क्या अभियंता दिवस आधुनिकता के रचनाकारों को सलाम नहीं है?

सारांश
Key Takeaways
- इंजीनियर हमारी दैनिक जिंदगी को सरल बनाते हैं।
- अभियंता दिवस हमें इंजीनियरों के योगदान की याद दिलाता है।
- सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का योगदान अद्वितीय है।
- इंजीनियरिंग आधुनिक सभ्यता की मूलाधार है।
- इंजीनियरिंग में नवीनीकरण और विकास का संयोग होता है।
नई दिल्ली, 14 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। क्या आपने कभी यह विचार किया है कि अगर इंजीनियर न होते, तो हमारी ज़िंदगी कैसी होती? बिना इंजीनियरों के न घर होते, न सड़कें, न पुल, न वाहन, न मोबाइल, न इंटरनेट और न ही बिजली। हमें रोशनी के लिए आज भी दीपक और लकड़ी जलानी पड़ती, लंबी दूरी तय करने के लिए पैदल चलना पड़ता या बैलगाड़ी का सहारा लेना पड़ता। डॉक्टरों के पास आधुनिक मशीनें न होतीं, तो कई बीमारियों का उपचार आज भी संभव नहीं होता। बच्चों को पढ़ाने के लिए न कंप्यूटर होते, न ऑनलाइन कक्षाएं, न स्मार्टफोन।
वास्तव में, इंजीनियर ही वे लोग हैं जो हमारी दैनिक ज़िंदगी को सरल बनाते हैं, चाहे वे मोबाइल ऐप हों, मेट्रो ट्रेन, एयरपोर्ट, अस्पताल की मशीनें या गाँव की नहर। हर जगह किसी न किसी इंजीनियर का दिमाग और मेहनत होती है। इंजीनियर के बिना हमारा जीवन आज भी अंधेरे में होता।
हर वर्ष 15 सितंबर को मनाया जाने वाला अभियंता दिवस हमें यही याद दिलाता है कि इंजीनियर केवल मशीनें और इमारतें नहीं बनाते, बल्कि वे समाज की आवश्यकताओं को तकनीक और नवाचार के माध्यम से जोड़कर हमारी ज़िंदगी को बेहतर बनाते हैं। सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जैसे महान अभियंता ने साबित किया कि एक व्यक्ति का विजन और मेहनत सम्पूर्ण सभ्यता का भविष्य बदल सकता है।
15 सितंबर का यह दिन महान अभियंता और भारत रत्न से सम्मानित सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है। अभियंता दिवस न केवल इंजीनियरों के योगदान को मान्यता देता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि इंजीनियरिंग आधुनिक सभ्यता की रीढ़ है। हमारी पूरी आधुनिक ज़िंदगी, परिवहन, संचार, ऊर्जा, स्वास्थ्य सेवा और तकनीकी सुविधाएं, सभी इंजीनियरों की देन हैं।
सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को आधुनिक मैसूर का जनक कहा जाता है। उनका जीवन इस बात का प्रतीक है कि कैसे विज्ञान और दूरदृष्टि का मेल एक सम्पूर्ण राष्ट्र की दिशा बदल सकता है। उन्होंने मैसूर में कृष्णराज सागर (केआरएस) बांध का निर्माण कराया, जो उस समय एशिया का सबसे बड़ा जलाशय था। पुणे के खड़कवासला जलाशय में उन्होंने बाढ़ नियंत्रण के लिए अभिनव वाटर फ्लडगेट सिस्टम विकसित किया, जिसे बाद में ग्वालियर के तिगरा डैम में भी लागू किया गया।
इसके अतिरिक्त, हैदराबाद में बाढ़ सुरक्षा प्रणाली, विशाखापट्टनम पोर्ट को समुद्री कटाव से बचाने की तकनीक और बिहार में मोकामा ब्रिज की योजना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने तिरुपति और तिरुमला के बीच सड़क के निर्माण की भी योजना बनाई।
मैसूर में कृष्णराज सागर के असाधारण योगदानों के लिए 1915 में उन्हें 'नाइट कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ इंडियन एम्पायर (केसीआईई)' की उपाधि दी गई और 1955 में भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया। उन्हें आठ भारतीय विश्वविद्यालयों ने मानद उपाधियां प्रदान कीं और 1923 में उन्होंने भारतीय विज्ञान कांग्रेस की अध्यक्षता की। लंदन के इंस्टीट्यूशन ऑफ सिविल इंजीनियर्स ने भी उन्हें मानद सदस्यता दी। भारत के अलावा, श्रीलंका और तंजानिया में भी उनकी जयंती को अभियंता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
आज इंजीनियरिंग केवल ढांचे और तकनीकी संरचनाओं तक सीमित नहीं है। इंजीनियर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, ग्रीन एनर्जी और स्मार्ट सिटी जैसे क्षेत्रों में भविष्य की दिशा तय कर रहे हैं। वे समाज की समस्याओं का समाधान निकालते हैं और जीवन को अधिक सुरक्षित, सुविधाजनक और टिकाऊ बनाते हैं। अभियंता दिवस केवल एक स्मृति दिवस नहीं है, बल्कि यह युवाओं के लिए प्रेरणा का अवसर है। सर विश्वेश्वरैया का जीवन हमें बताता है कि एक अभियंता केवल इमारतें या पुल नहीं बनाता, बल्कि सभ्यता की नींव खड़ी करता है।
आज जब हम अपने घर की रोशनी जलाते हैं, इंटरनेट से जुड़ते हैं, या किसी पुल को पार करते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि यह सब किसी अभियंता की कल्पना, मेहनत और विज्ञान की देन है। अभियंता दिवस हमें यह याद दिलाता है कि प्रगति और आधुनिकता की हर राह में एक अभियंता का हाथ होता है।