क्या तीसरे देश की मध्यस्थता को नकारना भारत की कूटनीतिक जीत है?

सारांश
Key Takeaways
- भारत ने तीसरे देश की मध्यस्थता को नकारा।
- पीएम मोदी ने द्विपक्षीय वार्ता का महत्व बताया।
- आतंकवाद पर बातचीत की आवश्यकता है।
- भारत की कूटनीतिक स्थिति मजबूत हुई है।
- राष्ट्रपति ट्रंप के बयानों का खंडन।
बेंगलुरु, १८ जून (राष्ट्र प्रेस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन देशों के दौरे पर हैं और इस दौरान जी-७ समिट में भाग लेने के लिए कनाडा पहुंचे हैं। हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शिखर सम्मेलन के बीच में स्वदेश लौटने के कारण दोनों नेताओं की मुलाकात नहीं हो सकी। इसके पश्चात ट्रंप ने पीएम मोदी से फोन पर बातचीत की। रक्षा विशेषज्ञ जी.जे. सिंह ने बुधवार को कहा कि इस बातचीत में भारत-पाक मुद्दे पर तीसरे देश की मध्यस्थता को नकारना एक कूटनीतिक जीत है।
पीएम मोदी ने ट्रंप से फोन पर बात करते हुए पाकिस्तान के मामले में किसी भी तीसरे देश के हस्तक्षेप को ठुकराया है। वहीं, ट्रंप ने अपने कई बयानों में पाकिस्तान और भारत के बीच मध्यस्थता की बात दोहराई है।
जी.जे. सिंह ने राष्ट्र प्रेस से संवाद करते हुए कहा, "पिछले कई वर्षों से हमारी सरकार की नीति रही है कि हम किसी भी देश की मध्यस्थता में विश्वास नहीं करते। हमने पहले भी स्पष्ट किया है कि दोनों देश (भारत-पाकिस्तान) एक-दूसरे की भाषा को समझते हैं, दोनों देशों की एक संस्कृति है।"
उन्होंने कहा, "हमारे प्रधानमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि हमे किसी की मध्यस्थता की आवश्यकता नहीं है, यह एक द्विपक्षीय मामला है। यदि पाकिस्तान से बातचीत होगी, तो वह केवल आतंकवाद पर होगी। पीएम मोदी ने वैश्विक समुदाय को यह भी स्पष्ट किया है कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते। खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।"
जी.जे. सिंह ने कहा, "जब पीएम मोदी ने राष्ट्रपति ट्रंप से बात की, तो उन्होंने साफ-सुथरे शब्दों में समझाया कि हमें किसी की मध्यस्थता नहीं चाहिए। ट्रंप, जो कई ट्वीट करके यह बताते रहे हैं कि हमने दोनों देशों के बीच मध्यस्थता कराई है, उन्हें समझाया गया है। पीएम मोदी ने उनकी बातों को ठुकरा दिया है, जिसे हमें एक डिप्लोमैटिक जीत के रूप में देखना चाहिए।"
ईरानी नेता अयातुल्ला खुमैनी की जानकारी और उसे नहीं मारने वाले ट्रंप के दावे पर जी.जे. सिंह ने कहा, "अयातुल्ला खुमैनी का स्थान मोसाद के पास भी है, लेकिन यदि ट्रंप कहते हैं कि वह उसे मारना नहीं चाहते, तो इसका कारण यह है कि खुमैनी की हत्या के बाद ईरान में गृह युद्ध शुरू हो जाएगा, जिसे अमेरिका भी नियंत्रित नहीं कर सकता।"