क्या बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण राजनीति से प्रेरित है?: पशुपति कुमार पारस

सारांश
Key Takeaways
- मतदाता सूची का पुनरीक्षण एक नियमित प्रक्रिया है।
- राजनीति का प्रभाव हमेशा चुनावी प्रक्रियाओं पर पड़ता है।
- समाज के शोषित वर्गों को पहचानना आवश्यक है।
- बाढ़ जैसी स्थितियों में सरकारी सहायता की आवश्यकता है।
- सभी मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए।
पटना, 21 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। बिहार राज्य में मतदाता सूची का पुनरीक्षण एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है। विपक्षी दल इस विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान प्रदेश में 35 लाख मतदाताओं के नाम हटाने का आरोप लगा रहे हैं। इस पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस ने सोमवार को कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने इसे राजनीतिक प्रेरणा से प्रेरित बताया।
उन्होंने कहा, "जितने भी नाम मतदाता सूची से हटाए जा रहे हैं, हमारे अनुसार यह राजनीति से प्रेरित है। जो महागठबंधन के वोटर और समर्थक हैं, उन्हें वोट देने से वंचित किया जा रहा है। महागठबंधन के वोटर्स और समर्थक ज्यादातर शोषित, दलित और अकलियत वर्ग से हैं, जिन्हें रहने के लिए घर नहीं है।"
पारस ने एनडीए शासन पर भी निशाना साधा और कहा, "बिहार में बाढ़ का प्रकोप है। प्रदेश के आधे से अधिक जिले बाढ़ से प्रभावित हैं। नदियों में खतरे के निशान से ऊपर पानी बह रहा है। लोग रेलवे लाइन और बांधों के किनारे शरण लिए हुए हैं। जिस व्यक्ति के पास रहने के लिए घर नहीं है और खाने के लिए खाना नहीं है, वह व्यक्ति आधार कार्ड और राशन कार्ड कैसे रखेगा? इस परिस्थिति में जानबूझकर एक साजिश रची गई है।"
बिहार में सत्ता परिवर्तन के दावे के साथ, पारस ने कहा, "मेरे अनुसार, बिहार में वर्तमान में दो गठबंधन हैं: एक 'इंडिया' ब्लॉक और दूसरा 'एनडीए'। एनडीए के शासन में बिहार का हाल ठीक नहीं है। हमने 25 जिलों का भ्रमण किया और वहां मैंने सत्ता परिवर्तन की आवाज सुनी है। आप कह रहे हैं कि वोटर लिस्ट गलत है, लेकिन इसी लिस्ट के आधार पर लोकसभा का चुनाव हुआ था, तो क्या उस समय भी वोटर लिस्ट गलत थी?"