क्या उस्ताद इकबाल अहमद खान दिल्ली घराने की धड़कन थे, जिनके सुरों में शहर की आत्मा बसी थी?

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क्या उस्ताद इकबाल अहमद खान दिल्ली घराने की धड़कन थे, जिनके सुरों में शहर की आत्मा बसी थी?

सारांश

उस्ताद इकबाल अहमद खान, दिल्ली घराने के एक महान शास्त्रीय गायक, ने अपने सुरों में दिल्ली की आत्मा को समाहित किया। उनके अलाप से लेकर ठुमरी तक, उन्होंने भारतीय संगीत में एक नई पहचान बनाई। जानिए उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं और योगदान के बारे में।

Key Takeaways

  • उस्ताद इकबाल अहमद खान का संगीत में योगदान अद्वितीय था।
  • उनकी ठुमरी में दिल्ली घराने की नजाकत थी।
  • उन्होंने कई महत्वपूर्ण पुरस्कार जीते, जैसे संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
  • उनका जीवन संगीत शिक्षा और परंपरा का प्रतीक था।
  • उनका निधन भारतीय संगीत जगत के लिए एक बड़ा नुकसान है।

नई दिल्ली, 16 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। दिल्ली का नाम सुनते ही दाग देहलवी, मिर्जा गालिब जैसे कई शायरों के साथ-साथ कवियों और लेखकों का ख्याल मन में आता है। इसके साथ ही, इकबाल अहमद खान नामक एक अद्वितीय शास्त्रीय गायक ने दिल्ली घराने में अपनी पहचान बनाई। उनके अलाप में दिल्ली की धड़कन सुनाई देती थी, और तबले की तिरकट के साथ उनकी आवाज़ का उतार-चढ़ाव भारतीय संस्कृति के विभिन्न रंगों को जीवंत कर देता था।

जब उस्ताद इकबाल अहमद खान मंच पर होते थे, उनका गायन विद्वतापूर्ण होने के साथ-साथ उनकी ठुमरी, दादरा, टप्पा और गज़लें भावुकता और जमीनी जुड़ाव का प्रतीक होती थीं। वे खयाल के उस्ताद होते हुए भी उप-शास्त्रीय संगीत में अपनी विशेषता के कारण भीड़ से अलग दिखते थे। उनकी ठुमरी में दिल्ली घराने की नजाकत थी, एक मधुर लय जो श्रोताओं को राग की आत्मा से जोड़ देती थी।

उनका जीवन एक दिलचस्प पहलू यह था कि उन्हें अक्सर अपने भीतर के कलाकार और शिक्षक के बीच संतुलन बनाना पड़ता था। समीक्षकों ने कहा कि जब वे संगीत परंपरा के इतिहास या राग के सूक्ष्म नियमों को समझाने में कम ध्यान देते थे, तब उनका कलाकार रूप अद्भुत प्रदर्शन करता था।

उनकी डिस्कोग्राफी में अमीर खुसरो द्वारा रचित दुर्लभ तराने शामिल हैं, जैसे कि 'चांदनी केदार तराना'। उनके लिए गाना केवल एक कला नहीं, बल्कि इतिहास को संरक्षित करने का एक माध्यम था। उनके सक्रिय करियर की शुरुआत 1966 में हुई थी और यह पांच दशकों से अधिक चला।

उस्ताद खान को संगीत की पहली और सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा अपने नाना, संगीत मार्तंड उस्ताद चांद खान साहब से मिली। उनकी वंशावली की शक्ति के चलते उन्होंने कई मास्टर्स से सीखने का अवसर पाया, जिनमें उनके दादा, परदादा, चाचा और पिता शामिल थे।

इसी प्रशिक्षण के बल पर वे आकाशवाणी के शीर्ष-ग्रेड गायक बने। उन्होंने 'दिल्ली दरबार' की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारतीय शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देना था।

उन्होंने मीडिया और थिएटर के लिए भी संगीत तैयार किया, जिसमें टीवी धारावाहिक इंद्र सभा और वृत्तचित्र याद-ए-गालिब शामिल हैं। उन्होंने भारत सरकार के ई-गवर्नेंस प्रभाग के लिए गुलजार द्वारा लिखे गए गीत के लिए भी संगीत दिया।

उनके योगदान को भारत के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मानों से मान्यता मिली, जिसमें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (2014) और मिर्जा गालिब पुरस्कार (2008) शामिल हैं।

उन्होंने डॉ. अंजली मित्तल और सोनिया मिश्रा जैसे शिष्यों को प्रशिक्षित किया, जिन्होंने बाद में संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर घराने की शैली का प्रदर्शन किया।

17 दिसंबर, 2020 को उनका निधन एक महान संगीतकार की कथा का अंत था। उनके निधन पर अमजद अली खान ने कहा, "दिल्ली घराने के प्रमुख उस्ताद इकबाल अहमद खान साहब के निधन से मैं हैरान और दुखी हूँ। इंडियन आइडल 2020 के दौरान उनकी मुझसे थोड़ी बातचीत हुई थी। वह संगीत और सभी संगीतकारों के प्रति बहुत दयालु और सहानुभूतिपूर्ण थे।"

Point of View

लेकिन उनकी धुनें और सुर हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगे।
NationPress
16/12/2025

Frequently Asked Questions

उस्ताद इकबाल अहमद खान का योगदान क्या था?
उस्ताद इकबाल अहमद खान ने दिल्ली घराने की शास्त्रीय संगीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कई शिष्यों को प्रशिक्षित किया।
उनका कौन सा गाना प्रसिद्ध है?
उनकी डिस्कोग्राफी में 'चांदनी केदार तराना' शामिल है, जो अमीर खुसरो द्वारा रचित है।
उस्ताद खान ने किसकी शिक्षा ली?
उस्ताद खान ने अपने नाना, उस्ताद चांद खान साहब से संगीत की प्रारंभिक शिक्षा ली।
उनके निधन पर क्या प्रतिक्रियाएँ थीं?
उनके निधन पर कई संगीतकारों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी, जिसमें अमजद अली खान का बयान भी शामिल था।
उस्ताद खान की विशेषताएँ क्या थीं?
उस्ताद खान की विशेषताएँ उनके अलाप, ठुमरी और दादरा में नजाकत और भावुकता थीं।
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