क्या आयुर्वेद से जीवनभर रहेंगे तन-मन से स्वस्थ?

सारांश
Key Takeaways
- ब्रह्ममुहूर्ते जागरण से ऊर्जा मिलती है।
- स्वस्थवृत्त का पालन करने से रोगों की संभावना कम होती है।
- समय पर संतुलित भोजन आवश्यक है।
- प्राकृतिक नींद से शरीर को ऊर्जा मिलती है।
- ध्यान और प्राणायाम मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं।
नई दिल्ली, २५ सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद केवल रोगों का उपचार नहीं करता, बल्कि यह हमें रोगों से बचाव और दीर्घकालिक स्वस्थ जीवन जीने की दिशा भी दिखाता है। आजकल आयुर्वेद में वर्णित जीवनशैली को लोग हेल्दी लाइफस्टाइल के रूप में पहचानते हैं।
आयुर्वेद में जिस जीवनशैली और अनुशासन का उल्लेख है, उसे स्वस्थवृत्त कहा जाता है। यह एक ऐसी जीवनचर्या है जिसके पालन से शरीर, मन और आत्मा संतुलित रहते हैं और रोगों की संभावना कम हो जाती है। प्राचीन काल से आज तक आयुर्वेद के ये नियम उतने ही प्रभावी और प्रासंगिक हैं जितने हजारों वर्ष पहले थे।
स्वस्थवृत्त का पहला नियम है ब्रह्ममुहूर्ते जागरण यानी सूर्योदय से पहले उठना, जिससे शरीर को ऊर्जा और मन को शांति मिलती है। सुबह उठकर शौच करना, दंतधावन (नीम या हर्बल पेस्ट से दांतों की सफाई) और जिव्हा-निर्लेखन (जीभ की सफाई) से शरीर में जमी अशुद्धियां निकल जाती हैं।
आंखों की सुरक्षा के लिए अंजन और त्रिफला जल का इस्तेमाल और नस्य कर्म (नाक में औषधीय तेल डालना) श्वसन और नेत्र स्वास्थ्य के लिए उत्तम माने गए हैं। इसी तरह गंध, धूप और हर्बल धूम्र का प्रयोग वातावरण और मन दोनों को शुद्ध करता है।
अभ्यंग यानी प्रतिदिन तेल मालिश शरीर को मजबूत, त्वचा को कोमल और हड्डियों को सशक्त बनाती है। इसके बाद हल्का व्यायाम, योग और प्राणायाम शरीर में स्फूर्ति लाते हैं। गुनगुने पानी से स्नान करना शारीरिक और मानसिक ताजगी प्रदान करता है।
आहार के संदर्भ में आयुर्वेद कहता है कि भोजन हमेशा समय पर संतुलित और ताजा होना चाहिए। ऋतुचर्या यानी मौसम के अनुसार आहार-विहार में बदलाव करना भी स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक है। आयुर्वेद का एक प्रमुख नियम है मितभोजन अर्थात भूख से थोड़ा कम खाना।
आयुर्वेद में जल सेवन के भी नियम बताए गए हैं। भोजन से पहले थोड़ा जल, बीच में कम और भोजन के बाद पानी नहीं पीना चाहिए। इसके अलावा पर्याप्त और समय पर प्राकृतिक नींद लेना शरीर को पुनः ऊर्जावान बनाता है।
आयुर्वेद संयमित जीवन जीने, ब्रह्मचर्य का पालन करने और इंद्रियों पर नियंत्रण रखने की भी सलाह देता है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए सत्संग, सकारात्मक विचार, क्रोध व तनाव से दूरी तथा ध्यान और प्राणायाम का अभ्यास अनिवार्य बताया गया है।
इन नियमों का पालन करने से न केवल पाचन शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, बल्कि मन शांत और स्थिर रहता है। आधुनिक युग में इसे ही हेल्दी लाइफस्टाइल कहा जाता है।