क्या बीएनपी ने कार्यकारी आदेश से पार्टियों पर पाबंदी को 'खतरनाक' बताया?

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क्या बीएनपी ने कार्यकारी आदेश से पार्टियों पर पाबंदी को 'खतरनाक' बताया?

सारांश

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने कार्यकारी आदेश के माध्यम से राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया को खतरनाक बताया है। पार्टी का मानना है कि केवल अदालतों को इस प्रकार के मामलों पर निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए। क्या यह राजनीतिक माहौल को प्रभावित करेगा?

Key Takeaways

  • बीएनपी ने कार्यकारी आदेश को खतरनाक कहा।
  • केवल अदालतों को निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए।
  • राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
  • अवामी लीग पर भी मुकदमे की मांग की गई।
  • 2024 के चुनाव में 28 दलों की भागीदारी।

ढाका, 17 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने चेतावनी दी है कि किसी भी राजनीतिक दल पर कार्यकारी आदेश के माध्यम से प्रतिबंध लगाना एक "खतरनाक प्रथा" होगी। पार्टी ने यह भी कहा कि केवल अदालतों को ही ऐसे मामलों में निर्णय लेने का अधिकार है।

स्थानीय मीडिया के अनुसार, बीएनपी के स्थायी समिति के सदस्य सलाहुद्दीन अहमद ने मंगलवार को ढाका में अपने गुलशन स्थित आवास पर पत्रकारों से यह बात कही।

बांग्लादेशी मीडिया आउटलेट यूएनबी ने बताया कि बीएनपी नेता ने कहा, "हम किसी भी पार्टी या उसकी गतिविधियों पर कार्यकारी आदेश के जरिए प्रतिबंध लगाने का समर्थन नहीं करते। अगर किसी राजनीतिक संगठन पर नरसंहार, मानवता के खिलाफ अपराध या युद्ध अपराध जैसे आरोप हैं, तो उन्हें अदालत में लाया जाना चाहिए।"

सलाहुद्दीन ने कहा कि किसी भी पार्टी का भविष्य न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से ही तय होना चाहिए और चुनाव आयोग अदालत के फैसले को मानने के लिए बाध्य होगा।

कट्टरपंथी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी और कुछ अन्य इस्लामी पार्टियों द्वारा बीएनपी और उसके 14-दलीय गठबंधन पर प्रतिबंध लगाने की मांग पर प्रतिक्रिया देते हुए, बीएनपी नेता ने जोर देकर कहा कि ऐसे मामलों का फैसला कानूनी प्रक्रिया के जरिए ही होना चाहिए।

सलाहुद्दीन ने कहा, "अगर उनके आरोप सही हैं, तो उन्हें अदालत में उठाने दें। किसी भी अन्य प्रक्रिया के जरिए, कार्यकारी आदेश के जरिए, राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश करना एक खतरनाक प्रक्रिया होगी।"

बीएनपी नेता ने यह भी याद दिलाया कि 2024 के चुनाव में लगभग 28 पंजीकृत दलों ने भाग लिया था। उन्होंने सवाल किया, "अगर फासीवाद या तानाशाही के नाम पर प्रतिबंध लगाने की मांग की जा रही है, तो सभी 28 दलों पर प्रतिबंध लगाना होगा। फिर चुनाव किसके साथ होंगे?"

उन्होंने आगे कहा, "इस देश में, जो लोग अभी राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं—अगर वे बाद में कह दें कि वे भी चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे, तो क्या चुनाव होंगे ही? ऐसी मांगों के पीछे उनका मकसद अलग हो सकता है। हो सकता है कि वे और दलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग करके अतिरिक्त लाभ हासिल करना चाहते हों।"

अवामी लीग पर प्रतिबंध के बारे में, सलाहुद्दीन ने कहा कि पार्टी "पहले यह मांग करती है कि अवामी लीग, एक राजनीतिक दल के रूप में, मुकदमे के दायरे में आए और फिर अदालत तय करेगी कि वे राजनीति में बने रह सकते हैं या नहीं।"

जमात-ए-इस्लामी और कुछ अन्य इस्लामी दलों के आनुपातिक प्रतिनिधित्व (पीआर) और अन्य सुधारों की मांग पर सलाहुद्दीन ने कहा कि उनकी पार्टी पीआर प्रणाली का पूरी तरह से विरोध करती है।

उन्होंने कहा, "हम हर जगह (निचले और ऊपरी सदन, दोनों में) पीआर के खिलाफ हैं। अगर कोई पार्टी ऐसा चाहती है, तो उसे इसे अपने घोषणापत्र में शामिल करना चाहिए और जनादेश मांगना चाहिए। अगर जनता इसका समर्थन करती है, तभी वे कानून बना सकते हैं।"

बीएनपी नेता ने इस्लामी पार्टियों द्वारा घोषित तीन दिवसीय विरोध कार्यक्रमों को अगले साल होने वाले चुनाव को पटरी से उतारने का एक स्पष्ट प्रयास बताया।

Point of View

बीएनपी की यह चेतावनी बांग्लादेश में लोकतंत्र की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। राजनीतिक दलों पर कार्यकारी आदेश के माध्यम से प्रतिबंध लगाना न केवल संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी बाधित कर सकता है। हमें एक मजबूत लोकतंत्र की आवश्यकता है, जहां सभी राजनीतिक दलों को अपनी आवाज उठाने का अधिकार हो।
NationPress
17/09/2025

Frequently Asked Questions

बीएनपी ने कार्यकारी आदेश पर क्या कहा?
बीएनपी ने इसे एक खतरनाक प्रथा बताया है और कहा कि केवल अदालतों को इस पर निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए।
क्या बीएनपी ने अवामी लीग पर प्रतिबंध की मांग की है?
बीएनपी ने कहा कि अवामी लीग पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वालों को पहले अदालत में लाना चाहिए।
बीएनपी का क्या कहना है राजनीतिक दलों के भविष्य के बारे में?
बीएनपी का मानना है कि राजनीतिक दलों का भविष्य न्यायिक प्रक्रिया के जरिए तय होना चाहिए।