकज ने इनकार कर दिया और कहा, 'मूंछों को नहीं हटा सकता।'
इस बात से नाराज बीआर चोपड़ा ने उन्हें स्टूडियो से बाहर निकालते हुए कहा कि वे दोबारा यहां न आएं। कुछ महीनों बाद उन्हें फोन आया और इस बार उन्हें कर्ण का रोल ऑफर हुआ।
पंकज ने सहमति दे दी, लेकिन चुनौतियों का सामना करना बाकी था। एक पुराने इंटरव्यू में उन्होंने स्वीकार किया कि उनकी इंग्लिश मीडियम में पढ़ाई हुई थी। इस वजह से उन्हें कर्ण के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी और संस्कृत शब्दों का उच्चारण भी नहीं आता था। जब वह सेट पर डायलॉग बोलते थे, तो उच्चारण अशुद्ध हो जाता था और वह घबरा जाते थे।
इसके बाद उन्हें टीम के एक सदस्य ने शानदार सलाह दी कि हिंदी अखबार और किताबें पढ़ें, जिससे उनका उच्चारण सुधरेगा। लेकिन, असली जादू दो रचनाओं से हुआ। शिवाजी सावंत की 'मृत्युंजय' और रामधारी सिंह दिनकर की 'रश्मिरथी' ने धीर की काफी मदद की। 'मृत्युंजय' ने उन्हें दानवीर की आंतरिक पीड़ा और युद्ध के द्वंद्व को समझने में मदद की, जबकि 'रश्मिरथी' ने उनके उच्चारण को सुधारने और किरदार में गहराई देने में मदद की।
फिर क्या था, पंकज को कर्ण की भूमिका से इतनी प्रसिद्धि मिली कि वह पॉपुलैरिटी पोल में तीसरे नंबर पर पहुंच गए। एक इंटरव्यू में पंकज धीर ने कर्ण की मौत वाले एपिसोड से जुड़ा एक किस्सा भी सुनाया था। जब बस्तर के एक आदिवासी गांव में हजारों लोगों ने शोक में सिर मुंडवा लिए थे। मध्य प्रदेश के तत्कालीन सीएम के कहने पर पंकज वहां पहुंचे, तो लोगों ने उन्हें चांदी में तौला। पंकज इस दृश्य को देखकर स्तब्ध रह गए।
पंकज धीर का इसी साल 15 अक्टूबर को कैंसर के कारण निधन हो गया।