क्या एनवीडिया एच-1बी वीजा प्रायोजित करती रहेगी?

सारांश
Key Takeaways
- एनवीडिया आगे भी एच-1बी वीजा प्रायोजित कर रहा है।
- आवेदन का पूरा खर्च कंपनी खुद उठाएगी।
- प्रवासन अमेरिकी तकनीकी और वैचारिक बढ़त के लिए आवश्यक है।
- ट्रंप प्रशासन द्वारा किए गए बदलावों का असर जारी है।
- कई संगठन इस नीति के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
वाशिंगटन, 8 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। अमेरिकी चिप निर्माता कंपनी एनवीडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जेंसन हुआंग ने अपने कर्मचारियों को आश्वासन दिया है कि कंपनी भविष्य में भी एच-1बी वीजा को प्रायोजित करती रहेगी और इस संबंध में सभी खर्च वह खुद उठाएंगे।
बिजनेस इनसाइडर की एक रिपोर्ट के अनुसार, हुआंग ने अपने पत्र में कहा कि वह स्वयं भी एनवीडिया में काम करने वाले कई प्रवासियों में से एक हैं और अमेरिका में मिले अवसरों ने उनके जीवन को गहराई से प्रभावित किया है। उन्होंने लिखा, “आज एनवीडिया का जो चमत्कार है, वह दुनिया के विभिन्न देशों से आए प्रतिभाशाली लोगों के बिना संभव नहीं था। प्रवासन (इमिग्रेशन) ने हमें यह पहचान दी है।”
हुआंग के हवाले से कहा गया है कि कानूनी प्रवासन अमेरिका की तकनीकी और वैचारिक बढ़त बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, और हाल में ट्रंप प्रशासन द्वारा किए गए बदलाव भी इसे प्रकट करते हैं।
उन्होंने लिखा, "एनवीडिया में, हमने दुनियाभर के असाधारण लोगों के साथ अपनी कंपनी का निर्माण किया है, और हम एच-1बी आवेदकों को प्रायोजित करना और सभी संबंधित शुल्कों को वहन करना जारी रखेंगे। यदि आपके पास एच-1बी वीजा के संबंध में कोई प्रश्न हैं, तो कृपया एनवीडिया-आव्रजन से संपर्क करें।"
19 सितंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक आदेश पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके तहत एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम को काफी हद तक सीमित कर दिया गया और आवेदन शुल्क 1 लाख डॉलर (लगभग 83 लाख रुपये) कर दिया गया।
ट्रंप ने कहा कि इस निर्णय का उद्देश्य अमेरिकी नागरिकों को नौकरी के लिए प्राथमिकता देना है। वाणिज्य सचिव हावर्ड लटनिक ने भी इस नीति का समर्थन करते हुए कहा कि इससे बड़ी कंपनियों द्वारा विदेशी कर्मचारियों को रखने की प्रवृत्ति कम होगी, क्योंकि अब उन्हें सरकार को भारी शुल्क देना पड़ेगा, जिससे विदेशी कर्मचारियों को रखना आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
इस कदम के खिलाफ अमेरिका में कई यूनियनों, शिक्षाविदों और संगठनों ने ट्रंप प्रशासन के खिलाफ मुकदमा दायर किया है। उनका कहना है कि यह शुल्क “अभूतपूर्व, अनुचित और गैरकानूनी” है। शिकायत में कहा गया है कि राष्ट्रपति को कांग्रेस द्वारा बनाए गए कानूनी ढांचे को एकतरफा बदलने का अधिकार नहीं है, और अपवादों का प्रावधान “पक्षपात और भ्रष्टाचार” का रास्ता खोल सकता है।