क्या बिहार विधानसभा चुनाव में कसबा की सियासी जंग में राजतिलक किसका होगा?

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क्या बिहार विधानसभा चुनाव में कसबा की सियासी जंग में राजतिलक किसका होगा?

सारांश

कसबा विधानसभा सीट, जो बिहार के पूर्णिया जिले में स्थित है, 2025 के विधानसभा चुनाव में सियासी हलचल का केंद्र बनने जा रही है। यहां के राजनीतिक समीकरण और मतदाता वर्गों के बीच का संघर्ष चुनावी परिणामों को तय करेगा। जानें इस सीट का सियासी इतिहास और आगामी चुनाव की संभावनाएं।

Key Takeaways

  • कसबा विधानसभा सीट में सियासी हलचल जारी है।
  • 2025 का चुनाव मुस्लिम और हिंदू मतदाताओं के बीच संतुलन पर निर्भर करेगा।
  • कांग्रेस के मोहम्मद अफाक आलम पर चौथी जीत की चुनौती है।
  • भाजपा और लोजपा के लिए खोए गढ़ को वापस पाने का अवसर।
  • कसबा का राजनीतिक इतिहास 1967 से लेकर अब तक कई उतार-चढ़ाव देख चुका है।

पटना, 8 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के पूर्णिया जिले में स्थित कसबा विधानसभा सीट, जहां खेतों की हरियाली और बाढ़ की त्रासदी एक साथ रहती हैं, 2025 के विधानसभा चुनाव में सियासी हलचल का केंद्र बनने को तैयार है। यह ग्रामीण सीट, पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और धान-जूट की खेती और पलायन के कारण अपनी पहचान बनाए हुए है।

इस सीट का सियासी सफर 1967 से शुरू हुआ, जब कांग्रेस ने यहां अपनी बादशाहत कायम की। हालांकि, भाजपा, लोजपा, और समाजवादी पार्टी ने भी समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। इस सीट पर लगभग 40 फीसदी मुस्लिम मतदाता की निर्णायक भूमिका होती है, जो चुनाव परिणामों को प्रभावित करते हैं। यह सीट दो भौगोलिक क्षेत्रों—मैदानी और पठारी क्षेत्र—में विभाजित है।

पूर्णिया जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर उत्तर और पटना से करीब 355 किलोमीटर दूर स्थित कसबा एक मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्र है, जिसमें बिखरी हुई बस्तियां और छोटे बाजार हैं। यहां की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है, जहां धान, मक्का और जूट प्रमुख फसलें हैं। मानसून के दौरान यह क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित होता है, और रोजगार की तलाश में लोग बड़े पैमाने पर शहरों की ओर पलायन करते हैं।

राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें, तो 1967 से अब तक यहां 14 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिनमें कांग्रेस की प्रमुखता रही है। 1967 से 1985 तक कांग्रेस ने चुनाव जीते। 1990 में जनता दल के शिवचरण मेहता ने कांग्रेस का किला तोड़ा, जबकि 1995, 2000 और अक्टूबर 2005 में भाजपा ने जीत हासिल की।

फरवरी 2005 में समाजवादी पार्टी के मोहम्मद अफाक आलम ने जीत दर्ज की, जो अब कांग्रेस के नेता हैं। आलम ने 2010, 2015, और 2020 में लगातार तीन बार विधायक के रूप में जीत हासिल की। 2020 के चुनाव में, उन्होंने लोजपा के प्रदीप कुमार दास को हराया, जो भाजपा से तीन बार विधायक रह चुके हैं।

कसबा सीट पर हिंदू बहुल आबादी है, लेकिन करीब 40 फीसदी मुस्लिम मतदाता चुनावी नतीजों पर असर डालते हैं। अब तक यहां से छह बार मुस्लिम उम्मीदवार जीत चुके हैं।

2024 के आंकड़ों के अनुसार, इस विधानसभा क्षेत्र की अनुमानित जनसंख्या 498250 है, जिसमें 255296 पुरुष और 242954 महिलाएं शामिल हैं। कुल 293314 मतदाता हैं, जिनमें 152423 पुरुष, 140876 महिलाएं और 15 थर्ड जेंडर हैं।

इस प्रकार, 2025 का विधानसभा चुनाव कसबा में कांग्रेस के मोहम्मद अफाक आलम के लिए चौथी जीत पाने की चुनौती और अन्य दलों के लिए खोया गढ़ वापस पाने का एक सुनहरा अवसर बनेगा। यहां का समीकरण मुस्लिम वोटों की एकजुटता और हिंदू वोटों के बिखराव पर निर्भर करेगा। यदि मुस्लिम वोट बैंक में दरार आई या संख्या कम हुई, तो भाजपा और लोजपा को बढ़त मिल सकती है, जबकि आलम को अपना मजबूत गढ़ बनाए रखने की चुनौती का सामना करना होगा।

Point of View

NationPress
08/08/2025

Frequently Asked Questions

कसबा विधानसभा क्षेत्र की जनसंख्या क्या है?
कसबा विधानसभा क्षेत्र की अनुमानित जनसंख्या 498250 है, जिसमें 255296 पुरुष और 242954 महिलाएं शामिल हैं।
कसबा में प्रमुख राजनीतिक दल कौन से हैं?
कसबा में प्रमुख राजनीतिक दलों में कांग्रेस, भाजपा, लोजपा और समाजवादी पार्टी शामिल हैं।
कसबा सीट पर कौन से मतदाता निर्णायक हैं?
कसबा सीट पर करीब 40 फीसदी मुस्लिम मतदाता चुनावी परिणामों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
किस नेता ने 2020 के चुनाव में जीत हासिल की थी?
2020 के चुनाव में कांग्रेस के मोहम्मद अफाक आलम ने लोजपा के प्रदीप कुमार दास को हराया था।
कसबा विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास क्या है?
कसबा का राजनीतिक इतिहास 1967 से शुरू होता है, जिसमें कांग्रेस ने लंबे समय तक प्रमुखता बनाए रखी है।