क्या आरएसएस वास्तव में पूरे विश्व का सबसे अनोखा संगठन है? जानें मोहन भागवत से
सारांश
Key Takeaways
- आरएसएस का गठन समाज की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर हुआ है।
- संघ भारत समेत कई देशों में समाजसेवी कार्य कर रहा है।
- डॉ. मोहन भागवत का मानना है कि संघ आवश्यकता के रूप में अस्तित्व में आया।
- संघ के १०० वर्ष पूरे होने पर व्याख्यान श्रृंखला आयोजित की गई।
- भारत तभी विश्व गुरु बनेगा जब वह अपनेपन का सिद्धांत सिखाएगा।
बेंगलुरु, ८ नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। कर्नाटक के बेंगलुरु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की दो दिवसीय व्याख्यानमाला के पहले दिन शनिवार को सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने संबोधित किया। इस अवसर पर उन्होंने संघ को विश्व का सबसे अनोखा संगठन बताया। उन्होंने यह भी कहा कि आज संघ, भारत सहित कई देशों में समाजसेवी कार्य कर रहा है।
आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने बेंगलुरु में 'संघ की यात्रा के १०० वर्ष पूरे होने पर' नए क्षितिज व्याख्यान श्रृंखला का उद्घाटन किया। यह सत्र विश्व संवाद केंद्र कर्नाटक द्वारा आयोजित किया गया, जिसमें संघ के विकास और अपनी शताब्दी वर्ष की ओर बढ़ते भविष्य के दिशा-निर्देशों पर चर्चा की गई।
उन्होंने कहा, "आरएसएस के समर्थन या विरोध में आपकी जो भी राय हो, वह तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए, धारणा पर नहीं। जब हमने अपने सौ वर्ष पूरे किए, तो हमने सोचा कि देश में चार जगहों (दिल्ली, बेंगलुरु, मुंबई, कलकत्ता) पर ऐसी व्याख्यान श्रृंखला आयोजित की जाए।"
डॉ. मोहन भागवत ने बताया, "संघ का गठन एक आवश्यकता के रूप में हुआ और यह कोई प्रतिक्रिया या विरोध नहीं है। हमारे पास आक्रमणों का एक लंबा इतिहास रहा है और स्वतंत्रता प्राप्त करने का अंतिम प्रयास १८५७ में हुआ था। यह एक अखिल भारतीय प्रयास था।"
उन्होंने कहा, "हमें संघ के बारे में जानना चाहिए। कुछ लोग इसे किसी विशेष परिस्थिति की प्रतिक्रिया मानते हैं, जबकि यह सच नहीं है। संघ हर समाज की एक अनिवार्य आवश्यकता को पूरा करने के लिए है।"
डॉ. मोहन भागवत ने कहा, "भारत तभी विश्व गुरु बनेगा जब वह दुनिया को अपनेपन का सिद्धांत सिखाएगा। हमारी परंपरा ‘ब्रह्म’ या ‘ईश्वर’ कहती है, जिसे आज विज्ञान ‘यूनिवर्सल कॉन्शसनेस’ कहता है।"