क्या आपकी पूरी जिंदगी सर्वाइकल बिगाड़ रही है? जानें आयुर्वेद से स्थायी इलाज

सारांश
Key Takeaways
- सर्वाइकल समस्या तकनीकी जीवन का परिणाम है।
- आयुर्वेदिक उपायों से स्थायी राहत मिल सकती है।
- योगासन नियमित करने से स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।
- सही खान-पान से सर्वाइकल के लक्षणों को कम किया जा सकता है।
- समय पर उपचार न करने से गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।
नई दिल्ली, 17 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। आजकल मोबाइल और कंप्यूटर का अत्यधिक उपयोग, घंटों एक ही स्थान पर काम करना और गलत तरीके से बैठने या सोने के कारण लोगों में सर्वाइकल की समस्या आम हो गई है।
मेडिकल भाषा में इसे सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस कहा जाता है। यह केवल गर्दन का दर्द नहीं होता, बल्कि धीरे-धीरे कंधे, सिर और हाथों तक इसका प्रभाव पड़ सकता है। कई लोगों में चक्कर आना, कानों में आवाज सुनाई देना या आंखों के पीछे दर्द जैसी समस्याएं भी होने लगती हैं। अगर समय पर ध्यान नहीं दिया गया तो डिस्क हर्नियेशन जैसी बड़ी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
असल में, हमारी रीढ़ में 33 कशेरुकाएं होती हैं, जिनमें से 7 गर्दन में होती हैं, जिन्हें सर्वाइकल वर्टिब्रा कहते हैं। जब इन हड्डियों या डिस्क पर अधिक दबाव पड़ता है या उनमें विकार आने लगता है, तो यह समस्या उत्पन्न होती है।
चिकित्सक सामान्यतः पेनकिलर्स, फिजियोथेरेपी या अधिक गंभीर स्थिति में सर्जरी की सलाह देते हैं। परंतु, दवाइयां केवल थोड़े समय के लिए राहत देती हैं और लंबे समय तक इनका सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
आयुर्वेद के अनुसार, सर्वाइकल की परेशानी वात दोष बढ़ने से होती है। जब शरीर में वात बढ़ता है, तो हड्डियों और नसों में जकड़न और दर्द उत्पन्न होता है। आयुर्वेदिक उपायों में तेल से मालिश, गुनगुने पानी की सिकाई, त्रिफला, अश्वगंधा और गुग्गुल जैसी औषधियों का सेवन लाभकारी होता है। साथ ही, भुजंगासन, ताड़ासन और मकरासन जैसे योगासन भी प्रभावी साबित होते हैं।
इसके अलावा, खान-पान का ध्यान रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। हरी सब्जियां, अंकुरित अनाज, दूध-दही, तिल और कैल्शियम एवं विटामिन-डी से भरपूर चीजें आहार में शामिल करनी चाहिए। वहीं, तली-भुनी और जंक फूड से परहेज करना बेहतर होगा। दिनभर पर्याप्त पानी पीना और समय पर आराम करना भी आवश्यक है।