क्या असित कुमार हालदार भारतीय कला पुनर्जागरण के अग्रदूत हैं?

सारांश
Key Takeaways
- असित कुमार हालदार का जीवन एक प्रेरणादायक कहानी है।
- उन्होंने अजंता की गुफाओं की कला को दस्तावेजीकरण किया।
- उनकी कला ने भारतीय कला के पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- वे एक कवि, चित्रकार और लेखक थे।
- उनका योगदान आज भी भारतीय कला में महत्वपूर्ण है।
नई दिल्ली, 9 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। जब भारतीय कला के पुनर्जागरण की चर्चा होती है, तो असित कुमार हालदार का नाम एक चमकते तारे की तरह सामने आता है। टैगोर परिवार की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में जन्मा यह कलाकार न केवल एक चित्रकार था, बल्कि एक कवि, लेखक और भारतीय कला के उस आंदोलन का प्रतिनिधि था, जिसने देश की प्राचीन कला को वैश्विक मंच पर मान्यता दिलाई। उनकी कला यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण क्षण अजंता की गुफाओं के भित्तिचित्रों का दस्तावेजीकरण था, जिसने उनकी रचनात्मकता को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। यदि हम इस रेंजर कवि की कहानी को करीब से देखें, तो अजंता की गुफाएं उनके प्रेरणा का मुख्य स्रोत रहीं।
10 सितंबर 1890 को जोरासांको के टैगोर परिवार में जन्मे असित कुमार हालदार की कला की रुचि बचपन से ही विकसित हुई। उनके पिता और दादा भी कलाकार थे, और इस सांस्कृतिक वातावरण ने उनकी प्रतिभा को पंख दिए। 1906 में, जब वे किशोर थे, तो उन्होंने कलकत्ता के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट में दाखिला लिया।
असित कुमार हालदार ने 'आर्ट एंड ट्रेडिशन' में उल्लेख किया कि वे उस छोटे समूह के कलाकारों में से एक थे जिन्होंने अवनींद्रनाथ टैगोर और ईबी हैवेल के बीच हुई महत्वपूर्ण बैठक के महत्व को सहजता से समझा। यह आंदोलन भारतीय कला के असली पुनर्जागरण से संबंधित था। यह जानकर रोचकता होती है कि इस आंदोलन को प्रायोजित करने के लिए बनी भारतीय प्राच्य कला सोसायटी के 30 सदस्यों में सिर्फ 5 भारतीय थे।
उनकी कला का असली रंग तब प्रकट हुआ जब वे अजंता की गुफाओं से मिले। 1909 से 1911 तक, असित कुमार हालदार इंडियन सोसाइटी ऑफ लंदन के महत्वाकांक्षी अभियान का हिस्सा बने। इस अभियान में लेडी हेरिंगम और दो अन्य बंगाली चित्रकारों के साथ वे अजंता की गुफाओं में भित्तिचित्रों का दस्तावेजीकरण करने पहुंचे। यह अभियान भगिनी निवेदिता की प्रेरणा से प्रारंभ हुआ था, जिसका उद्देश्य गुफा कला को भारतीय जनमानस तक पहुंचाना था।
अजंता की गुफाओं में बुद्ध के जीवन और जातक कथाओं को चित्रित करने वाले भित्तिचित्रों ने हलदार को मंत्रमुग्ध कर दिया। इन चित्रों की जीवंत रंग-रेखाएं, कथात्मक शैली और सूक्ष्म कोमलता ने उनकी रचनात्मकता को गहराई से प्रभावित किया।
गौतम हालदार ने एक पुस्तक लिखी, 'रेंजर कवि असित कुमार हालदार', जो असित कुमार हालदार के जीवन को समर्पित है, जिसमें अजंता की गुफाओं में उनके महत्वपूर्ण योगदान का भी उल्लेख किया गया है।
अजंता के अनुभवों के बाद हालदार की खोज रुकी नहीं। 1921 में वे बाघ की गुफाओं की ओर भी अग्रसर हुए। वहां की कला से प्रभावित होकर उन्होंने ऐसे चित्र बनाए जिनमें अवास्तविक कल्पना की झलक दिखाई देती है, जो उस समय भारतीय कला के लिए एक नया प्रयोग था। हालदार की कला में इतिहास, पौराणिक कथाएं और आध्यात्मिकता का गहरा समावेश था। उन्होंने बुद्ध के जीवन पर आधारित 32 चित्रों की एक शृंखला बनाई और भारतीय मिथकों पर लगभग 30 चित्र भी तैयार किए।
30 अगस्त 1938 को इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आरएन देब ने असित कुमार हालदार के लिए लिखा था, "हालदार आधुनिक भारतीय कला पर एक पुस्तक लिखने वाले सबसे सक्षम व्यक्तियों में से एक हैं। स्वयं एक कवि और चित्रकार होने के नाते जिनकी ख्याति अपने देश की सीमाओं से परे फैली हुई है। वे अवनींद्रनाथ टैगोर के सबसे आकर्षक शिष्यों में से एक हैं।"
असित कुमार हालदार की सबसे बड़ी देन यह है कि उन्होंने भारत की प्राचीन कला परंपराओं को आधुनिक दृष्टिकोण से देखा, समझा और प्रस्तुत किया। अजंता गुफाओं की कला ने उन्हें जीवन भर के लिए प्रभावित किया, और उन्होंने इसे अपनी शैली का आधार बनाकर एक ऐसा भारतीय चित्रशास्त्र रचा, जो न केवल अतीत से संवाद करता है, बल्कि वर्तमान को भी समृद्ध करता है।