क्या नाक केवल सांस लेने का रास्ता है या शरीर का सुरक्षा गार्ड? जानें आयुर्वेद क्या कहता है

Click to start listening
क्या नाक केवल सांस लेने का रास्ता है या शरीर का सुरक्षा गार्ड? जानें आयुर्वेद क्या कहता है

सारांश

आयुर्वेद में नाक की भूमिका को एक सुरक्षा कवच के रूप में देखा गया है, जो न केवल श्वसन कार्य में सहायक है, बल्कि स्वास्थ्य के अनेक पहलुओं को भी प्रभावित करता है। जानिए नाक के महत्व और आयुर्वेदिक चिकित्सा में इसके उपयोग के बारे में।

Key Takeaways

  • नाक का आयुर्वेद में अत्यधिक महत्व है।
  • यह श्वसन के साथ-साथ शरीर के सुरक्षा कवच का कार्य करती है।
  • नाक के माध्यम से औषधियों का उपयोग स्वास्थ्य में सुधार करता है।
  • यह बाहरी हानिकारक तत्वों को छानने में सहायक है।
  • योग और प्राणायाम में नाक का उपयोग महत्वपूर्ण है।

नई दिल्ली, १३ सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। आयुर्वेद में नाक को केवल श्वसन अंग के तौर पर नहीं, बल्कि शरीर के सुरक्षा कवच के रूप में भी माना जाता है। आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथ जैसे चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदय में नाक की संरचना, कार्य और चिकित्सा प्रक्रियाओं को विशेष महत्व दिया गया है।

आयुर्वेद में नाक को 'प्राणायः द्वारम्' कहा गया है, जिसका मतलब है जीवन ऊर्जा का प्रवेश मार्ग। प्राण वायु के बिना शरीर का कोई भी कार्य संभव नहीं है। सांस के माध्यम से जो वायु शरीर में प्रवेश करती है, वही कोशिकाओं को ऑक्सीजन पहुंचाकर जीवन बनाए रखती है।

आयुर्वेद के अनुसार नाक का सीधा संबंध मस्तिष्क से होता है, इसलिए आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में नस्य कर्म जैसी प्रक्रिया विकसित की गई है। इसमें औषधियों को नाक के माध्यम से डाला जाता है ताकि सिर, मस्तिष्क, नेत्र, कंठ और नाड़ियों से संबंधित विकारों का उपचार किया जा सके। यह मानसिक थकान, भूलने की बीमारी, सिरदर्द, नींद की कमी और चिंता जैसे रोगों में अत्यंत लाभकारी है।

नाक की शारीरिक बनावट इस प्रकार है कि यह बाहरी हानिकारक कणों, जीवाणुओं और धूल को छानने का कार्य करती है। नाक के भीतर छोटे बाल और श्लेष्मा (म्यूकस) होते हैं जो अवांछनीय तत्वों को अंदर प्रवेश करने से रोकते हैं। यह प्रक्रिया शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने में सहायक होती है।

नाक न केवल वायु का प्रवेश मार्ग है, बल्कि वह वायु का शोधन, तापमान संतुलन और आर्द्रता नियंत्रण भी करती है। ठंडी या प्रदूषित हवा को नाक भीतर जाकर गर्म और शुद्ध करती है, जिससे फेफड़ों पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े।

योग और प्राणायाम में नाक का महत्व अत्यधिक है। सभी श्वसन अभ्यास नाक से ही किए जाते हैं, क्योंकि यह मानसिक शांति, तंत्रिका तंत्र की मजबूती और प्राण के संतुलन में सहायक है। अनुलोम-विलोम, नाड़ी शोधन और भ्रामरी जैसी प्राणायाम विधियां नाक के माध्यम से ही की जाती हैं।

Point of View

जो हमारे स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आयुर्वेद के अनुसार, नाक की देखभाल और इसके माध्यम से उपचार करना न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।
NationPress
26/12/2025

Frequently Asked Questions

नाक का आयुर्वेद में क्या महत्व है?
आयुर्वेद में नाक को न केवल श्वसन अंग माना जाता है, बल्कि इसे शरीर के सुरक्षा कवच के रूप में भी देखा जाता है।
नाक के माध्यम से कौन-कौन सी चिकित्सा प्रक्रियाएँ की जा सकती हैं?
नाक के माध्यम से नस्य कर्म जैसी प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है, जिससे सिर, मस्तिष्क, और अन्य अंगों की बीमारियों का उपचार किया जा सकता है।
नाक कैसे बाहरी हानिकारक तत्वों से रक्षा करती है?
नाक में छोटे बाल और श्लेष्मा होते हैं, जो अवांछनीय कणों को छानने का कार्य करते हैं।
क्या नाक का शोधन वायु की गुणवत्ता पर प्रभाव डालता है?
जी हां, नाक ठंडी या प्रदूषित हवा को गर्म और शुद्ध करके फेफड़ों पर नकारात्मक प्रभाव को रोकती है।
योग और प्राणायाम में नाक का क्या योगदान है?
योग और प्राणायाम में नाक का उपयोग श्वसन अभ्यास के लिए किया जाता है, जिससे मानसिक शांति और प्राण का संतुलन बना रहता है।
Nation Press