महिला माह: क्या दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति ने नीतियों में लैंगिक समानता का आग्रह किया?

सारांश
Key Takeaways
- महिलाओं की भागीदारी देश के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है।
- हर नीति में लैंगिक समानता को अनिवार्य बनाना आवश्यक है।
- राष्ट्रीय संवाद प्रक्रिया विभिन्न संगठनों को एकत्रित करती है।
- महिलाओं के मुद्दों का असर राजनीतिक और आर्थिक निर्णयों पर पड़ता है।
- दिव्यांग और ग्रामीण महिलाओं की परिस्थितियों को ध्यान में रखना आवश्यक है।
केपटाउन, 12 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। इस समय दक्षिण अफ्रीका में महिला माह का आयोजन किया जा रहा है। इस अवसर पर राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने बताया कि देश की हर नीति और निर्णय में लैंगिक समानता को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, सोमवार को अपने साप्ताहिक संदेश में उन्होंने यह भी अपील की कि आने वाली ‘राष्ट्रीय संवाद प्रक्रिया’ के दौरान जो शुक्रवार को प्रिटोरिया में शुरू होगी, महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं, क्योंकि उनके योगदान से देश का भविष्य प्रभावित होता है।
यह राष्ट्रीय संवाद प्रक्रिया विभिन्न व्यक्तियों और संगठनों को एकत्रित कर देश की चुनौतियों के समाधान के लिए एक मंच प्रदान करने का प्रयास है।
रामाफोसा ने कहा, "हर राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मुद्दा महिलाओं को प्रभावित करता है। बेरोजगारी, अपराध या जलवायु परिवर्तन जैसे संकट का असर महिलाओं पर अधिक पड़ता है।"
उन्होंने बताया कि महिलाओं का जीवन देश के भविष्य से निकटता से जुड़ा है, इसलिए महिला संगठनों को इस प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। राष्ट्रपति ने यह भी बताया कि ग्रामीण, शहरी और दिव्यांग महिलाओं की परिस्थितियां भिन्न हैं, इसलिए सभी वर्गों की भागीदारी आवश्यक है।
सरकार ने इस प्रक्रिया से संबंधित सभी समितियों में महिलाओं की समान हिस्सेदारी सुनिश्चित करने का वादा किया है। रामाफोसा ने कहा कि किसी भी नीति का निर्माण करते समय यह देखना चाहिए कि उसका महिलाओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
शनिवार को महिला दिवस पर उन्होंने 1956 के ऐतिहासिक महिला मार्च को याद किया, जब 20,000 से अधिक महिलाओं ने रंगभेद शासन के कठोर 'पास कानून' का विरोध किया था।
रामाफोसा ने कहा, "यह मार्च केवल कानूनों के खिलाफ विरोध नहीं था, बल्कि महिलाओं की शक्ति और अधिकार का एक मजबूत प्रदर्शन था। इसने दर्शाया कि दक्षिण अफ्रीका की महिलाएं, जिन्हें उस समय रंगभेद शासन द्वारा स्थायी रूप से नाबालिगों का दर्जा दिया गया था, वे मूकदर्शक नहीं रहेंगी।"