क्या सपनों में उड़ान और फिजिक्स के फॉर्मूलों ने मृणाल सेन को फिल्मकार बनाया?
सारांश
Key Takeaways
- मृणाल सेन ने भारतीय सिनेमा में समानांतर सिनेमा को नई दिशा दी।
- उन्होंने फिजिक्स से सिनेमा की ओर मुड़ने का साहस किया।
- उनकी फिल्में अक्सर सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित रहीं।
- 'भुवन शोम' ने भारतीय सिनेमा में न्यू सिनेमा आंदोलन की शुरुआत की।
- उनकी अंतिम फिल्म 'अमर भुबन' 2002 में आई।
नई दिल्ली, 29 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। यह कहानी है एक ऐसे फिल्मकार की, जिसने समानांतर सिनेमा का सृजन किया और सामाजिक मान्यताओं व परंपराओं को चुनौती दी। मृणाल सेन ने भारतीय फिल्म जगत में एक नई क्रांति का आगाज किया, जहां समांतर सिनेमा के साथ यथार्थपरक फिल्मों का नया युग शुरू हुआ।
सत्यजीत रे और ऋत्विक घटक के साथ बांग्ला सिनेमा की त्रिमूर्ति में शामिल, मृणाल सेन ने बांग्ला और हिंदी की कई फिल्मों का निर्देशन किया। उनका जीवन सिनेमा से दूर था, लेकिन एक अनजाने मोड़ पर सिनेमा ने उन्हें समाज से संवाद करने की भाषा बना दिया।
उनकी फिल्मी यात्रा में एक दिलचस्प किस्सा है। मृणाल सेन का पसंदीदा विषय फिजिक्स था, जिसने उन्हें साउंड रिकॉर्डिंग में दिलचस्पी पैदा की। एक स्टूडियो में काम करने के दौरान वे मेंटेनेंस डिपार्टमेंट में डाल दिए गए, जबकि उन्हें साउंड में रुचि थी।
पढ़ाई में रुचि के कारण नौकरी में ज्यादा दिन नहीं टिक सके। नेशनल लाइब्रेरी, जो उस समय इंपीरियल लाइब्रेरी के नाम से जानी जाती थी, में वे हर तरह की चीजें पढ़ने में व्यस्त रहते थे।
मृणाल सेन ने एक इंटरव्यू में कहा था, "मैं हर प्रकार की किताबें पढ़ता था। मुझे कोई दिशा नहीं पता थी। फिर मैंने सिनेमा के एस्थेटिक्स पर पढ़ने का निर्णय लिया। एक किताब मिली, जिसमें मुझे सिनेमा की सुंदरता का अनुभव हुआ।"
उन्होंने आगे बताया, "युद्ध के दौरान 'फ्रेंड्स ऑफ द सोवियत यूनियन' और 'एंटीफासिस्ट राइटर्स एसोसिएशन' जैसे संगठन सक्रिय थे, जिनसे प्रेरित होकर मैं फिल्में देखने लगा।"
हालांकि, उनकी दिलचस्पी बौद्धिक थी और उन्हें एक मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव की नौकरी करनी पड़ी। यह ज्यादा समय तक नहीं चला और वे कलकत्ता के एक फिल्म स्टूडियो में ऑडियो टेक्नीशियन बन गए।
मृणाल सेन ने 1953 में अपनी पहली फीचर फिल्म बनाई, जिसे उन्होंने जल्द ही भुलाने का प्रयास किया। वे कहते हैं, "जब मैंने सिनेमा की एस्थेटिक्स पर लिखना शुरू किया, मैंने सोचा, अब फिल्में बनाने का समय है।"
हालांकि, उनकी अगली फिल्म, 'नील आकाशेर नीचे', ने उन्हें पहचान दिलाई। 'भुवन शोम' ने उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख फिल्म निर्माता के रूप में स्थापित किया।
उनकी अगली कुछ फिल्में राजनीतिक थीं, जिससे उन्हें एक मार्क्सवादी कलाकार के रूप में ख्याति मिली। इस दौर में उनकी फिल्में अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने लगीं।
मृणाल सेन ने कभी भी अपने माध्यम के साथ प्रयोग करना बंद नहीं किया। उनकी आखिरी फिल्म 'अमर भुबन' 2002 में आई।
अपनी जिंदगी के अंतिम वर्षों में उन्होंने कई किताबें पूरी कीं, जिनमें उनकी आत्मकथा शामिल है।
2017 में अपनी पत्नी को खोने के बाद उनकी सेहत खराब होने लगी और 30 दिसंबर 2018 को उनका निधन हो गया।