क्या भारत भाषा और संस्कृति की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध राष्ट्र है?: राज्यपाल आनंदीबेन पटेल
सारांश
Key Takeaways
- भारत एक समृद्ध भाषा और संस्कृति का देश है।
- भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय ने संगीत शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
- राज्यपाल ने भारतीय भाषाओं के संवर्धन की आवश्यकता पर जोर दिया।
- संगीत और कला मानव जीवन को समृद्ध बनाते हैं।
- ऐसे कार्यक्रम ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को बढ़ावा देते हैं।
लखनऊ, 20 दिसम्बर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने शनिवार को भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय, लखनऊ के शताब्दी समारोह के समापन कार्यक्रम में भाग लिया। इस अवसर पर उन्होंने बताया कि भारत भाषा और संस्कृति के दृष्टिकोण से एक अत्यंत समृद्ध राष्ट्र है।
राज्यपाल ने कहा कि हमें अपनी इस समृद्ध विरासत को और मजबूत करना चाहिए और इसे आने वाली पीढ़ियों तक ससम्मान पहुंचाना अनिवार्य है।
उन्होंने आगे कहा कि हिंदुस्तानी संगीत की विधिवत शिक्षा, साधना और उसके व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय न केवल देश का, बल्कि विश्व का एक प्रतिष्ठित संस्थान है।
आधुनिक युग में इस संस्थान ने संगीत शिक्षा में मार्गदर्शक की भूमिका निभाई है और अपनी अनुशासित परंपरा और साधना के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। राज्यपाल ने कहा कि देश के संगीत क्षेत्र में शायद ही कोई ऐसा स्थान हो, जहां इस विश्वविद्यालय से प्रशिक्षित कलाकारों की स्वर-साधना की गूंज न सुनाई देती हो। पिछले सौ वर्षों में इस संस्थान ने अनगिनत कलाकार, साधक और शिक्षाविद राष्ट्र को समर्पित किए हैं। नौशाद, तलत महमूद, दिलराज कौर, अनूप जलोटा, पूर्णिमा पाण्डे, मालिनी अवस्थी, विधि नागर और आस्था गोस्वामी जैसे विशिष्ट कलाकारों ने इस संस्थान की गरिमा को और ऊंचाइयों तक पहुंचाया है।
राज्यपाल ने कहा कि संगीत और कला मानव मन को संस्कारित करती हैं और जीवन को सौंदर्य और संतुलन प्रदान करती हैं। भारत विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं का देश है, जहां अनेक धाराएं मिलकर एकात्मता का महासागर बनाती हैं।
उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा भारतीय भाषाओं के संवर्धन हेतु की जा रही पहल की सराहना करते हुए कहा कि मातृभाषा के साथ अन्य भारतीय भाषाओं का अध्ययन भारतीय संस्कृति के संरक्षण और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। राज्यपाल ने आशा व्यक्त की कि भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय अपने गौरवशाली अतीत की परंपराओं को सुदृढ़ करते हुए अनुसंधान, नवाचार और अनुशासन के माध्यम से भारतीय कला एवं संस्कृति की पवित्र धारा को निरंतर प्रवाहित करेगा तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का अक्षय स्रोत बनेगा।
राज्यपाल ने कहा कि ऐसे मंच हमें नई चीजें सीखने, विभिन्न क्षेत्रों के लोगों से मिलने और विविध संस्कृतियों को साझा करने का महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करते हैं। यह आयोजन ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को व्यवहार में उतारने का एक सशक्त उदाहरण है। उन्होंने संतोष व्यक्त किया कि उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालय भारतीय भाषाओं के संवर्धन की दिशा में ठोस कदम उठा रहे हैं। अब भारतीय भाषाओं का अध्ययन केवल विद्यार्थियों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि शिक्षक, कर्मचारी, अभिभावक और बाहरी व्यक्तियों तक भी विस्तारित होगा।
राज्यपाल ने काशी-तमिल संगमम जैसे आयोजनों का उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रम भारत की आत्मिक एकता के जीवंत प्रमाण हैं, जहां उत्तर और दक्षिण, भाषा और भूगोल की सीमाएं संस्कृति के सेतु पर विलीन हो जाती हैं।
उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् के गौरवशाली डेढ़ सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर देशभर में आयोजित कार्यक्रम राष्ट्रीय भावना को नई ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं। भारत हिमालय की बर्फीली चोटियों से लेकर हिंद महासागर की अथाह गहराइयों तक विविधताओं का अद्भुत संगम है। विश्व के कई देश अपनी प्राचीन विरासत, जैसे मिस्र के पिरामिड या इटली की झुकी हुई मीनार, पर गर्व करते हैं। इसी प्रकार भारत की सभ्यता, भाषाएं और परंपराएं भी उतनी ही प्राचीन, जीवंत और व्यापक हैं।
राज्यपाल ने कहा कि जब हम अपनी विरासत का संरक्षण करेंगे और उसे संजोने एवं समृद्ध करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करेंगे, तभी भारत आत्मविश्वास और आत्मगौरव के साथ प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होगा। कार्यक्रम के दौरान राज्यपाल ने विश्वविद्यालय के 100 गौरवशाली वर्षों पर आधारित पुस्तकों “एक्युप्रेशर एंड कथक डांस” और “भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय: एक संगीत यात्रा” का विमोचन किया।
साथ ही संगीत संयोजन के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान हेतु एक शिक्षक को प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया। विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित विश्वविद्यालय लोगो प्रतियोगिता के विजेता को सम्मानित किया गया। शताब्दी समारोह के अंतर्गत आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं के चार प्रथम विजेता प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र एवं पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया गया।
इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय के 100 वर्षों की सांगीतिक यात्रा पर आधारित वृत्तचित्र “स्वरों की विरासत” का भी अवलोकन किया गया।
-- राष्ट्र प्रेस
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