क्या अहमदाबाद की सीबीआई कोर्ट ने बैंक धोखाधड़ी मामले में चार लोगों को तीन साल की सजा सुनाई?
सारांश
Key Takeaways
- सीबीआई ने चार व्यक्तियों को बैंक धोखाधड़ी के लिए दोषी ठहराया।
- कोर्ट ने तीन साल की सजा का आदेश दिया।
- आरोपियों ने जाली दस्तावेजों के जरिए धोखाधड़ी की थी।
- सीबीआई की जांच में सरकारी कर्मचारियों की संलिप्तता भी सामने आई।
- धोखाधड़ी के मामलों में सख्त कार्रवाई आवश्यक है।
अहमदाबाद, 13 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। सीबीआई कोर्ट ने शुक्रवार को बैंक ऑफ बड़ौदा से जुड़े एक बैंक धोखाधड़ी मामले में चार व्यक्तियों को दोषी ठहराया है। कोर्ट ने उन्हें तीन साल की सजा और 50-50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अनुसार, यह मामला 30 सितंबर, 2008 को दर्ज किया गया था। आरोपियों ने आपराधिक साजिश और गलत इरादे से जाली वित्तीय बयान प्रस्तुत करके बैंक ऑफ बड़ौदा से 3 करोड़ रुपए की कैश क्रेडिट सुविधा प्राप्त की थी।
सीबीआई की जांच में यह स्पष्ट हुआ कि आरोपियों ने जानबूझकर यह जानकारी छिपाई कि पीएम मार्केटिंग पहले ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से कैश क्रेडिट सुविधा प्राप्त कर चुका था।
सीबीआई ने बताया कि इस महत्वपूर्ण जानकारी को छिपाकर चारों आरोपियों ने बैंक ऑफ बड़ौदा को 3.48 करोड़ रुपए का गलत नुकसान पहुँचाया और अपने लिए गलत लाभ उठाया। प्रारंभिक जांच में कुछ सरकारी कर्मचारियों की भी संलिप्तता सामने आई थी, जिसके बाद सीबीआई ने अपनी जांच को तेज किया।
जांच में यह भी साबित हुआ कि पीएम मार्केटिंग के भागीदारों ने जाली वित्तीय दस्तावेजों के आधार पर बैंक ऑफ बड़ौदा से क्रेडिट सुविधा प्राप्त की और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारियों के साथ साजिश रचकर नई सुविधा लेने से पहले पुरानी क्रेडिट सुविधा का खुलासा नहीं किया।
मनोजभाई बी. तांती, परेशभाई एम. तांती, पूर्वा परेशभाई तांती और लीलावंती एम. तांती पर आरोप था कि उन्होंने बैंक से लोन लेते समय कई दस्तावेजों को भी छिपाया था।
जांच पूरी करने के बाद सीबीआई ने 11 दिसंबर 2009 को आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट प्रस्तुत की। कोर्ट ने चारों को दोषी पाया और उसी के अनुसार सजा सुनाई।
सीबीआई लगातार रिश्वतखोरी के मामलों की जांच कर रही है, जिसके परिणामस्वरूप धोखाधड़ी के मामलों में सरकारी कर्मचारियों और कंपनियों के लोगों को दोषी ठहराया जाता है, जिसमें सजा के तौर पर जेल और भारी जुर्माना शामिल है।