क्या 54 साल बाद बांग्लादेश ने शहीदों को गार्ड ऑफ ऑनर सम्मान देकर याद किया?

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क्या 54 साल बाद बांग्लादेश ने शहीदों को गार्ड ऑफ ऑनर सम्मान देकर याद किया?

सारांश

1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए भिंड के वीरों को 54 साल बाद बांग्लादेश सरकार ने गार्ड ऑफ ऑनर दिया। यह सम्मान न केवल उनकी वीरता का प्रतीक है बल्कि उन वीर नारियों के लिए भी है जिन्होंने अपने पतियों का बलिदान देखा। इस कंटेंट में जानें शहीदों की पत्नियों की भावनाएं और ये सम्मान का महत्व।

Key Takeaways

  • 54 वर्षों बाद बांग्लादेश ने शहीदों की पत्नियों को गार्ड ऑफ ऑनर दिया।
  • शहीदों के पार्थिव शरीर घर नहीं लौट सके थे।
  • वीर नारियों को प्रशस्ति पत्र और किताब भी मिली।
  • शहीदों की पत्नियों के लिए 5 लाख रुपए का वादा था।
  • यह सम्मान शहीदों के बलिदान की पहचान है।

भिंड, 16 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में भारत ने विजय प्राप्त की थी। इस संघर्ष में मध्य प्रदेश के भिंड जिले के अनेक वीर जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। 54 साल के लंबे अंतराल के बाद, बांग्लादेश सरकार ने इन वीर नारियों को गार्ड ऑफ ऑनर देकर सम्मानित किया है। इस युद्ध में भारतीय सेना ने न केवल पाकिस्तान को पराजित किया, बल्कि बांग्लादेश के स्वतंत्र राष्ट्र के गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इस संघर्ष में भिंड के 21 बहादुर योद्धाओं ने अपनी जान दी थी। उनके पार्थिव शरीर उनके घर नहीं लौट पाए थे। 54 वर्षों के बाद, बांग्लादेश सरकार ने इन वीर नारियों को गार्ड ऑफ ऑनर प्रदान किया है। इसके साथ ही उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर भी सम्मानित किया गया है।

वीर नारी लीला देवी ने कहा, "1971 की लड़ाई में शहीद हुए मेरे पति का पार्थिव शरीर मैं कभी नहीं देख पाई थी। उस समय मेरी उम्र 14 वर्ष थी और मेरे पति की 21 वर्ष। 54 वर्ष बाद बांग्लादेश सरकार ने शहीदों की पत्नियों की याद की और गार्ड रेजीमेंट के जवानों द्वारा हमारे घर आकर गार्ड ऑफ ऑनर सम्मान दिया गया। सम्मान में प्रशस्ति पत्र और एक पुस्तक है, जिसमें वीर योद्धाओं की बहादुरी का उल्लेख है। यह सम्मान हमारे लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह हमारे पति की बहादुरी की पहचान है। अब इन्हीं यादों के सहारे हमारा जीवन व्यतीत होगा।"

उन्होंने आगे कहा कि शहीदों की पत्नियों को उस समय तत्कालीन बांग्लादेश सरकार द्वारा 5 लाख रुपए देने का वादा किया गया था, जो अब तक नहीं मिला है।

मिथलेश भदौरिया ने कहा कि 1971 की लड़ाई में उनके पति जंगबहादुर सिंह भदौरिया शहीद हो गए थे। उस समय उनकी उम्र 20 वर्ष थी। उनका पार्थिव शरीर भी घर नहीं लौट सका था। अब बांग्लादेश सरकार ने वीर नारियों को गार्ड ऑफ ऑनर का सम्मान दिया है।

मिथलेश भदौरिया ने पति की तरह पुलिस में भर्ती होकर सेवा की है।

बांग्लादेश सरकार की ओर से नौ वीर नारियों को सम्मानित किया गया है, जिन वीर नारियों को अभी तक सम्मान नहीं मिला, वे भी अपने पति की बहादुरी और साहस के लिए गार्ड ऑफ ऑनर सम्मान की प्रतीक्षा कर रही हैं।

Point of View

इन शहीदों की पत्नियों को सम्मानित करना एक महत्वपूर्ण कदम है, जो दर्शाता है कि हम अपने अतीत को याद करते हैं और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। यह न केवल शहीदों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय है।
NationPress
04/09/2025

Frequently Asked Questions

बांग्लादेश सरकार ने शहीदों को कब सम्मानित किया?
बांग्लादेश सरकार ने शहीदों को 54 साल बाद, 16 जुलाई को सम्मानित किया।
क्या सम्मान में कुछ और मिला?
हाँ, गार्ड ऑफ ऑनर के साथ शहीदों की पत्नियों को प्रशस्ति पत्र और एक पुस्तक भी दी गई।
शहीदों की पत्नियों को क्या वादा किया गया था?
उनसे तत्कालीन बांग्लादेश सरकार ने 5 लाख रुपए देने का वादा किया था।
कितने वीर नारियों को सम्मान मिला?
बांग्लादेश सरकार की ओर से नौ वीर नारियों को सम्मानित किया गया।
क्या यह सम्मान महत्वपूर्ण है?
हाँ, यह सम्मान शहीदों की वीरता और उनकी पत्नियों के बलिदान को मान्यता देता है।