क्या किम जोंग उन से मिलने को तैयार हैं ट्रंप, क्या इसकी वजह रूस है?
सारांश
Key Takeaways
- ट्रंप और किम जोंग-उन की संभावित मुलाकात वैश्विक स्थिरता का प्रतीक हो सकती है।
- दक्षिण कोरिया की नई सरकार संवाद की पक्षधर है।
- रूस और उत्तर कोरिया के बीच की नजदीकी चिंता का विषय है।
- ट्रंप की यह पहल घरेलू राजनीति में उनकी छवि को सुधार सकती है।
- यह मुलाकात शांति और कूटनीति का एक महत्वपूर्ण उदाहरण हो सकती है।
नई दिल्ली, २५ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन से मिलने के लिए तैयार हैं। एयरफोर्स वन विमान में पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, "मैं १०० फीसदी तैयार हूं। हमारी समझ अच्छी है और यदि मौका मिला तो मैं उनसे मिलने के लिए तैयार हूं।"
प्रश्न यह है कि वह ऐसा अचानक क्यों कर रहे हैं, जबकि कुछ साल पहले यह रिश्ता लगभग ठंडा पड़ गया था? क्या यह नई कूटनीतिक गर्मजोशी केवल शांति की पहल है या रूस और चीन को ताकत दिखाने का इशारा भी?
ट्रंप अपने कार्यकाल में पहले भी किम जोंग-उन से तीन बार मिल चुके हैं: पहली बार सिंगापुर में २०१८ में, दूसरी बार वियतनाम (२०१९) में और तीसरी बार डीएमजेड (कोरियाई सीमा पर)।
इन मुलाकातों से उम्मीद थी कि कोरियाई प्रायद्वीप से परमाणु संकट कम होगा, लेकिन असल समझौता नहीं हो सका। ट्रंप के जाने के बाद बातचीत ठप पड़ गई और उत्तर कोरिया ने अपने न्यूक्लियर और मिसाइल परीक्षणों को फिर से तेज कर दिया।
अब स्थिति में बदलाव आया है। दक्षिण कोरिया में नई सरकार संवाद की पक्षधर है, जबकि उत्तर कोरिया रूस और चीन के और करीब चला गया है। यही वह समय है जब ट्रंप फिर से "मुलाकात के लिए तैयार" होने की बात कर रहे हैं। सवाल यही है कि आखिर वजह एक है या कई सारी।
ट्रंप अपने आप को "डीलमेकर" और "गैर-परंपरागत नेता" के रूप में दिखाना पसंद करते हैं। किम से मिलना उनके लिए एक बार फिर वैसी ही "साहसी डिप्लोमेसी" दिखाने का अवसर हो सकता है, जैसी २०१८ में सुर्खियां बनी थीं। राजनीतिक दृष्टिकोण से, यह कदम उन्हें घरेलू मोर्चे पर "शांति दूत" की छवि देता है, भले ही ठोस परिणाम न हों।
दक्षिण कोरिया का दबाव और क्षेत्रीय स्थिरता की मांग दूसरी वजह हो सकती है। दक्षिण कोरिया की मौजूदा सरकार चाहती है कि उत्तर और दक्षिण के बीच कम से कम संवाद बहाल हो। अमेरिका इस पहल को समर्थन देकर अपने सहयोगी देश को यह संकेत देना चाहता है कि वह एशिया में स्थिरता के प्रति प्रतिबद्ध है।
एक और महत्वपूर्ण वजह रूस और उत्तर कोरिया की बढ़ती नजदीकी हो सकती है। २०२४ में उत्तर कोरिया और रूस के बीच एक समग्र रणनीतिक साझेदारी समझौता हुआ, जिसमें रक्षा और तकनीकी सहयोग शामिल हैं। इससे वाशिंगटन चिंतित है कि कहीं प्योंगयांग रूस के सैन्य हितों का हिस्सा न बन जाए। ट्रंप की यह "मुलाकात की तत्परता" रूस को यह संकेत देने की कोशिश भी हो सकती है कि अमेरिका अब भी इस क्षेत्र में प्रभाव रखता है और कूटनीतिक खेल में वह बाहर नहीं है।
इस मुलाकात का उद्देश्य चीन को स्पष्ट संदेश देना भी हो सकता है। चीन उत्तर कोरिया का सबसे बड़ा समर्थक है। अमेरिका यदि सीधे संवाद का रास्ता खोलता है, तो वह बीजिंग को यह दिखा सकता है कि वाशिंगटन को किसी तीसरे देश की मध्यस्थता की आवश्यकता नहीं है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिका और रूस के बीच तनाव चरम पर है। रूसी तेल कंपनियों पर अमेरिका ने प्रतिबंध भी लगाया है। इस स्थिति में, यदि ट्रंप (जो रूस के साथ संवाद के पक्षधर माने जाते हैं) उत्तर कोरिया से फिर से जुड़ने का प्रस्ताव रखते हैं, तो यह 'डबल सिग्नल' भेजने जैसा है। एक तरफ यह संकेत है कि अमेरिका एशिया में अपनी पकड़ बनाए रखेगा और दूसरी तरफ यह कि रूस-उत्तर कोरिया की नजदीकी को संतुलित करने की कोशिश की जाएगी।
ट्रंप का यह 'पुराना रिश्ता फिर से जोड़ने' वाला रुख केवल शांति की चाह नहीं दिखाता, बल्कि यह एक रणनीतिक चाल भी हो सकती है। यह ट्रंप की ओर से रूस-उत्तर कोरिया की दोस्ती को कमजोर करने की कोशिश और घरेलू राजनीति में 'डील मेकर' की छवि को चमकाने का अवसर हो सकता है।