क्या सौ वर्षीय अनुभवी सैनिक की विजय की राह हमें प्रेरित करती है?

सारांश
Key Takeaways
- छेन शेंगली की दृढ़ता हमें प्रेरित करती है।
- जापानी आक्रमण ने कई परिवारों को प्रभावित किया।
- गुरिल्ला युद्ध की रणनीतियाँ प्रभावी साबित हुईं।
- एक व्यक्ति की कहानी राष्ट्र के संघर्ष का प्रतीक बन सकती है।
- विजय का अर्थ केवल व्यक्तिगत सफलता नहीं है, बल्कि सामूहिक संघर्ष का प्रतीक है।
बीजिंग, 10 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। छेन शेंगली का जन्म अगस्त 1922 में उत्तरी चीन के हपेई प्रांत के एक छोटे से गांव में हुआ। हालाँकि उनका परिवार गरीब था, फिर भी वे अपेक्षाकृत खुश थे। लेकिन, 1937 में, जब वे 15 वर्ष के थे, जापानी आक्रमण ने उनकी शांति को पूरी तरह से नष्ट कर दिया।
जापानी आक्रमणकारियों के बमवर्षकों के हवाई हमलों ने उनके जीवन को एक पल में नरक में बदल दिया। उन्होंने कहा कि उस समय, मुझे नहीं पता था कि क्रांति क्या होती है। मैं केवल इतना जानता था कि जापानियों ने मेरे परिवार को मार डाला और मैं बदला लेना चाहता था।
जनवरी 1938 में, 16 वर्षीय छेन शेंगली ने दृढ़ता से राष्ट्रीय क्रांतिकारी सेना की आठवीं रूट सेना में शामिल होकर गुरिल्ला सेनानी बनने का निर्णय लिया। जापानी आक्रमणकारी सेना अच्छी तरह से सुसज्जित और मजबूत थी।
छेन शेंगली और उनके साथियों ने दुश्मन पर हमला करने के लिए मुख्य रूप से गुरिल्ला युद्ध, सुरंग युद्ध और खदान युद्ध जैसी लचीली रणनीतियों का उपयोग किया।
एक जोशीले युवक से एक दृढ़ क्रांतिकारी योद्धा तक, छेन शेंगली ने युद्ध के मैदान में कई बार उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। आज भी, इस सौ वर्षीय वयोवृद्ध सैनिक की आंखों में चमक है। 'विजय' की उनकी राह न केवल एक व्यक्तिगत किंवदंती है, बल्कि सबसे अंधकारमय वर्षों में चीन के अडिग खड़े रहने का एक सूक्ष्म रूप भी है।
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)