क्या अस्थावां विधानसभा सीट पर 20 साल से जदयू का दबदबा कायम रहेगा?

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क्या अस्थावां विधानसभा सीट पर 20 साल से जदयू का दबदबा कायम रहेगा?

सारांश

नालंदा जिले की अस्थावां विधानसभा सीट आगामी बिहार चुनावों में एक बार फिर से राजनीतिक चर्चा का केंद्र बनी हुई है। यहाँ जदयू, राजद और जन स्वराज पार्टी के उम्मीदवारों में दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलेगा। क्या राजद नीतीश के गढ़ में सेंध लगाएगी? जानिए इस सीट का ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्व।

Key Takeaways

  • अस्थावां विधानसभा सीट नालंदा जिले का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
  • यहां जदयू और राजद के बीच दिलचस्प मुकाबला होगा।
  • इस क्षेत्र का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है।
  • मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गहरा प्रभाव रहा है।
  • राजद को यहाँ अपनी पहली जीत का इंतजार है।

पटना, 18 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार विधानसभा चुनाव में नालंदा जिले की अस्थावां विधानसभा सीट एक बार फिर से राजनीतिक विमर्श का केंद्र बन गई है। यहां जदयू ने जितेंद्र कुमार, राजद ने रवि रंजन कुमार और जन स्वराज पार्टी ने लता सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। इस सीट पर मुकाबला दिलचस्प होने की संभावनाएं हैं।

अस्थावां, नालंदा जिले का एक प्रमुख प्रखंड है, जो जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से लगभग 11 किलोमीटर पूर्व स्थित है। यह क्षेत्र ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और कृषि दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। इसके निकट ही विश्वप्रसिद्ध नालंदा महाविहार (विश्वविद्यालय) और पावापुरी जैसे धार्मिक स्थल मौजूद हैं।

फल्गु नदी इस क्षेत्र की जीवनरेखा मानी जाती है। इसका उपजाऊ भूभाग कृषि को मुख्य आजीविका के रूप में स्थापित करता है।

अस्थावां का इतिहास सदियों पुराना है। यह क्षेत्र कभी मगध साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था और आसपास के गांवों के लिए यह स्थानीय व्यापार केंद्र के रूप में प्रसिद्ध रहा है। नालंदा विश्वविद्यालय की निकटता ने यहां की संस्कृति, शिक्षा और जीवन शैली को गहराई से प्रभावित किया है।

गिलानी गांव अपनी विशिष्ट पहचान के लिए जाना जाता है। यहां के आम देश-विदेश में प्रसिद्ध हैं। इस गांव की एक विशेषता यह है कि चाहे हिंदू हों या मुस्लिम, लगभग सभी लोग अपने नाम के आगे ‘गिलानी’ सरनेम लगाते हैं। जियर गांव, जो अस्थावां प्रखंड में है, भी धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह गांव भगवान सूर्य नारायण की पूजा और वैष्णव परंपरा के पालन के लिए जाना जाता है।

राजनीतिक इतिहास की बात करें तो अस्थावां विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई थी। यह नालंदा लोकसभा क्षेत्र के सात विधानसभा क्षेत्रों में से एक है, जिसमें अस्थावां, बिंद और सरमेरा प्रखंड तथा बरबीघा प्रखंड का एक भाग शामिल है। अब तक इस सीट पर 18 चुनाव हो चुके हैं, जिनमें 2001 का उपचुनाव भी शामिल है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो नालंदा जिले से ही आते हैं, का इस सीट पर गहरा प्रभाव रहा है। 2001 के बाद से जदयू या उसकी पूर्ववर्ती पार्टी समता पार्टी ने यहां लगातार छह बार जीत दर्ज की है। दिलचस्प बात यह है कि 1985 से 2000 तक यहां निर्दलीय उम्मीदवारों का दबदबा रहा। उन्होंने चार बार लगातार और कुल पांच बार जीत हासिल की।

अब तक इस सीट पर कांग्रेस चार बार, जनता पार्टी दो बार और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी एक बार जीत चुकी है। जबकि भाजपा और राजद जैसी बड़ी पार्टियां अब तक यहां अपना खास प्रभाव नहीं बना सकी हैं। राजद को इस सीट पर पहली जीत का इंतजार है।

Point of View

जो न केवल नालंदा बल्कि बिहार की राजनीति में भी एक नई दिशा तय कर सकती है।
NationPress
18/10/2025

Frequently Asked Questions

अस्थावां विधानसभा सीट का ऐतिहासिक महत्व क्या है?
अस्थावां विधानसभा क्षेत्र का इतिहास सदियों पुराना है और यह एक समय मगध साम्राज्य का हिस्सा था। यहां नालंदा विश्वविद्यालय के निकटता ने संस्कृति और शिक्षा को गहराई से प्रभावित किया है।
अस्थावां विधानसभा सीट पर प्रमुख राजनीतिक दल कौन हैं?
इस सीट पर प्रमुख राजनीतिक दलों में जदयू, राजद और जन स्वराज पार्टी शामिल हैं।
इस सीट पर कब से चुनाव हो रहे हैं?
अस्थावां विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई थी और अब तक इस सीट पर 18 चुनाव हो चुके हैं।
नीतीश कुमार का इस सीट पर क्या प्रभाव है?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का इस सीट पर गहरा प्रभाव रहा है, और जदयू ने 2001 के बाद से लगातार छह बार जीत हासिल की है।
राजद को इस सीट पर पहली जीत कब मिलेगी?
राजद अभी तक इस सीट पर अपनी पहली जीत का इंतजार कर रही है।