क्या दीघा विधानसभा सीट भाजपा का गढ़ है? जानें समीकरण

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क्या दीघा विधानसभा सीट भाजपा का गढ़ है? जानें समीकरण

सारांश

दीघा विधानसभा सीट का चुनावी इतिहास रोचक है। यहां की महिला वोटर्स का असर चुनाव परिणाम पर गहरा होता है, जिससे भाजपा ने अपनी स्थिति मजबूत की है। जानें इस सीट की राजनीति और विकास की कहानी।

Key Takeaways

  • महिला वोटर का महत्वपूर्ण प्रभाव
  • भाजपा की मजबूत स्थिति
  • जेपी सेतु की कनेक्टिविटी में सुधार
  • जातिगत समीकरणों का विश्लेषण
  • दीघा की राजनीतिक कहानी

पटना, 23 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। पटना जिले की दीघा विधानसभा सीट केवल एक चुनावी क्षेत्र नहीं है, बल्कि बिहार की बदलती राजनीति और विकास की कहानी का जीता-जागता सबूत है। इस सीट पर सबकी निगाहें रहती हैं, क्योंकि यहां की महिला वोटर किसी भी पार्टी का भाग्य निर्धारित कर सकती हैं।

एक कहावत है कि दीघा में महिलाओं का रुख तय करता है कि जीत किस पार्टी की होगी। इस शहरी-समृद्ध सीट पर भाजपा की मजबूत पकड़ ने इसे पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया है, जिसका विश्लेषण किए बिना बिहार की राजनीति अधूरी है।

दीघा विधानसभा क्षेत्र का चुनावी सफर भले ही छोटा हो, लेकिन रोमांचक रहा है। 2008 में परिसीमन के बाद यह सीट अस्तित्व में आई और 2010 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ।

इस चुनाव में जदयू की पूनम देवी ने भारी अंतर से जीत दर्ज की। लेकिन, 2015 में कहानी में मोड़ आया। जदयू और भाजपा का गठबंधन टूटा और दोनों पूर्व सहयोगी एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हो गए। इस कड़े मुकाबले में भाजपा के संजीव चौरसिया ने जीत हासिल की।

2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू और भाजपा फिर से एक साथ आए, और संजीव चौरसिया ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की। उन्होंने सीपीआई (एमएल) की उम्मीदवार शशि यादव को 46,234 वोटों के अंतर से हराया।

2020 के विधानसभा चुनावों में यहां 4,60,868 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में बढ़कर 4,73,108 हो गए।

यह क्षेत्र केवल 1.76 प्रतिशत ग्रामीण मतदाताओं के साथ पूरी तरह से शहरी है। दीघा में पटना नगर निगम के 14 वार्ड और छह पंचायतें शामिल हैं। पाटलिपुत्र हाउसिंग कॉलोनी जैसे पटना के सबसे समृद्ध और पॉश इलाके भी इसी क्षेत्र का हिस्सा हैं। गंगा नदी के किनारे बसा यह क्षेत्र अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

चुनावी गणित में जातिगत समीकरणों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यहां कायस्थ समुदाय की बड़ी संख्या मानी जाती है, जिसे पारंपरिक रूप से भाजपा का मजबूत समर्थक माना जाता है। इसके अलावा, 2020 के आंकड़ों के अनुसार, यहां अनुसूचित जाति के मतदाता 10.68 प्रतिशत और मुस्लिम मतदाता 9.4 प्रतिशत थे।

दीघा की कहानी जेपी सेतु (जयप्रकाश नारायण सेतु) के जिक्र के बिना अधूरी है। यह पुल सिर्फ स्टील और कंक्रीट का ढांचा नहीं, बल्कि दशकों की राजनीतिक खींचतान का परिणाम है।

कभी दीघा और पहलेजा घाट के बीच जल परिवहन सेवा चलती थी, जो दक्षिण और उत्तर बिहार को जोड़ती थी। आज इसकी जगह जेपी सेतु ने ले ली है। यह 4,556 मीटर लंबा रेल-सह-सड़क पुल है जो दीघा को सारण जिले के सोनपुर से जोड़ता है। यह असम के बोगीबील पुल के बाद भारत का दूसरा सबसे लंबा रेल-सह-सड़क पुल है।

हालांकि, इस पुल का निर्माण आसान नहीं था। इसकी राह राजनीतिक विवादों से घिरी रही। रामविलास पासवान चाहते थे कि यह पुल उनके निर्वाचन क्षेत्र हाजीपुर से जुड़े, जबकि लालू प्रसाद यादव इसे अपने गृह जिले सारण के सोनपुर से जोड़ना चाहते थे। यह रस्साकशी तब खत्म हुई जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हस्तक्षेप किया और सोनपुर को पुल का अंतिम बिंदु घोषित किया।

इस पुल के बनने से पाटलिपुत्र जंक्शन रेलवे स्टेशन की स्थापना हुई, जिससे उत्तर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश (गोरखपुर) के लिए नई रेल सेवाएं शुरू हुईं, जिसने दीघा की कनेक्टिविटी को बदल दिया।

समृद्धि, विशालता और राजनीतिक उठापटक का केंद्र पटना साहिब लोकसभा सीट के तहत भाजपा का एक अभेद्य किला बन चुका है। इसकी शहरी पहचान और जातीय समीकरण भाजपा की मजबूत स्थिति के दो प्रमुख स्तंभ हैं।

Point of View

दीघा विधानसभा सीट की स्थिति बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण संकेतक है। यहाँ की महिला मतदाता और शहरी समुदाय भाजपा की ताकत बनाते हैं। चुनावी समीकरणों का अध्ययन आवश्यक है, जैसे जातिगत समीकरण और विकास की कहानी।
NationPress
23/10/2025

Frequently Asked Questions

दीघा विधानसभा सीट का चुनावी इतिहास क्या है?
दीघा विधानसभा सीट का चुनावी सफर 2010 में शुरू हुआ और तब से यह भाजपा और जदयू के बीच महत्वपूर्ण मुकाबला रहा है।
महिला वोटर्स का चुनाव परिणाम पर क्या असर होता है?
महिला वोटर्स का रुख चुनाव परिणाम को प्रभावित करता है, जैसा कि दीघा में देखा गया है।
जेपी सेतु का दीघा विधानसभा क्षेत्र पर क्या प्रभाव है?
जेपी सेतु ने दीघा की कनेक्टिविटी को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे क्षेत्र का विकास हुआ है।
जातिगत समीकरण का चुनाव पर क्या असर होता है?
जातिगत समीकरण चुनावी परिणाम को प्रभावित करते हैं, यहाँ पर कायस्थ समुदाय भाजपा का मजबूत समर्थक है।
दीघा विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या कितनी है?
दीघा विधानसभा क्षेत्र में 2020 के चुनाव में 4,60,868 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 में बढ़कर 4,73,108 हो गए हैं।