क्या चीन ने सीपीईसी-II को आगे बढ़ाया, जबकि पाकिस्तान तालिबान को साधने में असफल रहा?

सारांश
Key Takeaways
- सीपीईसी-II में अफगानिस्तान को शामिल करने की योजना है।
- पाकिस्तान की तालिबान पर पकड़ कमजोर हो रही है।
- चीन को अपनी निवेश सुरक्षा की चिंता है।
नई दिल्ली, 21 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। काबुल में 20 अगस्त को आयोजित त्रिपक्षीय विदेश मंत्रियों की वार्ता पाकिस्तान और तालिबान के बीच चल रही तनाव के बीच हुई। इस बैठक का मुख्य ध्यान चीन-पाक आर्थिक गलियारा परियोजना-द्वितीय (सीपीईसी-II) पर था, जिसमें बीजिंग ने अफगानिस्तान को शामिल करने की इच्छा व्यक्त की।
पाकिस्तान ने सोचा था कि इस वार्ता में चीन उसकी सहायता करेगा और तालिबान पर दबाव बनाएगा। पाकिस्तान ने इस बैठक में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का मुद्दा उठाया और तालिबान से अनुरोध किया कि वह इस आतंकी संगठन को समर्थन देना बंद करे। टीटीपी ने पाकिस्तानी सेना पर कई बड़े हमले किए हैं और पाकिस्तान का आरोप है कि तालिबान उसे शरण दे रहा है।
हालांकि, तालिबान ने स्पष्ट किया कि वह टीटीपी पर कोई कार्रवाई नहीं करेगा। उसका कहना है कि टीटीपी पाकिस्तान की आंतरिक समस्या है और वह इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा। पाकिस्तान ने बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) का मुद्दा भी उठाया और तालिबान पर उसे आश्रय देने का आरोप लगाया। इस पर तालिबान ने आरोपों को नकारा, लेकिन बीजिंग को आश्वासन दिया कि वह बीएलए के ठिकानों पर कार्रवाई करेगा और घुसपैठ रोकने का प्रयास करेगा।
चीन के लिए असली चिंता टीटीपी नहीं बल्कि बीएलए है, क्योंकि बीएलए लगातार बलूचिस्तान में चीनी निवेशों को निशाना बना रहा है। इस संदर्भ में तालिबान ने चीन की सहायता करने का आश्वासन दिया, लेकिन पाकिस्तान की उम्मीदें धूमिल हो गईं।
कभी पाकिस्तान पर निर्भर रहने वाला तालिबान अब डूरंड रेखा और टीटीपी जैसे मुद्दों पर टकराव की स्थिति में है। इस बैठक में पाकिस्तान को एहसास हुआ कि अब उसका तालिबान पर प्रभाव बहुत कम रह गया है और बीजिंग भी उसे टीटीपी पर झुकाने में असफल रहा।
सीपीईसी की शुरुआत में पाकिस्तान को लगा था कि चीन के समर्थन से वह क्षेत्र में प्रभावशाली बनेगा, लेकिन आज वह कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है और पूरी तरह से बीजिंग पर निर्भर है। दूसरी ओर, चीन को बार-बार पाकिस्तान में अपने निवेशों की सुरक्षा को लेकर चिंता जतानी पड़ी है।
अब चीन चाहता है कि अफगानिस्तान को भी सीपीईसी-II में शामिल किया जाए, लेकिन सवाल यह है कि क्या तालिबान भी पाकिस्तान की तरह कर्ज के जाल में फंसेगा? तालिबान ने भले ही यह आश्वासन दिया हो कि उसकी जमीन का उपयोग आतंकवाद के लिए नहीं होगा, लेकिन क्या वह इसे निभा पाएगा? इसका उत्तर समय ही देगा।