क्या बिहार विधानसभा चुनाव में किशनगंज पर कांग्रेस जीत का परचम लहराएगी या भाजपा बाजी मार लेगी?

सारांश
Key Takeaways
- किशनगंज विधानसभा क्षेत्र का ऐतिहासिक महत्व है।
- यहां मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
- कांग्रेस ने इस सीट पर सबसे अधिक 10 बार जीत हासिल की है।
- भाजपा इस सीट पर अब तक जीत नहीं पाई है।
- यह क्षेत्र पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार माना जाता है।
पटना, 7 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। बिहार विधानसभा चुनाव की आहट के साथ सीमांचल के मुस्लिम बहुल किशनगंज विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस सीट पर मुकाबला रोमांचक होने की उम्मीद है। एक तरफ, कांग्रेस अपनी पारंपरिक पकड़ को बनाए रखने के लिए प्रयासरत है, वहीं भाजपा यहां जीत के लिए पूरी ताकत झोंकने की योजना बना रही है। एआईएमआईएम भी मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने की कोशिश में जुटी है।
किशनगंज केवल एक विधानसभा क्षेत्र नहीं है, बल्कि यह सीमांचल क्षेत्र की राजनीतिक धुरी भी है। इसका इतिहास खगड़ा नवाब मोहम्मद फकीरुद्दीन के समय से जुड़ा हुआ है। एक हिंदू संत के विरोध के बाद 'आलमगंज' नाम बदलकर 'कृष्णा-कुंज' और फिर 'किशनगंज' रखा गया। किशनगंज 14 जनवरी 1990 को पूर्णिया से अलग होकर जिला बना, जो आज 1,884 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।
यह जिला पूर्वी हिमालय की तलहटी में स्थित है, जहां महानंदा, मेची और कंकई जैसी नदियां बहती हैं। नेपाल और बंगाल की सीमाओं से सटे इस क्षेत्र को पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। किशनगंज बिहार का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां व्यावसायिक स्तर पर चाय की खेती होती है।
किशनगंज की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 16,90,948 थी, जिसमें मुस्लिम बहुलता है। यहां मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं। 19 में से 17 बार मुस्लिम उम्मीदवार यहां से विजयी रहे हैं। यहां तक कि 1967 में सुशीला कपूर के बाद कोई हिंदू उम्मीदवार जीत दर्ज नहीं कर पाया। 57.04 फीसदी की साक्षरता दर और लगभग 897 लोगों की प्रति वर्ग किमी जनसंख्या घनत्व के साथ यह क्षेत्र बिहार की सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता का प्रतिनिधित्व करता है।
रेल और सड़क नेटवर्क के लिहाज से किशनगंज एक प्रमुख केंद्र है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, पटना और गुवाहाटी जैसे बड़े शहरों से सीधा रेल संपर्क है। एनएच 31 किशनगंज को बिहार और पूर्वोत्तर भारत से जोड़ता है। गरीब नवाज एक्सप्रेस, जो यहीं से शुरू होती है, इसकी रेल पहचान को और मजबूत बनाता है।
किशनगंज विधानसभा सीट पर अब तक 19 चुनाव हुए हैं। इनमें से कांग्रेस ने 10 बार जीत हासिल की है, जबकि राजद ने 3 बार। अन्य दलों – जैसे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, जनता दल, लोकदल और एआईएमआईएम को एक-एक बार जीत मिली है। भाजपा अब तक इस सीट पर जीत दर्ज नहीं कर पाई है, हालांकि कई बार बेहद नजदीकी मुकाबले में वह जरूर रही है। 2010 में स्वीटी सिंह सिर्फ 264 वोटों से और 2020 में 1,381 वोटों से यहां से पराजित हुईं।
2020 में कांग्रेस के इजहारुल हुसैन ने यह सीट जीती, जबकि एआईएमआईएम की बढ़ती पकड़ से मुस्लिम वोटों में बंटवारा देखा गया, जिसने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया। यदि 2025 में भी एआईएमआईएम मुस्लिम वोटों में सेंध लगा पाती है और हिंदू वोट एकजुट रहते हैं, तो भाजपा पहली बार यहां जीत का स्वाद चख सकती है।