क्या स्वतंत्रता दिवस पर गूंजा 'शहनाई' का गीत, 'संडे के संडे' बना विवादित और हिट?

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क्या स्वतंत्रता दिवस पर गूंजा 'शहनाई' का गीत, 'संडे के संडे' बना विवादित और हिट?

सारांश

क्या आप जानते हैं कि स्वतंत्रता दिवस पर रिलीज हुई फिल्म 'शहनाई' ने हिंदी सिनेमा को कैसे प्रभावित किया? इस फिल्म के हिट गाने 'आना मेरी जान संडे के संडे' ने एक नई परिभाषा दी, लेकिन इसके साथ ही यह विवादों में भी रहा। जानिए इस गाने के पीछे की कहानी और इसके प्रभाव के बारे में।

Key Takeaways

  • 1947 में रिलीज हुई फिल्म 'शहनाई' ने हिंदी सिनेमा में नई दिशा दी।
  • 'आना मेरी जान संडे के संडे' गाना हिट होने के साथ-साथ विवादों में भी रहा।
  • इस गाने ने समाज में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे को उठाया।
  • समय के साथ इस गाने ने विज्ञापनों में भी अपनी पहचान बनाई।
  • सी. रामचंद्र के संगीत ने गाने को अमिट बना दिया।

मुंबई, 13 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। 15 अगस्त 1947, जब समस्त देश आजादी के जश्न में डूबा हुआ था, उसी दिन एक फिल्म प्रदर्शित हुई जिसने हिंदी सिनेमा में एक नया अध्याय जोड़ा। इस फिल्म का नाम था 'शहनाई', जो मनोरंजन की दुनिया में एक बड़ी सफलता साबित हुई। यह फिल्म 133 मिनट लंबी थी और इसके संगीत निर्देशक सी. रामचंद्र थे, जिन्होंने अपने अनोखे संगीत से इस फिल्म को अमिट बना दिया।

इस फिल्म का सबसे प्रसिद्ध और हिट गाना था 'आना मेरी जान संडे के संडे'। इस गाने को शमशाद बेगम और सी. रामचंद्र ने गाया था। यह गाना उस समय के युवाओं और आम जनता के बीच काफी लोकप्रिय हो गया। यह गाना जल्द ही म्यूजिक चार्ट्स में शीर्ष पर पहुंच गया और 1947 के सबसे प्रिय गीतों में शामिल हुआ। उस समय जब देश विभाजन की त्रासदी से गुजर रहा था, यह गाना एक हल्की राहत और खुशी का स्रोत बन गया।

इस गीत के बोल और संगीत में एक ताजगी थी। निर्देशक पी. एल. संतोषी ने इस गाने को पर्दे पर जीवंत किया। गाने में अभिनेत्री दुलारी और अभिनेता मुमताज अली ने मुख्य भूमिका निभाई। गाने में एक गांव की लड़की और एक विदेशी लड़के के बीच हल्का रोमांस दिखाया गया, जो दर्शकों को भा गया।

सी. रामचंद्र ने इस गाने में वेस्टर्न म्यूजिक का उपयोग कर इसे एक नई पहचान दी, जो उस समय के लिए अनोखा था। इस गाने की सफलता को देखते हुए इसी शैली में 'गोरे गोरे ओ बांके छोरे' और 'शोला जो भड़के' जैसे गाने भी बनाए गए।

हालांकि, 'आना मेरी जान संडे के संडे' जितना प्रसिद्ध हुआ, उतना विवादों में भी रहा। कुछ लोगों ने इसे तुच्छ करार दिया, वहीं कुछ ने इसे अश्लील कहा।

उस समय की प्रसिद्ध फिल्म पत्रिका 'फिल्म इंडिया' को एक पाठक ने पत्र लिखकर इस गाने की निंदा की और कहा कि ऐसे गाने युवा मन को नैतिक रूप से बिगाड़ सकते हैं। इस प्रकार के गानों पर सवाल उठाए गए कि क्या आजादी के साथ आई अभिव्यक्ति की छूट कहीं सामाजिक मूल्यों को प्रभावित कर रही है?

लेकिन समय के साथ लोगों की सोच में परिवर्तन आया। 1990 के दशक की शुरुआत में वही गाना जो एक समय विवादित था, अब टीवी विज्ञापनों की जान बन गया। नेशनल एग कोआर्डिनेशन कमेटी (एनईसीसी) ने देश में अंडों की खपत बढ़ाने के लिए इसी धुन पर आधारित एक विज्ञापन जिंगल बनाया, 'खाना मेरी जान, मेरी जान मुर्गी के अंडे'। यह जिंगल इतना लोकप्रिय हुआ कि हर उम्र के लोग इसे गुनगुनाने लगे और यह उस दौर के सबसे चर्चित विज्ञापनों में से एक बन गया।

Point of View

यह कहना है कि कला और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का होना आवश्यक है, लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि समाज में इसकी सीमाएँ क्या हैं। 'शहनाई' का गाना 'संडे के संडे' एक उदाहरण है, जिसने न केवल मनोरंजन किया बल्कि विवादों को भी जन्म दिया। हमें इस बिंदु पर विचार करना चाहिए कि क्या आजादी के साथ आई अभिव्यक्ति का स्वरूप सामाजिक मूल्यों को चुनौती दे रहा है?
NationPress
18/08/2025

Frequently Asked Questions

गाने 'आना मेरी जान संडे के संडे' के बोल क्या हैं?
इस गाने के बोल प्यार और युवा रोमांस को दर्शाते हैं, जिसमें एक गांव की लड़की और विदेशी लड़के के बीच बातचीत दिखाई गई है।
क्या 'शहनाई' फिल्म आज भी लोकप्रिय है?
'शहनाई' फिल्म और इसके गाने आज भी लोगों के बीच चर्चित हैं, खासकर विज्ञापनों में इसके जिंगल का इस्तेमाल होने के कारण।
क्या इस गाने को लेकर विवाद वास्तविक थे?
जी हां, इस गाने को लेकर कई आलोचनाएं हुई थीं, जिसमें इसे अश्लील कहने वाले भी शामिल थे।
क्या आजादी के समय फिल्में विवादित होती थीं?
हाँ, आजादी के समय फिल्मों में कई ऐसे मुद्दे उठाए गए थे जो समाज में चर्चा का विषय बने थे।
सी. रामचंद्र का इस गाने में योगदान क्या था?
सी. रामचंद्र ने अपने अनोखे संगीत से इस गाने को अमिट बना दिया, जिससे यह गाना आज भी याद किया जाता है।