क्या भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगे अयोध्या में रामभक्ति में लीन हुए?

सारांश
Key Takeaways
- भूटान के प्रधानमंत्री की अयोध्या यात्रा का ऐतिहासिक महत्व है।
- उन्होंने रामलला के दर्शन के साथ-साथ मंदिर की नक्काशी की सराहना की।
- यह यात्रा भूटान-भारत संबंधों को और मजबूत करने का प्रतीक है।
- प्रधानमंत्री ने पूजा-अर्चना के दौरान विशेष ध्यान दिया।
- राजगीर में बौद्ध मंदिर का उद्घाटन भी उनके दौरे का हिस्सा था।
अयोध्या, 5 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत के दौरे पर आए भूटान के प्रधानमंत्री दाशो शेरिंग तोबगे ने अयोध्या में रामलला के दर्शन किए। प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगे अपनी पत्नी के साथ शुक्रवार को अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि मंदिर पहुंचे। उनके साथ भूटान और भारत के विदेश मंत्रालय के अधिकारी भी थे।
भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगे के अयोध्या पहुंचने पर उत्तर प्रदेश के मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने उनका स्वागत किया। शुक्रवार सुबह तोबगे एक विशेष विमान से अयोध्या एयरपोर्ट पर उतरे। इस आध्यात्मिक यात्रा के दौरान उन्होंने राम दरबार में दर्शन के साथ-साथ हनुमानगढ़ी और कुबेरटीला में पूजा-अर्चना की।
प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगे के रामलला के दर्शन पर चंपत राय ने खुशी का इज़हार करते हुए कहा, "भारत के अलावा किसी अन्य देश के प्रधानमंत्री ने पहली बार अयोध्या में रामलला के दर्शन किए हैं।"
राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा कि भूटान के प्रधानमंत्री दाशो शेरिंग तोबगे अपनी पत्नी के साथ राम जन्मभूमि मंदिर में रामलला के दर्शन के लिए आए थे। चंपत राय ने जानकारी दी कि प्रधानमंत्री तोबगे एक घंटा 40 मिनट तक मंदिर परिसर में रहे। उन्होंने रामलला और राम दरबार के दर्शन के अतिरिक्त कुबेर टीला और जटायु सप्तमंडप जैसे स्थानों पर भी समय बिताया। कुबेरटीला पर भगवान शिव का जलाभिषेक और आरती भी की गई।
चंपत राय ने बताया, 'भूटान के प्रधानमंत्री को मंदिर की नक्काशी बहुत पसंद आई, वे बहुत प्रसन्न थे। उनका व्यवहार मंदिर में श्रद्धा से भरा हुआ था। उन्होंने रामलला को सामने से तीन बार प्रणाम किया, भगवान की आरती की और प्रसाद लिया।'
चंपत राय ने अंत में सभी का आभार प्रकट किया।
इससे पहले, प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगे ने बिहार के राजगीर में नवनिर्मित रॉयल भूटान बौद्ध मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा में भाग लिया। बौद्ध रीति-रिवाज के साथ मंदिर का उद्घाटन किया गया। राजगीर भगवान बुद्ध की तपोभूमि है और बौद्ध धर्म में इसका विशेष महत्व है।