क्या रीढ़ की हड्डी मानव शरीर का पिलर, प्रोटेक्टर और शॉक एब्जॉर्बर है?

सारांश
Key Takeaways
- रीढ़ की हड्डी मानव शरीर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- इसकी सेहत के लिए योग और प्राणायाम करना आवश्यक है।
- कशेरुकाओं के बीच के इंटरवर्टिब्रल डिस्क शॉक एब्जॉर्बर का काम करते हैं।
- बढ़ती उम्र में लचीलापन घटता है।
- सही बैठने की आदत से रीढ़ की सेहत को बनाए रखा जा सकता है।
नई दिल्ली, 6 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। मानव शरीर में रीढ़ की हड्डी, जिसे स्पाइनल कॉलम या वर्टिब्रल कॉलम के नाम से भी जाना जाता है, एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है। यह न केवल हमें सीधा खड़े रहने में सहायता करती है, बल्कि हमारे शरीर की सभी गतिविधियों, संतुलन और सुरक्षा को भी सुनिश्चित करती है।
रीढ़ की हड्डी कुल 33 कशेरुकाओं से मिलकर बनी होती है, हालांकि कुछ व्यक्तियों में इनकी संख्या विभिन्न हो सकती है, विशेषकर कमर और त्रिकास्थि क्षेत्र में।
भ्रूण अवस्था में इन कशेरुकाओं की संख्या अधिक होती है, लेकिन समय के साथ ये आपस में मिलकर एक संरचना बनाती हैं।
प्रत्येक कशेरुका की अपनी विशेष आकृति और कार्य होता है; उदाहरण के लिए, गर्दन की पहली दो हड्डियाँ सिर को घुमाने और झुकाने की क्षमता देती हैं। गर्दन की हड्डियाँ सबसे छोटी होती हैं, जबकि कमर की हड्डियाँ सबसे बड़ी और मजबूत होती हैं क्योंकि इन्हें पूरे शरीर का वजन सहन करना होता है। कशेरुकाओं के बीच में मौजूद इंटरवर्टिब्रल डिस्क एक प्रकार के शॉक एब्जॉर्बर का काम करती हैं, जो चलने-फिरने और झटकों को सहन करने में सहायक होती हैं। यही कारण है कि सुबह के समय व्यक्ति की ऊंचाई रात की तुलना में 1-2 सेमी अधिक होती है, क्योंकि दिनभर डिस्क पर दबाव के कारण उसमें मौजूद तरल कम हो जाता है।
वर्टिब्रल कॉलम के भीतर स्पाइनल कॉर्ड सुरक्षित रहता है, जो दिमाग से निकलने वाली 31 जोड़ी नसों को शरीर के विभिन्न हिस्सों से जोड़ता है। रीढ़ की प्राकृतिक वक्रता जन्म के समय उपस्थित नहीं होती, लेकिन जैसे-जैसे बच्चा बैठना और चलना सीखता है, यह वक्रता विकसित होती है। खास बात यह है कि मनुष्य और अन्य स्तनधारी, जैसे जिराफ, की गर्दन की हड्डियों की संख्या समान होती है, बस उनके आकार में भिन्नता होती है।
वृद्धावस्था में डिस्क के तरल की मात्रा कम होने से लचीलापन घटता है और रीढ़ कठोर हो जाती है। चोट लगने पर इसका प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि चोट रीढ़ के किस हिस्से में है। गर्दन में चोट से पूरे शरीर पर असर हो सकता है, जबकि कमर की चोट से केवल निचले हिस्से पर प्रभाव पड़ता है।
रीढ़ की सेहत बनाए रखने के लिए नियमित योगासन जैसे भुजंगासन, ताड़ासन, और त्रिकोणासन करना लाभकारी है। प्राणायाम, पौष्टिक आहार (जैसे दूध, तिल, आंवला), सही बैठने की आदत, तिल या भृंगराज तेल की मालिश, सुबह की धूप, और हल्की स्ट्रेचिंग से रीढ़ की मजबूती और लचीलापन बनाए रखा जा सकता है।