क्या बिहार में 2010 का रिकॉर्ड टूटेगा? 225 सीटों पर एनडीए की जीत का दावा: संजय जायसवाल
सारांश
Key Takeaways
- बिहार की जनता का उत्साह अभूतपूर्व है।
- एनडीए की जनकल्याणकारी योजनाएं का असर स्पष्ट है।
- संजय जायसवाल का 225 सीटों पर जीत का दावा।
- प्रशांत किशोर की पार्टी की स्थिति खराब है।
- राहुल गांधी पर विश्वास अब कोई नहीं करता।
बेतिया, 8 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। भाजपा सांसद संजय जायसवाल ने कहा कि औरंगाबाद से लेकर सहरसा और चंपारण तक जनता में जो उत्साह इस बार देखने को मिल रहा है, वह अद्वितीय है। एनडीए सरकार द्वारा बिहार की जनता के लिए चलाए गए जनकल्याणकारी योजनाओं का प्रभाव स्पष्ट है। जनता ने यह ठान लिया है कि इस बार रिकॉर्ड मतों से एनडीए को विजयी बनाना है।
उन्होंने राष्ट्र प्रेस से बात करते हुए कहा, "इस बार 2010 का इतिहास टूटेगा। हमारा नारा है '2025, नरेंद्र और नीतीश इस बार 225'। बिहार की जनता इस नारे को साकार करके दिखाएगी।"
गृह मंत्री अमित शाह के उस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए, जिसमें उन्होंने कहा था कि एनडीए 160 से अधिक सीटें जीतेगा, जायसवाल ने समर्थन जताया। "अमित शाह ने बिल्कुल सही कहा है। इस बार हम 2010 का रिकॉर्ड तोड़कर अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल करेंगे।"
संजय जायसवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान की भी चर्चा की, जिसमें उन्होंने कहा था कि 1937 में 'वंदे मातरम्' को टुकड़ों में बांटा गया था और वहीं से विभाजन के बीज बोए गए थे।
जायसवाल ने कहा, "मुस्लिम लीग ने देश की आजादी की सबसे बड़ी पहचान 'वंदे मातरम्' गीत को दो हिस्सों में बांट दिया। उन्होंने कहा था कि हम केवल आठ पंक्तियां ही मानेंगे। वहीं से देश के बंटवारे की शुरुआत हुई थी। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। अब पूरा देश एकजुट है।"
पहले चरण की वोटिंग के दौरान प्रशांत किशोर के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए, जायसवाल ने कहा, "यह बदलाव नहीं, बल्कि समर्थन की वोटिंग है। प्रशांत किशोर की पार्टी की स्थिति इतनी खराब है कि अगर उनके किसी उम्मीदवार को 5000 वोट भी मिल जाएं, तो यह उनके लिए उपलब्धि होगी।"
उन्होंने तंज कसते हुए कहा, "जिसका नेता खुद डर के कारण चुनाव नहीं लड़ रहा, और जिसकी पार्टी के बड़े नेता मैदान से भाग रहे हैं, उनके उम्मीदवार को 2000-4000 वोट मिल जाएं तो इसमें क्या दोष है?"
राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए, जायसवाल ने कहा, "सभी जेन-जी पीएम मोदी के साथ हैं। राहुल गांधी खुद नहीं जानते कि वे क्या बोलते हैं। सच कहें तो राहुल गांधी पर विश्वास शायद केवल उनकी माता करती हैं, वरना इस देश में अब कोई नहीं करता।"