क्या भारत हरित बंदरगाहों पर बड़ा दांव लगाकर समुद्री विकास को नई रफ्तार देगा?
सारांश
Key Takeaways
- भारत ने हरित बंदरगाहों का विकास शुरू किया है।
- समुद्री विकास और पर्यावरण संरक्षण को जोड़ने का प्रयास।
- 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 30% कमी का लक्ष्य।
- प्रदूषण कम करने के लिए नई तकनीकों का उपयोग।
- स्थानीय लोगों को लाभ देने का प्रयास।
नई दिल्ली, 28 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत तेजी से एक समुद्री महाशक्ति बनने की दिशा में अग्रसर है। यह अब केवल एक दीर्घकालिक लक्ष्य नहीं है, बल्कि देश की 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।
इंडिया नैरेटिव की एक रिपोर्ट के अनुसार, जो बंदरगाह पहले छोटे व्यापार केंद्र थे, अब विशाल आर्थिक केंद्र बन गए हैं, जहां माल की आवाजाही में वृद्धि हो रही है और ये भारत के निर्माण, निर्यात और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को मजबूती प्रदान कर रहे हैं।
जैसे-जैसे बंदरगाहों की गतिविधियां बढ़ रही हैं, एक महत्वपूर्ण प्रश्न उभरता है- समुद्री पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना और जलवायु परिवर्तन को बढ़ाए बिना विकास कैसे संभव हो सकता है?
भारत ने इस प्रश्न का स्पष्ट उत्तर दिया है। अब सरकार का मानना है कि हरित विकास किसी रुकावट का कारण नहीं, बल्कि दीर्घकालिक टिकाऊ विकास का एक महत्वपूर्ण मार्ग है।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत का लगभग 95 प्रतिशत विदेशी व्यापार मात्रा के हिसाब से बंदरगाहों के माध्यम से होता है। इसलिए बंदरगाह देश की अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
पिछले 10 वर्षों में बड़े बंदरगाहों पर माल की आवाजाही में काफी वृद्धि हुई है, जो लगभग 581 मिलियन टन से बढ़कर लगभग 855 मिलियन टन हो गई है। यह वृद्धि मजबूत निर्माण और वैश्विक सप्लाई चेन से जुड़ाव को दर्शाती है।
हालांकि, बंदरगाह वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत भी हैं। कई बंदरगाह मैंग्रोव वनों, दलदली क्षेत्रों, कोरल रीफ और घनी आबादी वाले तटीय शहरों के निकट स्थित हैं।
इस दिशा में एक महत्वपूर्ण बदलाव पहले से ही हो रहा है। 1908 के पुराने पोर्ट्स एक्ट की जगह इंडियन पोर्ट्स एक्ट, 2025 लागू किया गया है, जो समुद्री प्रशासन में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जा रहा है।
अब पर्यावरण सुरक्षा को कानून का हिस्सा बना दिया गया है। टिकाऊ विकास अब कोई विकल्प नहीं, बल्कि एक अनिवार्य शर्त बन गया है। इसके साथ ही बंदरगाहों के विकास को जलवायु जिम्मेदारी से जोड़ा गया है।
इस सोच का केंद्र 'मैरीटाइम इंडिया विजन 2030' है, जिसमें बंदरगाहों के विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण को सबसे महत्वपूर्ण रखा गया है। इसे 'हरित सागर ग्रीन पोर्ट गाइडलाइंस' का समर्थन भी मिला है, जिनमें स्पष्ट और मापने योग्य लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं।
इन लक्ष्यों के अनुसार, 2030 तक बंदरगाहों को प्रति टन माल पर कार्बन उत्सर्जन 30 प्रतिशत तक कम करना होगा। इसके अलावा, बड़ी मात्रा में मशीनों को बिजली से चलाना होगा और 60 प्रतिशत से अधिक ऊर्जा नवीकरणीय स्रोतों से लेनी होगी।
इन लक्ष्यों को 2047 तक और आगे बढ़ाया जाएगा, जिससे यह स्पष्ट होता है कि हरित परिवर्तन एक बार का कार्य नहीं, बल्कि एक निरंतर प्रक्रिया है।
बंदरगाहों के रोजमर्रा के कार्यों में भी सुधार किया जा रहा है। 'शोर-टू-शिप पावर सिस्टम' से जहाज बंदरगाह पर खड़े रहते समय अपने डीजल इंजन बंद कर सकते हैं, जिससे नजदीकी शहरों में वायु प्रदूषण कम होता है।
बिजली से चलने वाली क्रेन, वाहन और माल उठाने वाली मशीनें शोर कम करती हैं, ईंधन की बचत करती हैं और श्रमिकों की सुरक्षा बढ़ाती हैं।
इन परिवर्तनों से उन स्थानीय लोगों को तात्कालिक लाभ होगा, जो लंबे समय से बंदरगाहों के प्रदूषण का सामना कर रहे हैं।
जल प्रबंधन और जैव विविधता संरक्षण अब प्राथमिकता बनते जा रहे हैं। नई तकनीकों में गंदे पानी का पुन: उपयोग, उसे कम मात्रा में बाहर छोड़ना और खुदाई से निकली चीजों का पुनः उपयोग विभिन्न कार्यों में किया जा रहा है।
मैंग्रोव वनों की पुनः स्थापना और हरियाली बढ़ाने से कार्बन का अवशोषण होता है और तटों को तूफानों और कटाव से सुरक्षित किया जा सकता है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण अब अधिक हो रहे हैं।