क्या बचपन से ही भगवतीचरण वर्मा को लेखन का शौक था?

सारांश
Key Takeaways
- भगवतीचरण वर्मा हिन्दी साहित्य के एक महान लेखक हैं।
- उनका जन्म 30 अगस्त, 1903 को हुआ था।
- उन्होंने समाज सुधार के लिए अपने लेखन में कई मुद्दों को उठाया।
- उनके प्रमुख उपन्यास 'चित्रलेखा' और 'भूले बिसरे चित्र' हैं।
- उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
नई दिल्ली, 4 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। हिन्दी साहित्य के महान लेखक भगवतीचरण वर्मा की पुण्यतिथि रविवार को है। उनका जन्म 30 अगस्त, 1903 को उन्नाव जिले के शफीपुर गांव में हुआ और उनका निधन 5 अक्टूबर, 1981 को दिल्ली में हुआ।
भगवतीचरण वर्मा को उनके उपन्यास, कविताएं और नाटक लिखने के साथ-साथ समाज सुधार के कार्यों के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने अपने लेखन में समाज में असमानता समाप्त करने, गरीबी और महिलाओं के अधिकारों की चर्चा की है। वर्मा 'चित्रलेखा' और 'भूले बिसरे चित्र' जैसे प्रसिद्ध उपन्यासों के लिए जाने जाते हैं। 'चित्रलेखा' पर एक फिल्म भी बनी है, जिसके लिए उन्हें पुरस्कार मिला।
भगवतीचरण वर्मा ने अपने करियर की शुरुआत कविता से की, लेकिन वे अपनी अद्वितीय गद्य शैली के लिए प्रसिद्ध हुए। उनके उपन्यासों की बहुत सराहना हुई, और उन्हें 'भूले बिसरे' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। इसके अलावा, उन्होंने पत्रकारिता, वकालत और रेडियो में भी काम किया। वर्ष 1950 में, वे आकाशवाणी में हिंदी सलाहकार के रूप में शामिल हुए और 'विचार' नामक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन किया।
वर्मा की व्यक्तिगत जिंदगी भी संघर्षपूर्ण रही। उनका पहला विवाह 1923 में हुआ, जब वे इंटर की पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन एक वर्ष के भीतर ही उनकी पत्नी का निधन हो गया। पत्नी के निधन के बाद उन्होंने कविता लेखन शुरू किया। 1934 में उनका दूसरा विवाह हुआ।
भगवतीचरण वर्मा को बचपन से ही लेखन का शौक था। उन्होंने छोटी उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया था, और उनकी 'भैंसागाड़ी' कविता बहुत प्रसिद्ध हुई। वे एक प्रतिष्ठित परिवार से थे, जहां उनके पिता, देवीचरण वर्मा, एक वकील थे। उन्होंने अपने पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए वकालत की, लेकिन उनका असली प्यार कविता और कहानी लेखन था। वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने इसे सिर्फ नाम के लिए किया।
भगवतीचरण वर्मा के प्रमुख उपन्यासों में 'टेढ़े-मेढ़े रास्ते', कविता 'भैंसागाड़ी', 'सबहिं नचावत राम गोसाईं', 'आज मानव का सुनहला प्रात है', और 'सामर्थ्य और सीमा' शामिल हैं।