क्या देर से मिला इंसाफ, असली गुनहगारों की जांच होनी चाहिए? मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट केस पर बोले अबू आजमी

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क्या देर से मिला इंसाफ, असली गुनहगारों की जांच होनी चाहिए? मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट केस पर बोले अबू आजमी

सारांश

बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2006 के मुंबई ट्रेन बम धमाकों के मामले में 12 आरोपियों को बरी कर दिया, जिससे न केवल निर्दोष परिवारों को राहत मिली है, बल्कि जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठे हैं। अबू आजमी ने सरकार से फिर से जांच करने और असली गुनहगारों को पकड़ने की मांग की है।

Key Takeaways

  • 2006 के बम धमाकों में 12 लोग बरी हुए।
  • अबू आजमी ने एसआईटी की मांग की।
  • जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे।
  • निर्दोषों को आर्थिक मदद मिलनी चाहिए।
  • धर्म के नाम पर भेदभाव का आरोप।

मुंबई, 22 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। 2006 के मुंबई लोकल ट्रेन सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को फैसला सुनाते हुए सबूतों के अभाव में 12 आरोपियों को बरी कर दिया। करीब 19 साल बाद मिली इस राहत ने जहां इन निर्दोषों के परिवारों को सुकून पहुंचाया है, वहीं इस फैसले ने देश की जांच एजेंसियों के कामकाज पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस फैसले पर समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधायक अबू आजमी की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्होंने कहा कि सरकार को इस मामले की फिर से जांच के लिए विशेष जांच टीम (एसआईटी) का गठन करना चाहिए और असली गुनहगारों को सामने लाना चाहिए।

अबू आजमी ने एक वीडियो संदेश जारी कर कहा कि मैं पहले दिन से कहता आ रहा हूं कि 2006 के मुंबई लोकल ट्रेन सीरियल ब्लास्ट में बेगुनाह लोगों को गिरफ्तार किया गया था। आज, जब कोर्ट ने उन्हें 19 साल बाद बाइज्जत बरी कर दिया है, तो यह इंसाफ जरूर है, लेकिन बेहद देर से मिला हुआ इंसाफ है। उन्होंने आरोप लगाया कि धर्म के नाम पर मुसलमानों को निशाना बनाया गया और असली गुनहगारों को पकड़ने की बजाय बेकसूरों को आतंकवाद के झूठे आरोपों में फंसाया गया। यह फैसला बताता है कि पुलिस और जांच एजेंसियों का रवैया मुसलमानों के प्रति किस हद तक पक्षपातपूर्ण रहा है।

अबू आजमी ने बताया कि शुरुआती जांच के दौरान पुलिस ने टेलीफोन रिकॉर्ड लाने से भी मना कर दिया था, यह कहते हुए कि इसमें 'बड़ा खर्च' होगा। इसके बाद हाईकोर्ट जाना पड़ा, तब जाकर आदेश मिला और रिकॉर्ड सामने आया। उसमें साफ था कि जिन लोगों को शक के आधार पर पकड़ा गया था, वे घटनास्थल के आसपास भी नहीं थे। उन्होंने मांग की कि सरकार को इन बेगुनाहों को घर, नौकरी और आर्थिक मुआवजा देना चाहिए। साथ ही जिन जांच एजेंसियों ने इन्हें झूठे मामलों में फंसाया, उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि जिन अधिकारियों की लापरवाही या पक्षपात के चलते यह अन्याय हुआ, उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। अगर वे रिटायर हो चुके हैं तो उनकी पेंशन बंद होनी चाहिए और उनके खिलाफ मुकदमा चलना चाहिए। आजमी ने सरकार से तत्काल नई एसआईटी के गठन की मांग करते हुए कहा कि जब यह 12 लोग निर्दोष साबित हुए हैं, तो सवाल उठता है कि ब्लास्ट आखिर किया किसने? क्या इन बेगुनाहों को जेल में डालकर असली दोषियों को बचाया गया?

आजमी ने कुछ नेताओं के उन बयानों पर भी नाराजगी जताई जो इनकी रिहाई को 'दुर्भाग्यपूर्ण' बता रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब इन पर फांसी की सजा हुई थी तो आप खुश हो रहे थे। अब जब सच्चाई सामने आ गई तो दिल नहीं मान रहा? यह रवैया देश को तोड़ने वाला है। उन्होंने कहा कि यह मामला देश में बढ़ती नफरत और विभाजनकारी राजनीति की ओर इशारा करता है। भारत का संविधान अगर सही मायनों में लागू होता, तो यह अन्याय कभी नहीं होता। जो कौम देश की आजादी के लिए लड़ी, उसी कौम के बच्चों को आतंकवादी बना दिया गया।

Point of View

बल्कि यह भी दर्शाता है कि हमारे देश में न्याय का क्या हाल है। ऐसे मामलों में जहां निर्दोष लोग सालों तक जेल में रहते हैं, हमें अपने कानून और जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
NationPress
23/07/2025

Frequently Asked Questions

क्या इस फैसले से न्याय मिला?
हाँ, लेकिन यह न्याय बेहद देर से मिला है।
क्या अबू आजमी ने सरकार से क्या मांग की?
उन्होंने विशेष जांच टीम (एसआईटी) का गठन करने की मांग की है।
इस मामले में असली गुनहगार कौन हैं?
यह अब भी एक बड़ा सवाल है, क्योंकि 12 निर्दोष लोग बरी हो चुके हैं।
क्या पुलिस ने सही तरीके से जांच की?
नहीं, पुलिस ने कई महत्वपूर्ण सबूतों को अनदेखा किया।
क्या सरकार को मुआवजा देना चाहिए?
जी हाँ, निर्दोष लोगों को मुआवजा और नौकरी मिलनी चाहिए।