क्या कम नींद एक 'साइलेंट हेल्थ क्राइसिस' है?
सारांश
Key Takeaways
- नींद की कमी एक गंभीर स्वास्थ्य संकट है।
- कम नींद का असर मस्तिष्क और हृदय पर पड़ता है।
- युवाओं में सोशल मीडिया और मोबाइल का अधिक उपयोग नींद कम कर रहा है।
- नींद की कमी से मोटापा और डिप्रेशन का खतरा बढ़ता है।
- स्वस्थ जीवन के लिए पर्याप्त नींद आवश्यक है।
नई दिल्ली, 16 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। आज के दौर में, विशेषज्ञों और चिकित्सकों का मानना है कि नींद की कमी एक गंभीर स्वास्थ्य संकट का रूप ले चुकी है। पहले इसे केवल आराम या आदत समझा जाता था, लेकिन अब अनुसंधान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कम नींद का प्रभाव मस्तिष्क, हृदय, प्रतिरक्षा प्रणाली और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक रूप से पड़ता है।
अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी) ने इसे एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बताया है। उनकी रिपोर्ट के अनुसार, लगभग हर तीन वयस्कों में से एक रोजाना पर्याप्त नींद नहीं ले पा रहा है। भारत में एक बड़े सर्वे से पता चला है कि युवाओं में यह समस्या तेजी से बढ़ रही है, जहाँ देर रात तक फोन का इस्तेमाल, ओवरवर्क, तनाव और अनियमित दिनचर्या नींद के लिए सबसे बड़े दुश्मन बन गए हैं।
कम नींद का मस्तिष्क पर प्रभाव कई अध्ययनों में स्पष्ट रूप से देखा गया है। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की एक अध्ययन में कहा गया है कि एक रात की खराब नींद भी याददाश्त, निर्णय लेने की क्षमता और सीखने की गति को 40 प्रतिशत तक कम कर सकती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि कम नींद से मस्तिष्क के वे हिस्से सक्रिय हो जाते हैं जो चिंता और डर को बढ़ाते हैं, जिससे व्यक्ति छोटी-छोटी बातों पर भी तनाव महसूस करने लगता है। यही कारण है कि नींद की कमी वाले लोगों में एंग्जाइटी और डिप्रेशन का खतरा बढ़ जाता है।
दिल और शरीर पर इसके गंभीर प्रभाव भी देखे गए हैं। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की रिसर्च में बताया गया है कि जो लोग 5 घंटे से कम सोते हैं, उनमें हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा 30-40 फीसदी बढ़ जाता है। नींद की कमी शरीर में सूजन को बढ़ा देती है, जिससे ब्लड प्रेशर और शुगर लेवल प्रभावित हो सकते हैं। कई चिकित्सकों का कहना है कि नींद की कमी मोटापे को भी बढ़ावा देती है, क्योंकि देर रात तक जागने पर भूख बढ़ाने वाला हार्मोन घ्रेलिन बढ़ जाता है और शरीर को कैलोरी की अधिक आवश्यकता महसूस होती है। यही कारण है कि कम सोने वाले लोग रात में जंक फूड का सेवन अधिक करते हैं।
किशोरों और युवाओं में नींद की कमी एक महामारी के रूप में उभर रही है। द लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन ने दिखाया कि किशोरों में सोशल मीडिया, रात में देर तक सक्रिय रहना और स्क्रीन की नीली रोशनी नींद को 60-90 मिनट तक कम कर देती है। भारत में एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि 70 प्रतिशत से ज्यादा छात्र रात में मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं, जिससे उनके नींद चक्र पर गंभीर असर पड़ता है। यह आदत आगे चलकर मानसिक थकान, चिड़चिड़ापन, कम एकाग्रता और अकादमिक प्रदर्शन में गिरावट का कारण बनती है।