क्या है भारत की जनजातीय कला: परंपराओं, मान्यताओं और जीवनशैली का जीवंत चित्रण?

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क्या है भारत की जनजातीय कला: परंपराओं, मान्यताओं और जीवनशैली का जीवंत चित्रण?

सारांश

भारत की जनजातीय कला न केवल रंग और आकृतियों का संगम है, बल्कि यह जीवनशैली, परंपराओं और मान्यताओं का भी अद्भुत चित्रण है। जानिए विभिन्न जनजातियों की कला शैलियों के बारे में जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं।

Key Takeaways

  • भारत की जनजातीय कला हमारी सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है।
  • हर जनजाति की कला में उसकी परंपराएँ और मान्यताएँ झलकती हैं।
  • ये कला शैलियाँ ग्रामीण जीवन और प्रकृति के साथ गहरे संबंध को दर्शाती हैं।
  • जनजातीय कला के माध्यम से हम अपने पूर्वजों की कहानियाँ सुन सकते हैं।
  • यह कला न केवल सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि हमारी पहचान को भी दर्शाती है।

नई दिल्ली, 7 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत की जनजातीय कला हमारे देश की सबसे अद्भुत और प्राचीन कलाओं में से एक मानी जाती है। यह कला केवल रंगों और आकृतियों का संयोग नहीं है, बल्कि यह उन समुदायों की जीवनशैली, परंपराओं, मान्यताओं और प्रकृति के साथ उनके गहरे संबंध को भी प्रकट करती है।

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बसी जनजातियाँ अपनी-अपनी विशिष्ट कला शैलियों के लिए जानी जाती हैं, जिनमें हर एक की अपनी अनोखी पहचान और कहानी होती है।

उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र की वारली कला बहुत प्रसिद्ध है। यह एक साधारण सी लेकिन गहन भावनाएँ व्यक्त करने वाली कला है। इसमें गोल, त्रिकोण और रेखाओं से मनुष्य, जानवर और पेड़-पौधों की आकृतियाँ बनाई जाती हैं। यह कला ग्रामीण जीवन, खेती-बाड़ी और त्योहारों के दृश्यों को प्रदर्शित करती है।

इसी प्रकार, मध्य भारत की गोंड कला भी आकर्षक होती है। इसमें जीवंत रंगों का प्रयोग होता है और चित्रों में लोककथाएँ तथा प्रकृति के प्रतीकों को दर्शाया जाता है।

पूर्वी भारत की संथाल कला मिट्टी के रंगों और प्राकृतिक वस्तुओं से बनाई जाती है। इस कला में जनजातीय जीवन के सरल लेकिन गहरे पहलुओं को व्यक्त किया जाता है। बिहार की मधुबनी चित्रकला की तो बात ही निराली है। यह कला घर की दीवारों या कपड़ों पर बनाई जाती है, जिसमें देवी-देवताओं, विवाह तथा त्योहारों के दृश्य रंग-बिरंगे रूप में उकेरे जाते हैं।

ओडिशा की पटचित्र कला भी प्रसिद्ध है। यह कपड़े या ताड़पत्र पर बनाई जाती है और इसमें पौराणिक कथाएँ तथा भगवान जगन्नाथ के जीवन की झलक देखने को मिलती है। ओडिशा की एक और कला है सौरा चित्रकला, जिसमें ज्यामितीय आकृतियों के माध्यम से देवताओं और मिथकीय कथाओं को दर्शाया जाता है।

राजस्थान और मध्य प्रदेश की भील कला में लोककथाएँ, प्रकृति और अनुष्ठान से जुड़े सुंदर चित्र बनाए जाते हैं। वहीं, राजस्थान की फड़ चित्रकला बड़े कपड़ों पर देवी-देवताओं और नायकों की कहानियाँ चित्रित करती है।

गुजरात और मध्य प्रदेश की पिथोरा चित्रकला आशीर्वाद और धार्मिक अनुष्ठानों से जुड़ी होती है। इसे घर की दीवारों पर बनाया जाता है, ताकि समृद्धि और सुख-शांति बनी रहे। दक्षिण भारत में, तमिलनाडु की तोड़ा कढ़ाई अपनी सुंदर ज्यामितीय डिजाइन और प्राकृतिक रंगों के लिए जानी जाती है।

Point of View

भारत की जनजातीय कला एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर है, जो हमारे देश की विविधता और समृद्धि को दर्शाती है। यह न केवल कलात्मकता का उदाहरण है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताओं का भी प्रतीक है।
NationPress
07/11/2025

Frequently Asked Questions

भारत की जनजातीय कला क्या है?
भारत की जनजातीय कला, विभिन्न जनजातियों की सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं का एक जीवंत चित्रण है।
भारत में कितनी प्रकार की जनजातीय कला है?
भारत में वारली, गोंड, मधुबनी, पटचित्र, और भील जैसी कई प्रकार की जनजातीय कला हैं।
जनजातीय कला का क्या महत्व है?
यह कला हमारे देश की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती है और परंपराओं को संरक्षित करती है।