क्या मौसम बदलते ही वायरल फीवर से बीमार पड़ना आम है? आयुर्वेद से जानें उपाय

सारांश
Key Takeaways
- वायरल फीवर
- तुलसी का काढ़ागिलोय का रस
- डॉक्टर की सलाह आवश्यक है यदि लक्षण गंभीर हों।
- स्वस्थ आहारयोग
- स्वच्छता
नई दिल्ली, २४ सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। मौसमी परिवर्तन के चलते बुखार का आना आजकल एक सामान्य समस्या बन गई है, जिसे वायरल फीवर के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद इसे ज्वर की श्रेणी में मानता है। सरल शब्दों में, यह शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता का परीक्षण करता है।
वायरल फीवर मुख्यतः वायरस के शरीर में प्रवेश और उसके विकास के कारण होता है। मौसम में अचानक बदलाव, जैसे कि बारिश या गर्मी-ठंडी का अंतर, वायरस के बढ़ने के लिए अनुकूल स्थितियां बनाता है। जिनकी इम्यूनिटी कमजोर होती है, वे इससे जल्दी प्रभावित होते हैं।
साथ ही, यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भी फैल सकता है। यदि कोई व्यक्ति जो वायरल फीवर से ग्रसित है, छींकता या खांसता है, तो उसके आस-पास के लोग भी प्रभावित हो सकते हैं। वायरल फीवर के लक्षणों में अचानक बुखार, शरीर में दर्द, थकान, गले में खराश, खांसी, सिरदर्द, ठंड लगना, भूख में कमी और कभी-कभी दस्त या उल्टी शामिल होते हैं।
वायरल फीवर का उपचार करने के लिए आयुर्वेदिक और घरेलू उपाय बहुत प्रभावी होते हैं। तुलसी का काढ़ा, जिसमें ५-७ तुलसी की पत्तियां, अदरक और काली मिर्च डालकर उबाला जाता है, शरीर को संक्रमण से लड़ने की शक्ति देता है। गिलोय का रस सुबह-शाम २ चम्मच लेने से रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और बुखार नियंत्रित होता है। हल्दी वाला दूध शरीर की थकान दूर करता है और इम्यूनिटी को बढ़ाता है। नींबू और शहद को गुनगुने पानी में मिलाकर पीने से बुखार और कमजोरी में राहत मिलती है। धनिया का काढ़ा और अदरक की चाय भी वायरल संक्रमण को रोकने और शरीर की गर्मी कम करने में सहायक होती हैं। इसके साथ ही, पर्याप्त पानी और तरल पदार्थ जैसे नारियल पानी, सूप और जूस शरीर को डिहाइड्रेशन से बचाते हैं।
वायरल फीवर से बचाव के लिए जीवनशैली में बदलाव आवश्यक हैं। विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर आहार लें, पर्याप्त नींद और आराम करें, तला-भुना और भारी भोजन न करें, बल्कि हल्का और सुपाच्य खाना खाएं। प्राणायाम और योग भी करें। यदि किसी को संक्रमण हो गया है तो वायरस के प्रसार से बचने के लिए उपाय करें, जैसे मास्क का उपयोग।
इसके अलावा, कुछ महत्वपूर्ण तथ्य हैं - जैसे कि हर बुखार वायरल नहीं होता, कभी-कभी टाइफाइड, डेंगू या मलेरिया भी वायरल फीवर जैसा दिखता है। वायरल फीवर अक्सर ५-७ दिनों में अपने आप ठीक हो जाता है, और एंटीबायोटिक दवाइयां वायरस पर असर नहीं करतीं। पसीना आना एक अच्छा संकेत है, यह शरीर की गर्मी को बाहर निकालने की प्रक्रिया है। अलग-अलग वायरस अलग प्रकार के वायरल फीवर उत्पन्न कर सकते हैं। आयुर्वेद में इसे दोषों के असंतुलन और पाचन अग्नि की कमजोरी से संबंधित माना जाता है।