क्या बांग्लादेश में जमात और एनसीपी के बीच पीआर प्रणाली को लेकर विवाद बढ़ रहा है?

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क्या बांग्लादेश में जमात और एनसीपी के बीच पीआर प्रणाली को लेकर विवाद बढ़ रहा है?

सारांश

बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी और एनसीपी के बीच पीआर प्रणाली को लेकर टकराव हो रहा है। क्या यह राजनीतिक संघर्ष आगामी चुनावों को प्रभावित करेगा? जानिए इस मुद्दे की गहराई।

Key Takeaways

  • बांग्लादेश में राजनीतिक संघर्ष बढ़ रहा है।
  • जमात-ए-इस्लामी और एनसीपी के बीच टकराव का कारण पीआर प्रणाली है।
  • इस विवाद का आगामी चुनावों पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • जनता को राजनीतिक मुद्दों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
  • दोनो दलों के बीच संवाद की कमी इस मुद्दे को और भी जटिल बना रही है।

ढाका, 20 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बांग्लादेश में आगामी चुनावों से पहले एक नया राजनीतिक संघर्ष उभर कर सामने आया है, जिसमें कट्टरपंथी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी और नेशनल सिटिजन्स पार्टी (एनसीपी) आनुपातिक प्रतिनिधित्व (पीआर) प्रणाली की मांग को लेकर एक-दूसरे पर तीखे वार कर रहे हैं। स्थानीय मीडिया ने इस मुद्दे की जानकारी दी है।

ढाका में आयोजित एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में, जमात और अन्य सात इस्लामी दलों ने अपनी पाँच सूत्री मांगों को समर्थन देने के लिए अपने आंदोलन का चौथा चरण प्रारंभ करते हुए तीन दिवसीय कार्यक्रम की घोषणा की। इसमें जुलाई चार्टर पर नवंबर में जनमत संग्रह और आगामी राष्ट्रीय चुनाव को पीआर प्रणाली के तहत आयोजित करने की बात शामिल है।

इस घोषणा के बाद, एनसीपी संयोजक नाहिद इस्लाम ने अपने सोशल मीडिया पर कहा कि जमात द्वारा उठाई गई 'आनुपातिक प्रतिनिधित्व (पीआर) आंदोलन' की मांग केवल एक सोची-समझी राजनीतिक धोखाधड़ी है।

उन्होंने यह भी कहा, "इसका उद्देश्य जानबूझकर सर्वसम्मति आयोग की सुधार प्रक्रिया को बाधित करना और राष्ट्रीय संवाद को वास्तविक मुद्दों से भटकाना है।"

नाहिद ने बताया कि देश की संसद में जनसंपर्क प्रणाली पर आधारित एक उच्च सदन की स्थापना की मुख्य मांग को एक संवैधानिक सुरक्षा उपाय के रूप में देखा गया था।

उन्होंने जमात और उसके सहयोगियों पर इस एजेंडे को हाईजैक करने और इसे अपने संकीर्ण स्वार्थों की पूर्ति के लिए सौदेबाजी का साधन बनाने का आरोप लगाया। उनका कहना था कि इनका उद्देश्य कभी सुधार नहीं था, बल्कि छल-कपट था।

एनसीपी नेता ने लिखा, "जमात-ए-इस्लामी ने कभी भी सुधार की चर्चा में भाग नहीं लिया, न ही जुलाई के विद्रोह से पहले और न ही बाद में। उनके पास कोई ठोस प्रस्ताव या संवैधानिक दृष्टिकोण नहीं था। सर्वसम्मति आयोग में सुधारों का उनका अचानक समर्थन केवल एक राजनीतिक तोड़फोड़ की कोशिश है।"

नाहिद की टिप्पणियों के कुछ घंटों बाद, जमात के सहायक महासचिव अहसानुल महबूब जुबैर ने अपने सोशल मीडिया पर एनसीपी नेता के बयान को "अस्पष्ट" और "भ्रामक" बताया।

जमात नेता ने कहा, "हम समझ नहीं पाए कि वह (नाहिद) क्या कहना चाहते थे। देश उनसे ऐसे अपरिपक्व बयानों की उम्मीद नहीं करता।"

बांग्लादेश अगले साल होने वाले चुनावों से पहले बढ़ती अनिश्चितता और राजनीतिक उथल-पुथल का सामना कर रहा है।

जिन पार्टियों ने पहले शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को उखाड़ने के लिए अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के साथ मिलकर काम किया था, वे अब सुधार प्रस्तावों को लेकर आपस में भिड़ गई हैं।

Point of View

यह स्पष्ट है कि बांग्लादेश में राजनीतिक संघर्ष गहराता जा रहा है। जमात और एनसीपी का यह विवाद न केवल राजनीतिक स्थिरता को चुनौती दे रहा है, बल्कि आगामी चुनावों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। देश की जनता को ऐसे मुद्दों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
NationPress
20/10/2025

Frequently Asked Questions

बांग्लादेश में पीआर प्रणाली का क्या महत्व है?
पीआर प्रणाली का उद्देश्य राजनीतिक प्रतिनिधित्व को अधिक संतुलित और समावेशी बनाना है, जिससे विभिन्न दलों को अपने विचार प्रस्तुत करने का अवसर मिले।
जमात-ए-इस्लामी और एनसीपी के बीच विवाद क्यों बढ़ रहा है?
दोनों पार्टियों के बीच राजनीतिक स्वार्थ और चुनावी रणनीतियों को लेकर मतभेद हैं, जो इस विवाद को बढ़ा रहे हैं।
क्या यह विवाद आगामी चुनावों को प्रभावित करेगा?
हां, यह विवाद चुनावी माहौल को प्रभावित कर सकता है और मतदाता के रुख को भी बदल सकता है।
जमात का पीआर प्रणाली पर क्या रुख है?
जमात का मानना है कि पीआर प्रणाली से उनका राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ेगा।
एनसीपी का इस मुद्दे पर क्या कहना है?
एनसीपी का आरोप है कि जमात का यह आंदोलन केवल राजनीतिक धोखाधड़ी है।