क्या बंगला भाषा के साथ हो रहा अन्याय? इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है: बिमान बनर्जी

सारांश
Key Takeaways
- बंगला भाषा का संरक्षण आवश्यक है।
- रवींद्रनाथ टैगोर का योगदान महत्वपूर्ण है।
- स्वतंत्रता संग्राम में बंगाल का योगदान उल्लेखनीय है।
- समाज में समरसता बनाए रखने के लिए सभी भाषाओं का सम्मान होना चाहिए।
- राज्य सरकार ने संसद में विरोध दर्ज कराया है।
कोलकाता, 8 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। पश्चिम बंगाल विधानसभा के स्पीकर बिमान बनर्जी ने बंगला भाषा के प्रति हो रहे अन्याय पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि यदि रवींद्रनाथ टैगोर आज जीवित होते तो बंगला भाषा की उपेक्षा देखकर उन्हें अत्यधिक दुख होता।
बिमान बनर्जी ने उल्लेख किया कि रवींद्रनाथ टैगोर को उनकी 16 बंगला कविताओं के संग्रह "गीतांजलि" के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था, जिसने विश्व स्तर पर बंगला साहित्य को गौरव प्रदान किया।
उन्होंने कहा, "रवींद्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस जैसे महान व्यक्तित्वों ने पश्चिम बंगाल को वैश्विक पहचान दी। स्वतंत्रता संग्राम में भी पश्चिम बंगाल अन्य राज्यों की तुलना में सबसे आगे रहा।"
स्पीकर बिमान बनर्जी ने स्वतंत्रता संग्राम में बंगाल के योगदान को उजागर करते हुए कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस, खुदीराम बोस जैसे क्रांतिकारियों ने देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व बलिदान किया। बंगाल की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित करने की आवश्यकता है।
बिमान बनर्जी ने एसआईआर के मुद्दे पर कहा कि यह बहुत गलत हो रहा है। जो लोग दशकों से पश्चिम बंगाल में रह रहे हैं, उन्हें बार-बार अपनी नागरिकता साबित करने के लिए मजबूर करना अनुचित है। यह एक गलत कदम है।
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने इस मुद्दे पर संसद में अपना विरोध दर्ज कराया है। इस तरह के कदम सामाजिक समरसता को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
नबन्ना अभियान के मुद्दे पर बोलते हुए स्पीकर बिमान बनर्जी ने इसे विचाराधीन मामला बताया। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा न्यायालय में है और इसका फैसला वहां से आएगा। हमें न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान करना चाहिए।
अपराजिता बिल के संबंध में उन्होंने स्पष्ट किया कि यह बिल अभी तक उनके पास नहीं पहुंचा है। जब यह मेरे पास आएगा, तब मैं इस पर विचार करूंगा और उचित कदम उठाऊंगा।