क्या जौन होना कोई मजाक नहीं है? मौजूदा समय में युवाओं द्वारा सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले शायर

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क्या जौन होना कोई मजाक नहीं है? मौजूदा समय में युवाओं द्वारा सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले शायर

सारांश

जौन एलिया, एक अनोखे शायर, जिनका जीवन और शायरी दोनों ही अद्वितीय हैं। उनका संघर्ष और बागीपना आज की युवा पीढ़ी को प्रेरित करता है। क्या आप जानते हैं उनकी शायरी में क्या खास है?

Key Takeaways

  • जौन एलिया का जीवन और शायरी युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक हैं।
  • उनकी शायरी में दर्द और जुदाई का गहरा चित्रण है।
  • जौन का बागीपन उनकी पहचान है।
  • उनकी रचनाएँ जीवन के वास्तविकता को उजागर करती हैं।
  • जौन एलिया का योगदान उर्दू साहित्य में अद्वितीय है।

नई दिल्ली, 13 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश के अमरोहा में जन्मे उर्दू शायर जौन एलिया उर्दू साहित्य के उन कुछ विशिष्ट शायरों में से हैं, जिनकी शायरी आज भी युवा पीढ़ी के दिलों में गूंजती है। भारत-पाकिस्तान विभाजन ने उनके मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाला, हालांकि वे अपने अंतिम दिनों में भारत में नहीं रहे, लेकिन हमेशा खुद को हिंदुस्तानी समझते रहे।

14 दिसंबर 1931 को जन्मे जौन एलिया का पूरा नाम सय्यद सिब्त-ए-आसगर नकवी था, लेकिन वे जौन एलिया के नाम से विश्वभर में प्रसिद्ध हुए। विभाजन के बाद पाकिस्तान में रहने वाले जौन ने हमेशा खुद को हिंदुस्तानी कहा। वे विभाजन के खिलाफ थे और अमरोहा की मिट्टी के प्रति गहरा प्रेम रखते थे। उनकी शायरी में दर्द, बगावत, नास्तिकता और मार्क्सवादी विचारों की झलक मिलती है।

जौन एलिया का परिवार विद्वानों से भरा था। उनके पिता, अल्लामा शफीक हसन एलिया, अरबी, फारसी, हिंदी, संस्कृत और हिब्रू के ज्ञाता थे। उनके भाई रईस अमरोही और सय्यद मुहम्मद तकी भी साहित्य जगत में जाने-माने नाम थे। जौन बहुभाषी थे और उन्होंने अंग्रेजी, अरबी, फारसी, संस्कृत और हिब्रू पर भी महारत हासिल की थी।

जौन को बचपन से ही शायरी का शौक था। हालांकि उनका पहला दीवान 'शायद' 60 साल की उम्र में 1991 में प्रकाशित हुआ। उनके अन्य संग्रहों में 'यानी', 'गुमान', 'लेकिन', 'गोया' और 'रमूज' शामिल हैं। उनकी शायरी पारंपरिक गजल से हटकर आधुनिक जीवन की जटिलताओं, प्रेम के दर्द और समाज की नाराजगी को दर्शाती है।

जौन की निजी जिंदगी भी उतनी ही उलझी थी जितनी उनकी शायरी। उनकी शादी लेखिका जाहिदा हिना से हुई, लेकिन 1980 के दशक में तलाक हो गया। इसके बाद शराब और बीमारी ने उन्हें तोड़ दिया। लंबी बीमारी के बाद 8 नवंबर 2002 को कराची में उनका निधन हो गया।

उनका बागीपन और अनोखा अंदाज लोगों को हमेशा आकर्षित करता रहा। लंबे बाल, काला चश्मा और तीखी शायरी उनका ट्रेडमार्क बन गए। उनकी खुद की लिखी शायरी, "ये है एक जब्र इत्तेफाक नहीं, जौन होना कोई मजाक नहीं," उनके व्यक्तित्व को स्पष्ट करती है, जिसका अर्थ है- यह कोई संयोग का जबरदस्ती थोपा हुआ अत्याचार या दबाव नहीं है। जो कुछ मेरे साथ हो रहा है, वह महज दुर्घटना या संयोग का मामला नहीं है। यह कोई साधारण बात नहीं। जौन होना कोई मजाक या हल्की बात नहीं है। यह बहुत गंभीर, गहरा और वास्तविक है।

आजकल, सोशल मीडिया पर जौन सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले उर्दू शायरों में से एक हैं। उनकी शायरी युवाओं को इसलिए भाती है क्योंकि उसमें आज की बेचैनी, जुदाई का दर्द और जीवन की निरर्थकता का सच्चा चित्रण मिलता है। जौन एलिया की शायरी सिर्फ दर्द नहीं, बल्कि जीवन की वास्तविकता है। उनकी रचनाओं में उनकी बेचैनियों का गहरा अनुभव मिलता है। वे गए, लेकिन उनकी आवाज आज भी गूंजती है।

Point of View

बागीपन और अद्वितीयता हमें प्रेरित करते हैं। हमें यह समझना चाहिए कि उनकी शायरी सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि एक गहरी भावना है जो समाज में व्याप्त जटिलताओं को उजागर करती है।
NationPress
13/12/2025

Frequently Asked Questions

जौन एलिया कौन हैं?
जौन एलिया एक प्रसिद्ध उर्दू शायर हैं, जिनकी शायरी आज भी युवाओं के दिलों में गूंजती है।
उनकी शायरी में क्या विशेषता है?
उनकी शायरी में दर्द, बगावत, नास्तिकता और आधुनिक जीवन की जटिलताओं का चित्रण मिलता है।
जौन एलिया का असली नाम क्या था?
जौन एलिया का असली नाम सय्यद सिब्त-ए-आसगर नकवी था।
उनकी शायरी क्यों प्रसिद्ध है?
उनकी शायरी में आज की बेचैनी और जीवन की निरर्थकता को बयां किया गया है, जो युवाओं को बहुत भाता है।
जौन एलिया का निधन कब हुआ?
जौन एलिया का निधन 8 नवंबर 2002 को कराची में हुआ।
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