क्या चुनावों से पहले भाजपा की डिवाइड एंड रूल नीति के तहत भाषा विवाद खड़ा किया जा रहा है? : आदित्य ठाकरे

सारांश
Key Takeaways
- भाषा विवाद का इस्तेमाल चुनावी राजनीति में किया जा रहा है।
- आदित्य ठाकरे ने भाजपा के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया दी।
- मुंबई में मराठी बोलने वालों की स्थिति चिंताजनक है।
मुंबई, 8 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिंदी भाषा का विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है। इस मुद्दे पर महायुति और महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के बीच जुबानी जंग जारी है। इसी क्रम में शिवसेना (यूबीटी) के नेता और विधायक आदित्य ठाकरे ने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के बयान पर अपनी प्रतिक्रिया दी।
आदित्य ठाकरे ने कहा कि निशिकांत दुबे न तो उत्तर भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं और न ही हिंदी भाषा का। मुंबई सपनों की नगरी है, जहां देश के हर कोने से लोग आते हैं, काम करते हैं और व्यवसाय बढ़ाते हैं। हमारा विरोध हिंदी भाषा के खिलाफ नहीं, बल्कि जबरदस्ती थोपने वाली 'भाषायी ताकत' के खिलाफ है।
उन्होंने कहा कि यदि निशिकांत दुबे ऐसे बयान दे रहे हैं, तो मैं भाजपा से पूछना चाहता हूं कि क्या वे ऐसी हिम्मत पाकिस्तान या बांग्लादेश में दिखा सकते हैं? यह सब चुनावी दांव हैं। बिहार और बीएमसी के चुनावों से पहले भाषा विवाद खड़ा करना भाजपा की ‘डिवाइड एंड रूल’ नीति का हिस्सा है। मैं सीएम देवेंद्र फडणवीस और डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे से पूछना चाहता हूं कि क्या वे भी भाजपा के इस जहर भरे बयान से सहमत हैं?
आदित्य ठाकरे ने मनसे के आंदोलन और पुलिस कार्रवाई पर टिप्पणी करते हुए कहा कि रात में अचानक कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई की गई, नोटिस दिए गए, गिरफ्तारियां हुईं। ऐसा क्यों हुआ? हमने हमेशा कहा है कि हिंसा का समर्थन नहीं होना चाहिए। यदि स्थानीय मराठी बोलने वाले अपनी बात रखना चाहते हैं, तो उन्हें क्यों रोका जा रहा है? क्या महाराष्ट्र में मराठी बोलने वालों को अपनी ही जमीन पर डराया जाएगा? भाजपा को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वह किस पक्ष में है।
उन्होंने हिंदी-मराठी विवाद और मराठी मानुष की उपेक्षा पर कहा कि आज मुंबई में मराठी बोलने वालों को घर नहीं मिलता। कॉलोनियों में उन्हें मटन और मछली खाने के नाम पर घर देने से मना कर दिया जाता है। भाजपा शासन में मराठी समुदाय उपेक्षित महसूस कर रहा है। यदि कोई व्यक्ति प्रतिक्रिया देता है, तो यह सोचने की जरूरत है कि गुस्सा क्यों आया? जब बार-बार मराठी अस्मिता को दबाया जाएगा, तो प्रतिक्रिया तो आएगी।