क्या त्रिवेणीगंज में जदयू का दबदबा 2025 में बना रहेगा? जानिए इसका राजनीतिक इतिहास

सारांश
Key Takeaways
- त्रिवेणीगंज विधानसभा का राजनीतिक इतिहास महत्वपूर्ण है।
- यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।
- 2020 में यहां 2,86,147 रजिस्टर्ड मतदाता थे।
- कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में बाढ़ एक प्रमुख समस्या है।
- युवाओं का पलायन रोजगार के सीमित अवसरों की वजह से हो रहा है।
पटना, 3 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। त्रिवेणीगंज विधानसभा का राजनीतिक महत्व और सामाजिक विविधता इसे बिहार की एक महत्वपूर्ण विधानसभा सीट बनाती है। सुपौल जिले के अंतर्गत आने वाली त्रिवेणीगंज विधानसभा सीट अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है, जो अपनी सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक पहचान के लिए जानी जाती है।
त्रिवेणीगंज विधानसभा सीट पर 1957 में पहली बार चुनाव हुआ था। उस दौरान इस सीट को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया गया। इस सीट को 1962 से 2009 तक सामान्य श्रेणी में रखा गया, लेकिन 2010 से इसे दोबारा आरक्षित घोषित किया गया। 1957 से 1962 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा, लेकिन समय के साथ संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी और जनता दल ने भी यहां जीत का परचम लहराया।
2000 में इस सीट पर राजद का कब्जा रहा, जबकि 2005 के चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी ने जीत हासिल की। पहली बार 2009 के उपचुनाव में यहां जदयू का खाता खुला, तब से यह सीट जदयू के पास है।
2010 में जदयू की अमला देवी और 2015-2020 में वीणा भारती ने जीत दर्ज की। 2020 के विधानसभा चुनाव में वीणा भारती ने राजद के संतोष कुमार को 3,031 वोटों से हराया। उनकी जीत का फायदा पार्टी को लोकसभा चुनाव 2024 में भी मिला और यहां को बड़ी बढ़त मिली थी।
चुनाव आयोग के अनुसार, 2020 के विधानसभा चुनाव में त्रिवेणीगंज में 2,86,147 रजिस्टर्ड मतदाता थे, जिनमें 18.53 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 14.90 प्रतिशत मुस्लिम और 21.70 प्रतिशत यादव समुदाय के थे। 2024 तक मतदाताओं की संख्या बढ़कर 3,09,402 हो गई है।
त्रिवेणीगंज विधानसभा सीट के आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण पर नजर डालें तो यह इलाका कोसी नदी के तट पर स्थित है और हर साल इस क्षेत्र को बाढ़ की समस्या का सामना करना पड़ता है।
यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से धान, मक्का और जूट की खेती पर आधारित है। कोसी नदी खेती का आधार तो है, लेकिन बाढ़ का प्रमुख कारण भी यही है।
रोजगार के सीमित अवसरों और कृषि आधारित उद्योगों की कमी के चलते युवाओं का पलायन एक बड़ी समस्या है। सड़क, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं भी अपर्याप्त हैं। क्षेत्र की चुनौतियों के बावजूद यह सीट बिहार की राजनीति में एक खास स्थान रखती है।