क्या जम्मू-कश्मीर के सुदूर गांव में भारतीय सेना ने उम्मीद की किरण लाई है?

सारांश
Key Takeaways
- अक्षय शर्मा की प्रेरणादायक कहानी
- सेना का मानवीय पहलू
- समुदाय में सकारात्मक बदलाव
- आशा और करुणा का महत्व
- स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच की आवश्यकता
कठुआ, 16 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। दुग्गन के एक निर्धन परिवार के अक्षय शर्मा ने आठ साल तक मौन में बिताए। कटे होंठ और तालु के साथ जन्मे अक्षय की तीन साल की उम्र में सर्जरी हुई, लेकिन इसके बावजूद वह बोलने में असमर्थ था। उसके माता-पिता आर्थिक कठिनाईयों से जूझ रहे थे और उपचार का खर्च उठाने में असमर्थ थे, इसलिए उन्होंने अपने बेटे की आवाज सुनने की उम्मीद लगभग छोड़ दी थी।
जम्मू में तैनात रक्षा जनसंपर्क अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल सुनील बर्त्वाल ने बताया कि सब कुछ तब बदल गया, जब एक सेना के डॉक्टर ने अक्षय से मुलाकात की। परिवार की कठिनाइयों से प्रभावित होकर, उन्होंने अक्षय की प्रारंभिक जांच की और पाया कि उचित चिकित्सा से वह बोलना सीख सकता है। सुदूर गांव में ऐसी कोई चिकित्सा सुविधा नहीं थी, इसलिए सेना के डॉक्टर ने स्वयं स्पीच थेरेपी तकनीकों का अध्ययन किया और अपने फुर्सत के समय में अक्षय के साथ काम करना शुरू किया।
धैर्यपूर्वक उन्होंने उसे ध्वनियां, फिर शब्द और अंततः सरल वाक्य सिखाए। महीनों के अभ्यास के बाद, अक्षय ने बढ़ते आत्मविश्वास के साथ बोलना शुरू कर दिया। जब उसने पहली बार अपने माता-पिता को पुकारा, तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। उनके लिए यह केवल एक आवाज नहीं थी, बल्कि यह एक चमत्कार था। उनके दिलों में छिपा सपना एक बार फिर जीवंत हो उठा था। उनका घर, जो कभी मौन प्रार्थनाओं से भरा रहता था, अब अक्षय की आवाज से गूंजने लगा है।
एक सैनिक के दयालु कार्य से शुरू हुई यह घटना पूरे समुदाय को छू गई है। सेना के डॉक्टर की करुणा ने दुग्गन में एक अमिट छाप छोड़ी है, reminding everyone that the army not only protects borders but also fills hearts and ignites hope in the most unexpected moments when it is needed the most.
--आईएएनएस
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