क्या ऐरावतेश्वर मंदिर में ऐरावत ने महादेव की पूजा की थी?

सारांश
Key Takeaways
- ऐरावतेश्वर मंदिर का इतिहास और महत्व
- पौराणिक कथा के अनुसार ऐरावत की पूजा
- संगीतमय सीढ़ियों का अद्भुत अनुभव
- चोल वंश की सांस्कृतिक समृद्धि
- साल भर भक्तों की भीड़
कुंभकोणम, 25 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। भोलेनाथ को समर्पित सावन का पावन महीना चल रहा है। शिवालयों में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। प्रत्येक शिव मंदिर भक्ति और चमत्कार की अद्भुत गाथाओं को समेटे हुए है। इस कड़ी में एक विशेष मंदिर है, जो तमिलनाडु के कुंभकोणम के पास दारासुरम में स्थित है, और इसका नाम है ऐरावतेश्वर मंदिर.
इंद्र के हाथी ऐरावत से संबंधित यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि इतिहास, कला और वास्तुकला का अद्भुत खजाना है। 12वीं शताब्दी में चोल सम्राट राजराजा द्वितीय द्वारा इस शिव मंदिर का निर्माण कराया गया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसका नाम इंद्र के सफेद हाथी ऐरावत के नाम पर रखा गया है। पौराणिक कथा के अनुसार, ऐरावत ने यहीं महादेव की पूजा की थी।
कथाओं के अनुसार, इंद्र का सफेद हाथी ऐरावत, ऋषि दुर्वासा के शाप के कारण रंग खो चुका था। उसने मंदिर के पवित्र जल में स्नान कर और शिव की आराधना कर अपना रंग पुनः प्राप्त किया। इसी प्रकार, मृत्यु के देवता यम ने भी यहाँ स्नान और पूजा कर वरदान प्राप्त किया। इसीलिए मंदिर में यम की छवि भी अंकित है।
यह यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में सम्मिलित है और चोल वंश द्वारा निर्मित मंदिरों की त्रिमूर्ति का हिस्सा है, जिसमें तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर और गंगईकोंडा चोलपुरम का गंगईकोंडा चोलेश्वरम मंदिर भी शामिल हैं।
ऐरावतेश्वर मंदिर की एक अद्भुत विशेषता इसकी संगीतमय सीढ़ियाँ हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्थित सात सीढ़ियाँ सात संगीतमय स्वरों "सा, रे, गा, मा, पा, धा, नि" का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन पर हल्का सा पैर रखने पर मधुर संगीत की धुनें गुंजित होती हैं, जो कि 800 साल पुरानी वास्तुकला का अद्भुत चमत्कार दर्शाती हैं। वैज्ञानिक आज भी इस रहस्य को पूरी तरह जान नहीं पाए हैं। मंदिर की दीवारों और छतों पर उकेरी गई नक्काशी, रथ के आकार का मंडपम, और यम, सप्तमाताओं, गणेश, तथा अन्य वैदिक-पौराणिक देवताओं की मूर्तियां इसे कला का अद्वितीय नमूना बनाती हैं।
तमिलनाडु पर्यटन विभाग के अनुसार, यह मंदिर चोल वंश की सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाता है। 24 मीटर ऊँचा विमान (शिखर) और घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाला रथ के आकार का मंडपम इसकी भव्यता को और बढ़ाते हैं। मंदिर की नक्काशी पुराणों की कहानियों को बयां करती हैं, जो द्रष्टा को आश्चर्य में डाल देती हैं।
साल भर भक्त यहाँ आते हैं और महादेव की पूजा करते हैं, विशेष रूप से सावन और महाशिवरात्रि के अवसर पर। इसके अलावा, कार्तिक पूर्णिमा, थिरुकार्तिकै, और मंदिर का वार्षिक उत्सव (महोत्सव) भीड़ के प्रमुख अवसर हैं।
कुंभकोणम पहुंचना बहुत आसान है। तिरुचिरापल्ली हवाई अड्डा 91 किमी दूर है, और कुंभकोणम रेलवे स्टेशन चेन्नई, मदुरै, और तिरुचिरापल्ली से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग से भी बस और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं।